शोधपत्र में खुलासा…जलवायु परिवर्तन के कारण बादल फटने के लिए उत्तराखंड बना हॉटस्पॉट
शोध में वैज्ञानिकों के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से बढ़ रहा है।
उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों के ताजा शोधपत्र में यह खुलासा हुआ है, जिसमें उन्होंने उत्तराखंड को बादल फटने की चरम घटनाओं का हॉटस्पॉट करार दिया है।
दून विवि के नित्यानंद हिमालयी रिसर्च एंड स्टडी सेंटर के प्रो. यशपाल सुंद्रियाल, असिस्टेंट प्रोफेसर विपिन कुमार व नेहा चौहान, जलसंग्रहण निदेशालय पौड़ी की समीक्षा कौशिक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियो मैग्नेटिज्म मुंबई के एपी डिमरी, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक संदीप कुमार, दिल्ली विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर नरेश राणा का यह शोध पत्र जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने एक जुलाई को प्रकाशित किया है।
शोध में वैज्ञानिकों के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से बढ़ रहा है। 1982 से 2020 तक के आंकड़ों के आधार पर किए गए इस अध्ययन में राज्य के विभिन्न जिलों में वर्षा, सतही तापमान और जल प्रवाह में बड़े बदलाव पाए गए हैं। 2010 के बाद से राज्य में चरम मौसम घटनाएं जैसे बादल फटना, तेजी से बढ़ी हैं, खासकर मेन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र में।
शोध में पाया गया कि पूर्वी उत्तराखंड (जैसे नैनीताल और ऊधमसिंह नगर) में 1990 के आसपास बारिश में बढ़ोतरी देखी गई लेकिन 2000 में बागेश्वर और पश्चिमी जिलों में बारिश में कमी आई। 2010 में फिर पश्चिमी उत्तराखंड में वर्षा बढ़ी और 2020 में यह ट्रेंड पलटकर फिर पूर्वी जिलों में अधिक बारिश की ओर गया। रुड़की और निचले पूर्वी जिलों में 1990 में जल प्रवाह अधिक था लेकिन वर्ष 2000 में कमी आई। वर्ष 2010 और 2020 में यह पैटर्न दोहराया गया। ये बदलाव सतही वर्षा और बर्फबारी से जुड़ी नमी की मात्रा से प्रभावित हैं।
तापमान में बढ़ोतरी
उत्तराखंड के उत्तरी ग्लेशियर क्षेत्रों में सतही तापमान में वृद्धि देखी गई है। दक्षिणी हिस्सों में भी तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहा जबकि रुड़की और बागेश्वर जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में बदलाव अलग-अलग दशकों में स्पष्ट रूप से दिखे।
अरब सागर की नमी बन रही उत्तराखंड में आफत
मौसम विभाग के निदेशक रहे बिक्रम सिंह और वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने प्रदेश में बादल फटने की घटनाओं पर एक शोध पत्र प्रकाशित किया था। इसमें उन्होंने स्पष्ट किया था कि अरब सागर से निकलकर राजस्थान, हरियाणा के रास्ते आने वाली तेज दक्षिण-पश्चिमी हवाएं अपने साथ नमी लेकर आती हैं। जब ये हवाएं पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों से टकराती हैं, तो तेजी से ऊपर उठती हैं। इससे बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने ये भी बताया था कि उत्तराखंड में बादल फटने का समय ज्यादातर तड़के सुबह होता है। इसका कारण है कि रात्रि में वातावरण ठंडा होने से ओसांक के पास तापमान पहुंच जाता है, जिससे बादल बनने की आशंका बढ़ जाती है। उनका यह शोध जनवरी 2022 में प्रकाशित हुआ है।
अगस्त में ही औसत के करीब पहुंची बारिश
प्रदेश में मानसून सीजन में औसतन 1162.7 मिमी बारिश होती है। इस बार 23 अगस्त तक ही यह आंकड़ा इसके करीब पहुंच चुका है। मौसम विभाग के मुताबिक, अब तक प्रदेश में 1031 मिमी बारिश दर्ज की जा चुकी है। इस अवधि तक सामान्यत: 904.2 मिमी बारिश होती है। विभाग ने 14 प्रतिशत अधिक बारिश बताई है। अभी करीब 20 सितंबर तक मानसून रहने की उम्मीद है। ऐसे में औसत से काफी अधिक बारिश होने का अनुमान जताया जा रहा है।
इस सीजन में अब तक हुई बारिश का जिलावार आंकड़ा
जिला वास्तविक बारिश सामान्य आंकड़ा
अल्मोड़ा 740.6 618
बागेश्वर 2047.1 618
चमोली 990.8 572
चंपावत 765 996.5
देहरादून 1362.5- 1124.9
पौड़ी 724.2 967.3
टिहरी 1106.8 731.4
हरिद्वार 1169.4 751.6
नैनीताल 1022.7 1188.4
पिथौरागढ़ 1055.8 1166.7
रुद्रप्रयाग 1076.2 1236.5
यूएस नगर 948.5- 854.9
उत्तरकाशी 947.7 916.7
(सभी आंकड़े मिमी में)

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