बढ़ते खर्च से दबाव में सरकार…गोल्डन कार्ड योजना की चमक बनाए रखने की चुनौती
राज्य सरकार के 128761 सेवारत कर्मचारी और 91390 पेंशनर्स राज्य स्वास्थ्य योजना के दायरे में हैं। ये सभी कर्मचारी और पेंशनर योजना के तहत अपना अंशदान देते हैं।
अस्पतालों में कर्मचारियों के लिए कैशलेस इलाज की सुविधा पर बढ़ते खर्च से राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण की पेशानी पर बल हैं। साल में कर्मचारी 120 करोड़ रुपये का अंशदान दे रहे हैं, जबकि खर्च 300 करोड़ तक पहुंच रहा है। ऐसे में प्राधिकरण के लिए खर्च का इंतजाम करने में पसीने छूट रहे हैं। उधर, कर्मचारियों के कैशलेस उपचार के करोड़ों रुपये के बिल लटक जाने से निजी अस्पतालों का भी धैर्य जवाब दे रहा है। लिहाजा कर्मचारी संगठनों की ओर से शिकायतें आ रही हैं कि अस्पताल गोल्डन कार्ड योजना के तहत कैशलेस इलाज करने से हाथ खड़े कर रहे हैं।
राज्य सरकार के 128761 सेवारत कर्मचारी और 91390 पेंशनर्स राज्य स्वास्थ्य योजना के दायरे में हैं। ये सभी कर्मचारी और पेंशनर योजना के तहत अपना अंशदान देते हैं। इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से योजना के लिए कोई अन्य वित्त पोषण नहीं है। प्राधिकरण बिलों के दावों का परीक्षण करने के बाद अस्पतालों को भुगतान किया जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से कर्मचारी आरोप लगा रहे हैं कि अस्पताल कैशलेस उपचार करने से मना कर रहे हैं। इससे उनमें काफी नाराजगी है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, 2020-21 से लेकर मार्च 3035 तक कर्मचारियों की अंशदान के रूप में करीब 510 करोड़ रुपये के सापेक्ष उपचार के दावे करीब 700 करोड़ रुपये के किए गए। खर्च में बेतहाशा वृद्धि ने इस योजना का वित्त प्रबंधन ही पटरी से उतर गया। अस्पतालों के साथ ही कर्मचारी संगठनों का भी सब्र जवाब दे रहा है। वे इस मामले में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे हैं।
निकाला जा रहा है रास्ता
इन परिस्थितियों के बीच सरकार के सामने गोल्डन कार्ड योजना की चमक को बनाए रखने की कड़ी चुनौती है। इसके लिए प्राधिकरण, शासन और सरकार के स्तर पर प्रयास जारी हैं। योजना को बनाए रखने के लिए इसकी उन कमजोर कड़ियों की तलाश हो रही है, जिनकी दुरूस्त करके खर्च बेतहाशा होने से रोका जा सकता है। दूसरा बढ़ते खर्च के सापेक्ष बजटीय व्यवस्था करने पर भी विचार हो रहा है।
योजना कर्मचारियों के अंशदान से संचालित हो रही है। जबकि योजना से पहले राज्य कर्मचारियों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति के भुगतान के लिए बजट की व्यवस्था की जाती थी। सरकार कर्मचारियों के अंशदान के साथ बजटीय व्यवस्था भी करनी चाहिए ताकि खर्च के अंतर को पाटा जा सके। कतिपय अस्पतालों में उपचार पर ज्यादा खर्च की सरकार को समीक्षा भी करनी चाहिए।
– शक्ति प्रसाद भट्ट, प्रदेश महामंत्री, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद
मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव को इस मामले में तत्काल दखल देना चाहिए। कई अधिकारी गोल्डन कार्ड योजना को बंद करने की कोशिशों में लगे हैं। सरकार अपने स्तर से पहले की तरह चिकित्सा पूर्ति के लिए बजट की व्यवस्था करे। गोल्डन कार्ड की योजना को और मजबूती बनाने की आवश्यकता है।
-अरुण पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद
यह प्रकरण प्राधिकरण और शासन दोनों के संज्ञान में हैं और इसे लेकर पूरी तरह से सजग हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने इस संबंध में पिछले दिनों बैठक भी की। हमने अस्पतालों से भी आग्रह किया है कि वे गोल्डन कार्ड योजना के तहत उपचार करने से इंकार न करें और इसे जारी रखें। अस्पतालों ने हमारा आग्रह माना भी है। शासन स्तर पर इसका जल्द समाधान निकाल लिया जाएगा।
– रीना जोशी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण
यह विषय वित्त विभाग के संज्ञान में आया था। विभाग योजना के बारे में अध्ययन कर रहा है। विभाग की ओर से जब प्रस्ताव आएगा, वित्त विभाग उस पर विचार करेगा।
– दिलीप जावलकर, सचिव, वित्त
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