*मतदाता की गोपनीयता से समझौता नहीं*
*मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग फुटेज साझा करने की मांग पर चुनाव आयोग सख्त*
*वेबकास्टिंग या सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक करने की मांग को चुनाव आयोग ने पूरी तरह से नकारा*
एजेंसी। मतदान दिवस की वेबकास्टिंग या सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक करने की मांग को चुनाव आयोग ने पूरी तरह से नकार दिया है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि इस मांग के पीछे लोकतंत्र की सुरक्षा के बजाय मतदाता की गोपनीयता को नुकसान पहुंचाने की मंशा छिपी हुई है।
चुनाव आयोग का कहना है कि मतदान केंद्रों की वीडियो फुटेज साझा करने से यह स्पष्ट रूप से सामने आ सकता है कि कौन मतदाता मतदान करने आया और कौन नहीं। इससे मतदाताओं पर सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत दबाव बन सकता है। कुछ असामाजिक तत्व या राजनीतिक दल यह जानकर कि किसी विशेष बूथ पर उन्हें कम वोट मिले, यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि किन मतदाताओं ने वोट नहीं दिया या उनके पक्ष में मतदान नहीं किया और उन्हें परेशान कर सकते हैं।
चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि मतदान केंद्रों पर की जाने वाली वेबकास्टिंग पूरी तरह एक आंतरिक प्रबंधन उपकरण है और यह कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। इस फुटेज को केवल 45 दिनों तक सुरक्षित रखा जाता है, जो चुनाव याचिका (ईपी) दायर करने की अधिकतम अवधि है। यदि इस अवधि में कोई याचिका दायर नहीं होती, तो फुटेज नष्ट कर दी जाती है। यदि याचिका दायर होती है, तो यह फुटेज अदालत के आदेश पर उपलब्ध कराई जाती है।
*मतदान न करने वाले को भी गोपनीयता का अधिकार*
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत सरकार (2013) 10 एसएससी 1 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि “मतदाता को मतदान न करने का भी अधिकार है और उसकी गोपनीयता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि मतदान करने वाले की।” इस निर्णय में अदालत ने कहा कि यह लोकतंत्र का अनिवार्य पहलू है कि मतदाता अपनी पसंद या नापसंद को पूरी गोपनीयता में रख सके।
मतदान दिवस की वीडियो रिकॉर्डिंग में मतदाताओं की पहचान, मतदान केंद्र में प्रवेश का क्रम और उनकी उपस्थिति की पुष्टि हो सकती है। यह फॉर्म 17ए के समान है जिसमें मतदाता की क्रम संख्या, पहचान पत्र की जानकारी और हस्ताक्षर/अंगूठा छाप होता है। चूंकि फॉर्म 17ए को केवल सक्षम न्यायालय के आदेश पर ही उपलब्ध कराया जा सकता है, इसलिए वीडियो फुटेज को भी इसी आधार पर ही साझा किया जा सकता है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 128 के अंतर्गत मतदान की गोपनीयता भंग करना एक दंडनीय अपराध है, जिसमें तीन माह तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। ऐसे में चुनाव आयोग की यह कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है कि वह मतदाताओं की गोपनीयता की रक्षा करे।
*चुनाव आयोग ने दोहराया है कि वह किसी भी राजनीतिक दल, व्यक्ति या संस्था के दबाव में आकर मतदाता की सुरक्षा और गोपनीयता से समझौता नहीं करेगा। आयोग ने कहा कि जब तक किसी सक्षम न्यायालय द्वारा आदेश न दिया जाए, तब तक कोई भी वीडियो फुटेज किसी उम्मीदवार, एनजीओ या तीसरे पक्ष को नहीं दी जाएगी।*

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