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Big breaking :-केंद्रीय करो में उत्तराखंड की हिस्सेदारी में लगभग ₹2500 करोड़ की वृद्धि, आपदा के हालातो में ऐसे केंद्र सरकार करेगी मदद

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केंद्रीय करों में उत्तराखण्ड की हिस्सेदारी में लगभग ₹2500 करोड़ की वृद्धि हुई है। पिछले वित्तीय वर्ष 2023 के मूल बजट में उत्तराखण्ड की हिस्सेदारी लगभग ₹11,419 करोड़ थी, जो वित्तीय वर्ष 2024 के मूल बजट में बढ़कर लगभग ₹13,943 करोड़ हो गई है।

केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी में वृद्धि प्रदेश में हो रहे विकास कार्यों और मजबूत हो रही आर्थिकी को दर्शाती है।

 

उत्तराखण्ड की ओर भी सहयोग और मदद का हाथ बढा़ते हुए राज्य को भूस्खलन, बादल फटने और जमीन धंसने की जैसी आपदाओं के लिए विशेष सहायता देने की घोषणा की है। इस राज्य में भी हर साल मानसूनी आपदाओं से हजारों करोड़ के आर्थिक नुकसान के साथ ही भारी जन हानि होती है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गत वर्ष की मानसूनी आपदाओं में 1000 करोड़ से अधिक की हानि बताने के साथ केन्द्र से मदद की गुहार की थी।

 

 

उत्तराखण्ड में ही पौराणिक नगर जोशीमठ धंस रहा है और पिछले 17 महीनों से वहां न तो किसी का पुनर्वास हो सका और ना ही किसा का विस्थापन किया गया। जिसका खामियाजा सत्ताधारी दल ने हाल के बदरीनाथ उपचुनाव में भरा। इस साल की बरसात में अब तक उत्तराखण्ड में हजार से अधिक सड़कें क्षतिग्रस्त होने के साथ ही कृषि योग्य जमीन और सरकारी अवसंरचना क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इस साल अब तक मानसूनी आपदा में उत्तराखण्ड में 27 लोग मारे जा चुके हैं और एक व्यक्ति लापता होने के साथ ही 16 घायल हुए हैं। जबकि 500 से अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए हैं। आसमान ने अभी अपना विकराल रूप नहीं दिखाया। चारधाम यात्रा में ही अब तक 170 तीर्थ यात्री इस साल मर चुके हैं।

 

भूस्खलन आपदा मोचन के लिए मिलेगी मदद

इसरो द्वारा तैयार देश के 147 संवेदनशील जिलों भूस्खलन मानचित्र (लैंड स्लाइड जोनेशन मैप) में उत्तराखण्ड के सभी जिले शामिल किए गए हैं तथा उत्तराखण्ड का रुद्रप्रयाग जिला खतरे की दृष्टि से सबसे ऊपर नम्बर एक पर तथा टिहरी जिला नम्बर दो पर रखा गया है। उत्तराखण्ड में भूस्खलन त्रासदियों का लम्बा इतिहास है। राज्य के 400 से अधिक गांव भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील घोषित किए गए हैं। मगर आर्थिक कारणों के साथ ही जमीन की अनुपलब्धता के चलते उनका पुनर्वास नहीं हो पा रहा है।

जमीन के लिए राज्य सरकार वनभूमि के अधिग्रहण के लिए केन्द्र सरकार से अनुरोध करती रही है मगर उसे न तो स्वीकृति मिली और ना ही उतने संसाधन मिले। एटलस के भूस्खलन जोखिम विश्लेषण में 147 जिलों में हिमाचल के 11 जिले शामिल हैं जिनमें भूस्खलन से सबसे अधिक खतरा मंडी जिले को बताया गया है। खतरे के हिसाब से इस जिले की रैंक 16वीं है। इसी तरह हिमालयी राज्यों में से जम्मू और कश्मीर के 14 जिले जोखिम की सूची में शामिल हैं। इनमें राजौरी देश का चैथा और पुंछ छठा सबसे अधिक भूस्खलन संवेदनशील जिला है। संवेदनशील जिलों की सूची में केरल के कुल 10 जिले हैं जिनमें 3 जिलों को सर्वाधिक जोखिम में रखा गया है।

 

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Author: Swati Panwar
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