सूर्यकान्त धस्माना बोले
इस प्रदेश में किसलिए है आपदा प्रबंधन विभाग?
हर साल चार धाम यात्रा, छह साल में अर्ध कुम्भ 12 सालों में कुम्भ, हर साल गंगा दशहरा से लेकर तमाम हिन्दू पर्व जिनमें बड़े स्नान होते हैं, श्रावण मास में कांवड़ यात्रा, उत्तराखंड के सैकड़ों सिद्ध पीठ और उनसे जुड़े आयोजन, कैंची धाम से लेकर सैकड़ों मठ मन्दिर जिनकी मान्यता व ख्याति देश और दुनिया मेँ हैं, इनके अलावा साधु संतों महात्माओं के द्वारा किए जाने वाले बड़े बड़े आयोजन और इन सब में उमड़ने वाली भीड़, क्या पिछले 25 सालों में राज्य बनने से लेकर अब तक उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग ने इस पर कोई अध्ययन किया है?
उत्तराखंड राज्य मध्य हिमालयी श्रंखला का सबसे नया पहाड़ है जिसकी उम्र बहुत कम है या इसे शैशवकाल में कहा जा सकता है इसलिए इसकी बनावट अभी जारी है और इसलिए इसमें भूकंपीय हलचलें, भूस्खलन, आदि भूगर्भीय घटनाएं स्वाभाविक हैं, हर साल बादल फटने की घटनायें, बाड़, जंगल की आग ये नियमित घटनाक्रम हैं और इनके नयूनिकरण और आपदा आ जाने की स्थिति में उससे निपटने व उसके प्रभाव को कम करने व प्रभावित लोगों,सम्पति, पशुधन आदि को राहत बचाव व अन्य सहायता प्रदान करने के काम को ही आपदा प्रबंधन कहा जाता है शायद। हमारे राज्य में 90 के दशक में दो बड़े भूकंप 1991 (उत्तरकाशी) व 1999( चमोली रुद्रप्रयाग) हमने झेल रक्खे हैं, 2013 की आपदा जिसमें केदारनाथ जी से लेकर राज्य का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ उसे भी देखा है , जंगलों में आग भी हर साल लगती है कभी कम कभी ज्यादा और उसके अलावा छोटी बड़ी आपदाएं हर साल आती हैं परंतु हमने इनसे क्या सीखा और ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए क्या तंत्र विकसित किया ये बड़ा सवाल पूरे राज्य के राजनैतिक नेतृत्व से है?
हमारी सरकारों के मंत्री विधायक और अधिकारी हमारी गाड़ी कमाई के पैसों से आपदा प्रबंधन सीखने के नाम पर विदेश यात्राओं में जाते हैं किन्तु जो अपने राज्य में सीख सकते हैं भीड़ प्रबंधन वो दुनिया के किसी देश में नहीं सीखा जा सकता लेकिन वो तब जब सीखने की नीयत हो, उत्तराखंड में अगर सबसे नक्कारा विभाग कोई है तो वो है आपदा प्रबंधन विभाग।
और अब एक कड़वा सवाल वर्तमान मुख्यमंत्री श्री Pushkar Singh Dhami जी, तीन पूर्व मुख्यमंत्री श्री Harish Rawat जी और श्री Trivendra Singh Rawat जी और श्री Ramesh Pokhriyal Nishank जी से कि आप ने अपने कार्यकाल में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में क्या योगदान दिया ? सवाल तो अन्य मुख्यमंत्री रहे महानुभावों से भी किया जाना चाहिए किन्तु उनमें से दो तो जवाब देने के लिए दुनिया में नहीं हैं और कोश्यारी जी और तीरथ भाई तो अपरैनटिस भी पूरी नहीं कर पाये थे। खंडूरी जी और बहुगुणा जी सक्रिय राजनीति को अलविदा कह चुके हैं ।
#dehradunwale #mansadevi #uttarakhand #haridwar #stampede
Suryakant Dhasmana
हरीश रावत का जवाब
आज #कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता जो संगठनात्मक, प्रशासनिक और प्रेस का दायित्व संभाले हुए हैं उनकी एक अच्छी पोस्ट पढ़ने का सौभाग्य मिला। दैवीय आपदा और विशेष तौर पर मां मनसा देवी के दर्शन मार्ग में हुई दर्दनाक भगदड़ और आठ लोगों के मारे जाने तथा दर्जनों लोगों के घायल होने को लेकर उनके द्वारा व्यक्त भावना, सवालों व सुझावों से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं।
उन्होंने कृपा कर वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ-साथ भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों से भी आपदा को लेकर सवाल पूछा है और यह कहा है कि आपने इस क्षेत्र में आपदा प्रबंधन के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं ?
उन्होंने कुछ भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को सवालों के दायरे से बाहर कर दिया है और दो भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों को कहा है कि उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया है, इसलिए उनसे सवाल पूछने का औचित्य नहीं है।
मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इन भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों ने राजनीति से संन्यास लेने की बात केवल हमारे दोस्त के कान में क्यों कही? क्योंकि उनमें से एक व्यक्ति को मैं राजनीति में अब भी बहुत सक्रिय देखता हूं और जबकि आपदा का सबसे भीषणतम प्रहार उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। खैर घोषणा सार्वजनिक रूप से की या कान में कही, वह महत्वपूर्ण नहीं है। मेरे लिए महत्वपूर्ण यह है कि मुझसे सवाल पूछा गया है?
भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों की इस आकर्षक परेड में मैं ही एकमात्र कांग्रेसनित भूतपूर्व मुख्यमंत्री हूं। सवाल कांग्रेस पार्टी के प्लेटफार्म से पूछा जा रहा है तो मेरा दायित्व बनता है कि मैं सफाई में कुछ कहूं।
सारी दुनिया ने इस बात को माना है कि जून 2013 में उत्तराखंड में आई दैवीय आपदा सबसे भीषणतम थी। देश में सर्वाधिक मौतों के साथ सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र आपदाग्रस्त हुआ था। राज्य की अर्थव्यवस्था भी पूर्णतः छिन्न-भिन्न हो गई थी। कांग्रेस प्रदत मेरे मुख्यमंत्री काल में मेरे मंत्रिमंडल के सहयोगियों, विधायकों, कांग्रेस पार्टी तथा अधिकारियों व कर्मचारियों के असीम सहयोग से हमने डेढ़ वर्ष के अंदर ही आपदा पुनर्निर्माण व पुनर्वास के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाने का काम किया था। इस दौरान हमने आपदा के मानकों में भी केंद्र सरकार से भारी बदलाव करवाए थे। इसी कालखंड में आपदा से निपटने के लिए NDRF की तर्ज पर SDRF का गठन विस्तारित हुआ।
इसी दौरान आपदा से निपटारे के लिए एक वृहद SOP तैयार की गई और जनपदों में आपदा प्रबंधन विभाग को और अधिक सुसंगठित व विस्तारित किया गया। इन सबके परिणाम स्वरूप चारधाम यात्रा के संचालन में मेरे कार्यकाल में कोई दुर्घटना नहीं हुई। कावड़ यात्रा के साथ-साथ 12 साल में आयोजित होने वाली नंदा राजजात यात्रा भी बहुत सुव्यवस्थित तरीके से संचालित हुई। अर्ध कुंभ हरिद्वार भी इसी कालखंड में आयोजित हुआ।
सादर, स्पष्टीकरण को स्वीकार करें।

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