पिछली रैंकिंग को भी बचाने में नाकाम रहा हरिद्वार नगर निगम, 176 से 363 वें स्थान पर पहुंचा
बीते वर्ष 2023-24 में स्वच्छ सर्वेक्षण में हरिद्वार शहर ने ही उत्तराखंड राज्य की लाज बचाई थी। इसमें गंगा किनारे के कुल 88 शहरों में नगर निगम हरिद्वार ने बेहतर प्रबंधन कर दूसरा सबसे स्वच्छ शहर का तमगा हासिल किया था।
स्वच्छता रैकिंग वर्ष 2024-25 का परिणाम धर्मनगरी हरिद्वार के लिए भी निराशाजनक रहा। पिछली बार का स्तर सुधारने के बजाय हासिए पर चला गया है। हालत यह है कि जिस शहर को गंगा किनारे के शहरों में दूसरा स्थान मिला उसका लिस्ट से नाम तक गायब हो गया। वहीं, राज्य में चौथे स्थान के स्वच्छ शहर का तमगा भी नहीं बचा। इस बार 20वें स्थान पर पहुंच गया। वहीं, देशभर में पिछली बार 176वें स्थान पर था, लेकिन इस बार 363 वें स्थान पर पहुंच गया है।
बता दें कि बीते वर्ष 2023-24 में स्वच्छ सर्वेक्षण में हरिद्वार शहर ने ही उत्तराखंड राज्य की लाज बचाई थी। इसमें गंगा किनारे के कुल 88 शहरों में नगर निगम हरिद्वार ने बेहतर प्रबंधन कर दूसरा सबसे स्वच्छ शहर का तमगा हासिल किया था। वहीं, राज्य में इसे चौथे स्थान मिला था। स्वच्छ सर्वेक्षण पिछड़ने का कारण माना जा रहा है कि करीब 12 महीने का कार्यकाल बिना बोर्ड के संचातिल हुआ। इसमें शहर के कुल 60 वार्ड को दो हिस्सों में बांटकर दो एजेंसियों को जिम्मेदारी दी गई। सवाल यह है कि दोनों एजेंसियों ने कार्य किया, लेकिन सर्वेक्षण के दौरान कई मानक पर खरा नहीं उतर सकीं।
प्रशासक काल में अनदेखी और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी नगरीय क्षेत्र में स्वच्छता व्यवस्था
वर्ष 2024-25 में स्वच्छता सर्वेक्षण से पूर्व नगर निगम हरिद्वार बोर्ड का कार्यकाल समाप्त हो चुका था। प्रशासक के हाथ में पूरे एक साल तक कार्यकाल रहा। ऐसे में निगम को करोड़ों रुपये धनार्जन का भी मौका मिला, लेकिन साधन और संसाधन को बढ़ाने के बजाय नगर निगम की व्यवस्था भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। इसमें न केवल शासन की किरकिरी हुई, बल्कि दो आईएएस समेत कई अधिकारी और कर्मचारी कार्रवाई जद में आए। वर्तमान में भी विजिलेंस की जांच चल रही है। धन का दुरुपयोग लैंड यूज बदलकर कम कीमत की जमीन को कई गुना रुपये देकर खरीदने में किया गया। स्वच्छता रैंकिंग में एक बिंदू कंम्प्यूटरीकृत व्यवस्था का भी है। इसमें करीब 12 करोड़ रुपये के कंम्प्यूटर तो खरीदे गए, लेकिन वह धूल फांक रहे हैं। कूड़ा निस्तारण के लिए क्षमता बढ़ाने, डंपिंग जोन को लेकर नई व्यवस्था करने या कूड़े के पृथकीकरण को लेकर भी कोई पहल नहीं की गई। सामुदायिक शौचालयों की संख्या बीते वर्ष की तुलना में नहीं बढ़ी।
वार्डों को डस्टबिन मुक्त बनाने की योजना रही फेल
नगर निगम ने वार्डों को डस्टबिन मुक्त करने की योजना तो बनाई, लेकिन यह व्यवस्था को और बर्बाद कर गई। गलियों में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए जिन एजेंसियों को जिम्मेदारी दी गई उन्होंने भी लापरवाही बरती। डस्टबिन के अभाव में कामकाजी लोग और कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं का आज भी हाल है कि वह खुले में या खाली जमीन में कूड़ा फेंककर निकल जाते हैं। नगर निगम ने कई वार्डों में चालान की कार्रवाई की, लेकिन जहां तहां कूड़ा फेंकने की आदत से नगरवासी बाज नहीं आए। वहीं कूड़ा निस्तारण के लिए सराय में जिस प्लांट की क्षमता 220 मिट्रिक टन से बढ़ाने की बात की जा रही थी वहां क्षमता तो नहीं बढ़ी। जमीन खरीद में भ्रष्टाचार का मामला केवल बढ़ता गया।
सभी बिंदुओं पर फेल रहा नगर निगम हरिद्वार
स्वच्छ सर्वेक्षण में मूल्यांकनकर्ता निगरानी प्रकोष्ठ, थोक अपशिष्ट प्रबंधन, कूड़ा उत्सर्जन और निस्तारणस, कंप्यूटर सहायता प्राप्त व्यक्तिगत साक्षात्कार के अलावा नागरिक प्रतिक्रिया भी अहम होती है। इन सभी बिंदुओं पर नगर निगम फिसड्डी साबित हुआ है। इसी तरह सामुदायिक शौचालय और सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति भी बेहद खराब रही। घरेलू अपशिष्ट, कचरा मुक्त शहर, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में भी कोई नया कार्य नहीं किया गया। एसटीपी की व्यवस्था हरिद्वार में हमेश चर्चा में रही है। इसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में क्षमता बढ़ना तो दूर हमेशा अनदेखी के चलते प्लांट भी निष्क्रिय होते गए। वर्षा जल निकासी की दिशा में और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में भी नगर निगम ने कोई कार्य नहीं किया

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