शपथ ग्रहण छोड़ नेशनल गेम्स में गोल्ड के लिए संघर्ष करते रहे नवनिर्वाचित पार्षद सुमित, आखिर में जीत ही गई टीम
उत्तराखंड के सुमित बिष्ट ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। नेटबॉल खिलाड़ी सुमित ने मैदान में शानदार प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को जीत दिलाई। खास बात यह है कि सुमित श्रीनगर नगर निगम के नवनिर्वाचित पार्षद भी हैं। उन्होंने पार्षद पद की शपथ लेने के बाद सीधे मैदान में उतरकर अपनी खेल प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
शुक्रवार का दिन नगर निगम श्रीनगर के नवनिर्वाचित पार्षद और नेट बॉल खिलाड़ी सुमित बिष्ट के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। जहां एक ओर उन्हें पार्षद पद की शपथ लेनी थी वहीं दूसरी ओर 38 वें राष्ट्रीय खेलों में अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए मैदान में उतरना था।
यह दिन उनके समर्पण और बहुआयामी व्यक्तित्व की गवाही देता है। सुमित एलएलबी के बाद प्रैक्टिस कर रहे हैं। तीन साल पहले दोस्तों के साथ उन्होंने नेटबॉल खेलना शुरू किया, आज वह राष्ट्रीय खेलों में प्रतिभा दिखा रहे हैं।
उत्तराखंड की नेट बॉल टीम का हिस्सा हैं सुमित बिष्ट
सुमित बिष्ट जो उत्तराखंड की नेट बॉल टीम का हिस्सा हैं, अपनी खेल प्रतिभा के साथ-साथ समाजसेवा के प्रति भी प्रतिबद्ध हैं। शुक्रवार को जब श्रीनगर नगर निगम में महापौर और पार्षदों का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित हो रहा था, तब वार्ड 31 के पार्षद सुमित देहरादून में कर्नाटक के खिलाफ अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए संघर्षरत थे।
उनकी मेहनत और लगन का नतीजा यह रहा कि उत्तराखंड की टीम ने यह मुकाबला जीत लिया। अब शनिवार को केरल के खिलाफ होने वाले मैच में जीत दर्ज करने के बाद उत्तराखंड की टीम स्वर्ण पदक के और करीब पहुंच सकती है।
कई राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में दिखा चुके हैं प्रतिभा
सुमित बिष्ट का खेलों में योगदान उल्लेखनीय रहा है। वह पहले भी कई राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं और फेडरेशन कप का हिस्सा भी रह चुके हैं। उनका मानना है कि खेल और समाजसेवा दोनों ही उनके लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
शनिवार को होने वाले मैच पर उत्तराखंड की नजरें
यही कारण है कि उन्होंने पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ा और अपने वार्ड की बेहतरी के लिए आगे आए। अब पूरे उत्तराखंड की नजरें शनिवार को होने वाले मैच पर टिकी हैं, जहां सुमित और उनकी टीम गोल्ड मेडल जीतने की ओर एक और कदम बढ़ा सकती है। सुमित कहते हैं कि एक बार प्रदेश के लिए गोल्ड लेकर आ जाएं तो वार्ड के लिए तो पूरे पांच साल का समय है।
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