देहरादून। अब कोई भी कर्मी व अधिकारी अपने मौलिक विभाग में पांच साल की नौकरी पूरी करने के बाद ही डेपुटेशन पर जा सकेगा।
नये वित्तीय वर्ष में बाह्य सेवा/प्रतिनियुक्ति / सेवा स्थानांतरण के बाबत नये सिरे से दिशा निर्देश जारी किए गए है।
वित्त सचिव वी षडमुगम की ओर से जारी आदेश में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित पांच सदस्यीय समिति डेपुटेशन से जुड़े मसलों पर अंतिम निर्णय लेगी।
जारी शासनादेश के अनुसार, पांच साल की प्रतिनियुक्ति अवधि पूरी करने के बाद कर्मी व अधिकारी पांच वर्ष के लिए मूल विभाग में लौटेंगे। इसे कूलिंग पीरियड माना जायेगा। यह पांच साल की अवधि पूरी करने के बाद ही वह फिर से डेपुटेशन का अधिकारी होगा। किसी भी कर्मी को सेवाकाल में सिर्फ दो बार ही डेपुटेशन का चांस मिलेगा।
अब अगर तीन साल की प्रतिनियुक्ति/डेपुटेशन की अवधि पूरी करने के बाद दो साल और बढाना है तो वित्त विभाग की अनुमति लेनी होगी।
अगर किसी कार्मिक ने पांच साल की प्रतिनियुक्ति अवधि पूरी कर ली है तो उसे मूल विभाग में लौटना होगा। यह पांच साल की डेपुटेशन अवधि किसी भी कीमत पर नहीं बढ़ाई जाएगी।
यदि कोई कार्मिक पूर्व से बाह्य सेवा/प्रतिनियुक्ति / सेवा स्थानांतरण पर तैनात हैं एवं उनकी सेवानिवृत्ति में 5 वर्ष अवशेष रह गया है तो फिर उस कर्मचारी को अनिवार्य रूप से अपने मूल विभाग में योगदान देना होगा।
शासन ने राज्य सेवा में डेपुटेशन/बाह्य सेवा व सेवा तबादले की शर्तों व मानकों का नये सिरे से निर्धारण किया गया है।
यूं तो राज्य गठन से लेकर आज तक विभागीय डेपुटेशन को लेकर हमेशा से उंगली उठती रही है। अपने हिसाब से नियमों के पेंच ढीले कर पसंदीदा कर्मी व अधिकारी को बरसों बरस तक डेपुटेशन की ठंडी हवा खिलाने की परंपरा बन गयी है।
मौजूदा भाजपा सरकार में भी विभिन्न विभागों में कार्मिक डेपुटेशन/अटैचमेंट को समाप्त किया गया है।
बावजूद इसके कई कार्मिक प्रतिनियुक्ति व अटैचमेंट की आड़ में अपने मूल विभाग से दूर सुविधाजनक स्थानों पर टिके हुए हैं।
नये शासनादेश के अमल को लेकर भी शंका बनी हुई है। चर्चा यह भी आम है कि ऊंची पहुंच वाले नियमों को किनारे कर डेपुटेशन व अटैचमेंट पर खूंटा गाड़कर जमे रहेंगे…
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