दो साल बीते, राज्य लोक सेवा आयोग को नहीं मिला स्थायी अध्यक्ष, केवल पांच सदस्यों से चल रहा काम
दो साल बीतने के बावजूद राज्य लोक सेवा आयोग को स्थायी अध्यक्ष नहीं मिला है। छह सदस्य, एक अध्यक्ष के बजाए केवल पांच सदस्यों से काम चल रहा है। वर्तमान में आयोग के सदस्य रविदत्त गोदियाल बतौर प्रभारी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया दो साल पहले शुरू हुई थी लेकिन आज तक पूरी नहीं हो पाई। शासन ने बदले हुए मानकों के हिसाब से यह प्रक्रिया शुरू की थी। नतीजा छह सदस्य, एक अध्यक्ष के बजाए आज आयोग में केवल पांच सदस्य हैं जिनमें से एक के पास अध्यक्ष का प्रभार है।
कार्मिक विभाग ने नवंबर 2023 में राज्य लोक सेवा आयोग में दो सदस्य और एक अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति जारी की थी। इसके लिए 24 नवंबर तक आवेदन मांगे गए थे। अध्यक्ष व दो सदस्यों के लिए साहित्य, विज्ञान, कला, समाजसेवा, प्रशासनिक और न्याय क्षेत्र विषयों की गहराई से जानकारी व अनुभव रखने वाले केंद्र या राज्य में श्रेणी-क के पद पर कम से कम 10 साल सेवा देने वाले इसके लिए पात्र थे। नियम बदलकर ये प्रावधान किया गया था कि चुने गए अध्यक्ष, सदस्यों को अपने पूर्व के संस्थान से त्यागपत्र देकर उसकी कॉपी कार्यभार ग्रहण करते वक्त जमा करानी होगी।
दो साल से ऊपर का वक्त बीत चुका है। आज आयोग केवल पांच सदस्यों के भरोसे चल रहा है। इनमें से रविदत्त गोदियाल के पास बतौर कार्यवाहक अध्यक्ष की जिम्मेदारी है। अगले साल बतौर सदस्य उनका कार्यकाल पूरा हो जाएगा। उनके अलावा, अनिल कुमार राणा, नंदी राजू श्रीवास्तव, डॉ. ऋचा गौड़ और मनोज सिंह रावत बतौर सदस्य अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अध्यक्ष और एक सदस्य का पद खाली चल रहा है। -डॉ. राकेश कुमार थे आखिरी स्थायी अध्यक्ष
राज्य लोक सेवा आयोग में आखिरी स्थायी अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार थे। उन्होंने 11 जून 2023 तक अपनी सेवाएं दी थीं। इसके बाद डॉ. जगमोहन सिंह राणा ने बतौर कार्यवाहक जिम्मेदारी निभाई। उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद से वरिष्ठ सदस्य रविदत्त गोदियाल बतौर कार्यवाहक जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
पीसीएस समेत तमाम भर्तियों की जिम्मेदारी
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पास प्रदेश की सबसे बड़ी पीसीएस परीक्षा के अलावा तमाम भर्तियों की जिम्मेदारी है। बीते दिनों पेपर लीक प्रकरण के चलते चर्चाओं में रहे आयोग ने नई भर्तियों में पारदर्शिता बढ़ाने के दावे तो किए हैं लेकिन माना जा रहा है कि कहीं न कहीं स्थायी अध्यक्ष होने की सूरत में और बेहतर कार्यप्रणाली हो सकती है।

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