उत्तराखंड में जल्द लागू होगा यूसीसी, जानें घोषणा से कानून बनने तक का सफर, क्या आएंगे बदलाव नियम बनने के बाद राज्य में यूसीसी लागू होगा। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यूसीसी को मिली मंजूरी से प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा खासी उत्साहित है।
उत्तराखंड की विधानसभा से पारित समान नागरिक संहिता विधेयक को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है। राज्यपाल ले.जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने विधेयक को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा था। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उत्तराखंड यूसीसी कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य हो गया है।
प्रमुख सचिव विधायी धनंजय चतुर्वेदी ने विधेयक को स्वीकृति मिलने के संबंध में गजट अधिसूचना जारी कर दी है। सचिव (गृह) शैलेश बगोली के मुताबिक, यूसीसी कानून को लागू करने के लिए नियम बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। एक विशेषज्ञ समिति यह काम कर रही है। नियम बनने के बाद राज्य में यूसीसी लागू होगा। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यूसीसी को मिली मंजूरी से प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा खासी उत्साहित है।
घोषणा से कानून बनने तक का सफर
12 फरवरी 2022 को विस चुनाव के दौरान सीएम धामी ने यूसीसी की घोषणा की
मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में यूसीसी लाए जाने पर फैसला
मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति बनी
समिति ने 20 लाख सुझाव ऑफलाइन और ऑनलाइन प्राप्त किए
2.50 लाख लोगों से समिति ने सीधा संवाद किया
02 फरवरी 2024 को विशेषज्ञ समिति ने ड्राफ्ट रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी
06 फरवरी को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पेश हुआ
07 फरवरी को विधेयक विधानसभा से पारित हुआ
राजभवन ने विधेयक को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा
11 मार्च को राष्ट्रपति ने यूसीसी विधेयक को अपनी मंजूरी दी
यूसीसी कानून के नियम बनाने के लिए एक समिति का गठन
यूसीसी लागू होगा तो यह आएंगे बदलाव
सभी धर्म-समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक ही कानून।
26 मार्च 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण की सुविधा।
पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25,000 रुपये का जुर्माना।
पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे।
विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष होगी।
महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं।
हलाला और इद्दत जैसी प्रथा खत्म होगी। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी।
कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा।
एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।
पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।
संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार होंगे।
जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा।
नाजायज बच्चों को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा।
गोद लिए, सरगोसी से असिस्टेड री प्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चे जैविक संतान होंगे।
किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार संरक्षित रहेंगे।
कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत से अपनी संपत्ति दे सकता है।
लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेब पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा।
युगल पंजीकरण रसीद से ही किराया पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे।
लिव इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे।
लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
अनिवार्य पंजीकरण न कराने पर छह माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का प्रावधान होंगे।
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