इस बार भीषण गर्मी में जंगल की आग लेगी वन विभाग का इम्तिहान, पिछले साल 11 लोगों की गई थी जान
हर साल औसतन दो हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में जंगल जल रहे हैं। पिछले ही साल जंगल की आग की चपेट में आने से 11 लोगों की जान चली गई और इनके परिवारों को जोवन भर का दर्द दे गई।
हर साल औसतन दो हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में जंगल जल रहे हैं। पिछले ही साल जंगल की आग की चपेट में आने से 11 लोगों की जान चली गई और इनके परिवारों को जोवन भर का दर्द दे गई।
जंगल की आग की सबसे बड़ी वजह चौड़ के पेड़ हैं जो प्रदेश की 57 रेंज में पांच हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में फैले हैं। प्रदेश में दस साल के आंकड़े भी बता रहे हैं कि हर साल औसतन दो हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में जंगल जल रहे हैं। ऐसे में विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजमी है।
पिछले ही साल जंगल की आग की चपेट में आने से 11 लोगों की जान चली गई और इनके परिवारों को जोवन भर का दर्द दे गई। पिछले दस वर्षों के दौरान 28 लोगों की मौत वनाग्नि की वजह से हुई है। पिछले साल बिनसर अभयारण्य में जंगल की आग बुझाने गए छह वन कर्मियों की मौत ने पूरे वन विभाग के अमले को हिलाकर रख दिया था
इस इस अवधि में 82 लोग घायल भी हुए हैं। जंगल की आग के मामले में निलंबन से लेकर अटैचमेंट जैसी कार्रवाई हुई, बाद में कार्मिक बहाल हो गए। जंगल की आग से सबसे अधिक नुकसान की बात करें तो वर्ष 2016 में 2074 जगह जंगल जले, जिसमें 4433.75 हेक्टेयर वन संपदा प्रभावित हुई।
कोरोना काल में सबसे कम घटनाएं दर्ज
वर्ष-2020 जब कोरोना काल था तब सबसे कम 135 घटनाएं रिकॉर्ड हुई और केवल 172.69 हेक्टेयर जंगल ही प्रभावित हुए। 2014 से लेकर 22 जून 2024 तक जंगल में आग लगने की 15294 घटना हुई, इसमें 25016 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बन संपदा को नुकसान पहुंचा।
कंट्रोल बर्निंग, फायर लाइन की सफाई पर हालत ढाक के तीन पात जैसे चन महकमा जंगल की आग से निपटने के लिए सर्दियों में तैयारी शुरू करता है। इसमें कंट्रोल बर्निंग की जाती है। इसके तहत सूखी पत्तियों का नियंत्रित तरीके से जलाया जाता है। फॉरेस्ट लाइन साफ की जाती है ताकि आग लगने की घटना की रोकथाम हो सके। इस बार क्रू स्टेशन (इस बार 1424 बने) बनाने से लेकर बाँच टावर ( इस बार 174 थे) को तैयार किया जाता है। 15 फरवरी से 15 जून तक फॉरेस्ट सीजन घोषित किया जाता है, हालांकि यह बरसात तक चलता है। वन कर्मियों के अवकाश तक रोक दिए जाते हैं लेकिन वनाग्नि की घटना पर काबू बारिश होने पर हो पाया जाता है।
एक अधिकारी… तीन चार्ज
चन महकमे में अधिकारियों के स्थानांतरण चर्चा का विषय रहते हैं। पिछले साल अपर मुख्य वन संरक्षक चनाग्नि का काम देख रहे निशांत वर्मा को शासन ने तीन महत्वपूर्ण जिम्मेदारी साँप रखी थी। उनके पास मानव संसाधन का काम था, इसके विभाग के चजट से जुड़े काम को देखने के लिए वित्त एवं नियोजन की भी जिम्मेदारी थी। पिछले साल उनसे वनाग्नि नियंत्रण का काम हटा लिया गया, पर यह काम किसे दिया गया, इसका आदेश नहीं हुआ तो ये काम उन्हीं के पास रहा। बाद में शासन ने तबादला सूची जारी की, जिसमें फिर निशांत वर्मा को चार्ज दिया गया।
टाइगर रिजर्व में सबसे बड़ी आग, सबसे ज्यादा फॉरेस्ट अलर्ट भी : एफएसआई फॉरेस्ट सर्वे आफ इंडिया भारत वन स्थिति को लेकर रिपोर्ट जारी की थी। इसमें फॉरेस्ट फॉयर का भी उल्लेख है। एफएसआई की रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे अधिक फॉरेस्ट अलर्ट उत्तराखंड से 21,033 आए थे। इसके बाद उडीसा में 20.973 फॉरस्ट अलर्ट आए। एफएसआई ने 24 घंटे से 15 दिनों तक चलने वाली आग के मामले रिपोर्ट किए गए थे। इसमें भी सबसे अधिक मामले उत्तराखंड में आए। चाों के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाले 10 टाइमर रिजर्व में फारेस्ट फॉरेस्ट की स्थिति को लेकर भी रिपोर्ट जारी की है। इसके तहत कार्बेट टाइगर रिजर्व में चार से पांच दिन जंगल जलते रहे होने का उल्लेख है। एफएसआई की रिपोर्ट में बिनसर अभयारण्य, अल्मोड़ा का भी उल्लेख है जहां जंगल की आग की चपेट में आने से छह वन कर्मियों की मौत हो गई है।
15 नहीं 30 जून तक चलेगा फायर सीजन
सामान्य तौर पर फॉरेस्ट फायर सीजन 15 फरवरी से 15 जून तक की अवधि मानी जाती है। पर इसे बरसात होने तक चलाया जाता है। हाल में प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन ने कार्यालय आदेश जारी किया है उसमें जो उसमें फॉरेस्ट सीजन की अवधि 15 जून से 30 जून तक रखी गई है। वन विभाग को सात हजार से अधिक अग्नि रोधी सूट, संसाधन दिए जाएंगे। यह कदम विश्व बैंक की यू प्रियंवर योजना के तहत उठाए जा रहे हैं। आपदा प्रबंधन विभाग ने जरूरी कार्यवाही कर दी है। ■ मौसम विभाग के साथ वन विभाग ने एमओयू किया है जिसके तहत जंगल की आग की दृष्टिगत कस्टमाइज बुलेटिन जारी किया जाएगा। मौसम विभाग जंगल की आग की आशंका का जिक्र भी करेगा।
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