*जब धामी खेतों में उतरे, तो कुछ नेताओं को आपत्ति क्यों*
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब शनिवार को अपने पैतृक गांव नगला तराई पहुंचे और खेतों में बेलों के साथ धान की रोपाई करते नजर आए, तो यह तस्वीरें महज कुछ घंटों में सोशल मीडिया की सुर्खियों में छा गईं। लोगों ने कहा – “देखो, नेता ऐसा हो जो खेत की मिट्टी से निकला हो और वहीं से जुड़ा भी हो!”
लेकिन यही दृश्य देखकर कुछ लोगों को तकलीफ होने लगी, खासतौर पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी को, जो तुरंत सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए और तंज कस डाला कि – “सीएम धामी तो राहुल गांधी का अनुसरण कर रहे हैं!”
अब जरा सोचिए — धान की रोपाई करना किसी का अनुसरण कैसे हो गया? क्या अब खेतों में काम करना भी कांग्रेस का पेटेंट हो गया है?
क्या बैल जोतने से पहले राहुल गांधी से अनुमति लेनी पड़ेगी?
हरीश रावत जी को शायद याद नहीं रहा कि राहुल गांधी जब-जब खेतों में नजर आए हैं, तब-तब चुनाव नजदीक रहे हैं। तमिलनाडु में धान की बुवाई, कर्नाटक में हल चलाना, या फिर ट्रैक्टर रैली में सजे-धजे ट्रैक्टर पर पोज़ देना —हर बार चारों तरफ कैमरे, दर्जनों नेताओं का जमावड़ा, और एक सुव्यवस्थित इवेंट प्लानर की व्यवस्था रहती है। यह खेती कम और ब्रांड शूट ज्यादा लगती है।
सीएम धामी की खेतीबाड़ी ना प्रचार है औैर न ही किसी तरह का तामझाम। यह सिर्फ मिट्टी का रिश्ता है। धामी जी ना तो किसी दूसरे के खेत में गए, ना ही कोई ‘राजनीतिक इवेंट’ बनाया। वो अपने पुश्तैनी खेत में गए, जहां बैलों से पाटा खिंचवाया, पैरों से मिट्टी समतल की, और किसानों के साथ घंटों धान की रोपाई में लगे रहे। ना कोई नेता साथ, ना प्रचार टीम। बस एक धरती पुत्र, जो आज भी मिट्टी को अपनी मां मानता है।
हरीश रावत जी की बेचैनी समझ आती है…क्योंकि जब कोई मुख्यमंत्री वाकई ज़मीन से जुड़ा हो, और वो जुड़ाव दिखावे से नहीं, बल्कि आत्मीयता से भरा हो तो उनकी राजनीति का मॉडल हिल जाता है।
हरीश रावत जी तो पलायन पर चिंता जताने के नाम पर फलों और सब्जियों की थालियां सजाकर फोटो खिंचवाने तक सीमित हो गए हैं।
बिना खेत में उतरे, बिना पसीना बहाए — केवल फेसबुक पोस्ट से ‘पर्वतीय किसान’ बनने की कोशिश करना अब पुराना ड्रामा हो गया है।
और राहुल जी? खेतों में मेहनत नहीं, कैमरे में परफेक्शन चाहिए!
राहुल गांधी को शायद नहीं पता कि बैल की जोड़ी कैसे हांकते हैं,
कैसे पाटा समतल चलाया जाता है, कैसे घुटनों तक पानी में खड़े होकर घंटों धान लगाया जाता है। इसलिए उनके पास ट्रैक्टर चलाने का विकल्प होता है एक बार गाड़ी में बैठो, एक पोज़ दो और कैमरे में किसान बन जाओ!
राहुल गांधी के पिता, दादी और नाना प्रधानमंत्री रहे हैं। पैदा होते ही उनके मुंह में चांदी का चम्मच था लेकिन धामी जी का जीवन संघर्षों से लड़कर तैयार हुआ है। धामी जी के पिता सैनिक के साथ ही किसान रहे हैं। उनके दादा ने भी खेतीबाड़ी की और नाना ने भी।
धामी जी हर बार यह साबित कर चुके हैं कि उनके लिए खेती “फोटो सेशन” नहीं, एक संस्कार है। वे खेतों में तब भी जाते हैं जब कैमरे नहीं होते। वे किसानों की बात तब भी सुनते हैं जब टीवी चैनल नहीं दिखा रहे होते। क्योंकि वे जानते हैं कि नेता वही होता है जो मिट्टी से ऊपर नहीं, उसी में खड़ा रहता है।
फर्क दिखावे और धरोहर में है। राहुल गांधी के लिए खेत फोटो का सेट है।
हरीश रावत जी के लिए खेती एक पोस्ट का विषय है और पुष्कर सिंह धामी के लिए खेती जीवन की आत्मा है। इसलिए अगली बार जब कोई राहुल गांधी की खेती से तुलना करे, तो पहले पूछिए बैल की सवारी की है या सिर्फ बाइट दी है?
क्योंकि राजनीति में नेता बहुत हैं, पर खेत की मिट्टी से निकले ‘जननायक’ बहुत कम। और पुष्कर सिंह धामी, उन्हीं में से एक हैं।

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