मौर्य काल में देहरादून जिले के कलसी मौर्यवंशी सभ्यता का केंद्र रहा है। यहां यमुना नदी के किनारे अशोक का शिलालेख भी है। 7वीं सदी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस क्षेत्र को सुधनगर के रूप में भी देखा था।
उत्तराखंड के देहरादून जनपद का कालसी मौर्यवंशी सभ्यता का केंद्र रहा था। यहां वह पत्थर भी है, जिस पर सम्राट अशोक की राजाज्ञा उत्कीर्ण है। आइए हम आपको इसके बारे में बताते हैं।
कालसी देहरादून से 56 किमी की दूरी पर स्थित है। महाभारत काल में कालसी में राजा विराट का शासन था। यहां अशोक के शिलालेख भी मिले हैं। इस क्षेत्र को सातवीं सदी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ‘सुधनगर’ के रूप में भी देखा था।
यहां है ‘अशोकन रॉक एडिक्ट’
भारतीय पुरालेखों में से एक ‘अशोकन रॉक एडिक्ट’ कालसी का महत्वपूर्ण स्मारक है। यह वह पत्थर है, जिस पर सम्राट अशोक की 14वीं राजाज्ञा को 253 ईस्वी पूर्व में उत्कीर्ण कराया गया था। वर्ष 1860 में जॉन फॉरेस्ट ने इसे प्रकाश में लाया। 10 फीट लंबी, 8 फीट चौड़ी और 10 फीट ऊंची इस संरचना को एक हाथी की रूपरेखा के साथ उत्कीर्ण किया गया है।
मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में लिखा कालसी का शिलालेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। कलसी के शिलालेख को हिंदी में भी अनुदित किया गया है, ताकि आमजन मौर्य सम्राट के संदेशों का मतलब समझ सकें।
चक्रवर्ती सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) मौर्य राजवंश के महान सम्राट रहे हैं। उनका नाम देवानांप्रिय (देवताओं का प्रिय) अशोक मौर्य था । सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व 269 से 232 तक राज किया। अशोक को चक्रवर्ती सम्राट कहा जाता है।
अशोक के लिए कहीं ‘अशोकवर्धन’ नाम मिलता है। उसके एक धर्मलेख में उसे ‘मगध का राजा’ कहा गया है। उ सके साम्राज्य के लिए लेखों में ‘पृथ्वी’ या ‘जंबूद्वीप’ शब्द मिलते हैं। अशोक की राजधानी पाटलीपुत्र में थी। भारत में अशोक के धर्मलेख जिस स्थान पर मिले, वहां उसका राज्य रहा है।
अशोक ने कलिंग विजय के बाद अपने जीवन में कोई युद्ध नहीं लड़ा। यह युद्ध 262 ईसा पूर्व में अशोक और राजा अनंत पद्मनाभन के बीच कलिंग में लड़ा गया था।
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