वनाग्नि में भी बेईमानी, आंकड़ों से उठ रहा धुआं, पौने दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र को नुकसान की रिपोर्ट
एफएसआई ने राज्य के पौने दो लाख हेक्टेयर जंगल क्षेत्र को नुकसान की रिपोर्ट की है। वन विभाग की रिपोर्ट में 25 साल में 58 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल ही वनाग्नि से प्रभावित हुआ है
राज्य के जंगल में आग लगने और प्रभावित क्षेत्रफल को लेकर जो डेटा और रिकार्ड वन महकमा बताता है, वह पूरा सच नहीं है। फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट के आंकड़े दूसरी कहानी बयान करते हैं। एफएसआई की वर्ष-2023 की रिपोर्ट में राज्य में नवंबर-2023 से जून 2024 तक जंगल की आग से 180890 हेक्टेयर (1808.90 वर्ग किमी) क्षेत्रफल प्रभावित होने का जिक्र है। जबकि उत्तराखंड वन विभाग की रिपोर्ट बता रही है कि 25 साल में 58 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल ही वनाग्नि से प्रभावित हुआ।
एफएसआई देश में वन स्थिति को लेकर रिपोर्ट जारी करता है। इसी क्रम में पिछले साल एफएसआई ने वन स्थिति रिपोर्ट-2023 जारी हुई थी। इसमें जंगल की आग का भी जिक्र है। इसी के तहत वनाग्नि के कारण नवंबर-2023 से जून 2024 तक कितना क्षेत्र जला है, उसका उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार देश में आठवें स्थान पर सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र राज्य में रहा है।
इस दौरान पौने दो लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल जला है। जबकि वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य बनने के बाद से वर्ष-2023 में 933.55 हेक्टेयर और वर्ष-2024 में 1771.665 हेक्टेयर क्षेत्रफल प्रभावित होने का उल्लेख किया गया है। ऐसे में सवाल है क्या जंगल की आग की रिपोर्टिंग में कहीं पर झोल रहा है? इसके अलावा एफएसआई का डेटा और वन विभाग के डेटा के बीच एक बड़ा अंतर भी कई सवाल खड़ा करता है।
इस तरह एफएसआई की होती रिपोर्ट तैयार
एफएसआई के वैज्ञानिकों के अनुसार वन अग्नि से संबंधित रिपोर्ट को सेटेलाइट डेटा के आधार पर तैयार किया जाता है। इसमें पहले फायर अलर्ट जहां पर होता है उसे देखा जाता है। फिर उसे जगह पर स्पॉट या जले हुए स्थान को देखा जाता है। संबंधित जगह पर दो महीने पूर्व क्या स्थिति थी उसका भी तुलनात्मक तौर पर अध्ययन किया जाता है। अगर वहां पर पहले वेजिटेशन था और अब स्पॉट दिखाई दे रहा है तो यह जला हुआ हिस्सा माना जाता है। कुछ जगहों पर भू सत्यापन भी किया जाता है। इन सब के आधार पर रिपोर्ट को तैयार किया जाता है।
बड़े पैमाने पर कंट्रोल बर्निंग की जाती
जंगल को आग से बचाने के लिए तमाम प्रयास के दावे किए जाते हैं। इसमें एक कंट्रोल बर्निंग भी है। इसके तहत वर्ष-2024 में राज्य के 25 वन प्रभागों में कंट्रोल बर्निंग (नियंत्रित फुकान) का काम किया गया। इसके तहत वन विभाग ने 201253.94 हेक्टेयर में नियंत्रित फुकान किया था। इसके बाद भी 1276 घटनाएं हुईं, इनमें 1771 हेक्टेयर जंगल का क्षेत्र प्रभावित हुआ।
बीते 10 वर्षों में वनाग्नि की घटनाएं
वर्ष घटना- प्रभावित क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)
2015 412 701.66
2016 2074 4433.75
2017 805 1244.64
2018 2150 1822.90
2019 2158 779.2
2020 0135 104.36
2021 2813 3943.89
2022 2186 3425.05
2023 773 933.37
2024 1276 1771.665
2025 268 310.95
परीक्षण कराया जाएगा
वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि यह विषय उनके संज्ञान में नहीं है, इसका परीक्षण कराया जाएगा। प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) समीर सिन्हा का कहना है कि जो वनाग्नि का आकलन किया जाता है, वह एफएसआई के डेटा के अनुसार किया जाता हे। इसके अलावा सीधे भी सेटेलाइट का डेटा मिलता है, उनसे भी आकलन होता है। जो एफएसआई और वन विभाग के डेटा में विरोधाभास है, उसका परीक्षण करा लिया जाएगा।

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