खत्म होगी चिट्ठी मजरुबी की मजबूरी, सिपाही भी कराएंगे मेडिकल, जानिए और क्या होगा बदलाव
पुलिस के कामकाज में ऐसी बहुत सी व्यवस्थाएं हैं जो एक स्तर विशेष के अधिकारी और कर्मचारियों के अधिकार से जुड़ी हैं। इन्हीं में से है यह थानेदार की चिट्ठी मजरुबी।
तीनों आपराधिक कानून बदलने के साथ-साथ इनसे जुड़ी बहुत सी व्यवस्थाएं और शब्दावली का प्रयोग भी बंद हो जाएगा। इन्हीं में से एक है ‘चिट्ठी मजरुबी’। इस जरूरी चिट्ठी की जरूरत अब नहीं रहेगी। अस्पतालों में मेडिकल इस चिट्ठी के बगैर ही अकेले सिपाही भी जाकर करा सकता है। साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में एक्सीडेंट या अन्य कोई घटना होने पर पहले इलाज होगा, फॉर्म बाद में भरा जाएगा। पहले डॉक्टर काम शुरू करेंगे उसके बाद कानून जो करेगा वह बाद में देखा जाएगा।
दरअसल, पुलिस के कामकाज में ऐसी बहुत सी व्यवस्थाएं हैं जो एक स्तर विशेष के अधिकारी और कर्मचारियों के अधिकार से जुड़ी हैं। इन्हीं में से है यह थानेदार की चिट्ठी मजरुबी। यह व्यवस्था इस तरह होती है कि किसी घटना, मारपीट में घायल व्यक्ति थाने आता है तो उसे अस्पताल में मेडिकल के लिए ले जाया जाता है।
अस्पतालों में डॉक्टर मेडिकल रिपोर्ट तभी बनाते हैं जब उन्हें थानेदार की लिखी चिट्ठी मजरुबी दी जाती है। यदि घायल को ले जाने वाली पुलिस टीम के पास चिट्ठी मजरुबी नहीं है तो डॉक्टर की मजबूरी बन जाती है कि वह मेडिकल नहीं कर सकता। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति या समूह कहीं शांतिभंग, मारपीट या अन्य गतिविधियों में लिप्त है तो सिपाही उसे मेडिकल के लिए ले जाते हैं। तब भी इस चिट्ठी मजरुबी की आवश्यकता होती है, लेकिन नए कानून लागू होने के बाद अब चिट्ठी मजरुबी की जरूरत खत्म हो जाएगी।
प्रधानाचार्य पीटीसी नरेंद्रनगर एएसपी शेखर सुयाल ने बताया कि अब केवल सिपाही अस्पताल में अपना परिचय देगा और संबंधित व्यक्ति का मेडिकल कर रिपोर्ट दे दी जाएगी। इसी तरह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (पहले दंड प्रक्रिया संहिता) के लागू होने के बाद प्राइवेट अस्पतालों की जवाबदेही भी पहले से अधिक हो जाएगी। अभी तक देखा जाता है कि प्राइवेट अस्पताल किसी एक्सीडेंट, घटना में घायल आदि का इलाज करने में कानून की बाध्यता बताते हुए तमाम प्रक्रियाएं पूरी करते हैं। इस आधार पर घायल को कभी-कभी बेवजह रेफर भी कर दिया जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। पहले घायल का इलाज किया जाएगा, इसके बाद कानून के तहत जो कार्रवाई होनी हैं वह की जाएगी। एक तरह से यह है कि फॉर्म बाद में भरेंगे, पहले डॉक्टर इलाज शुरू करेंगे।
ये थे अब ये होंगे कानून
पहले – अब
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) – भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस)
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस)
इंडियन एविडेंस एक्ट – भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए)
ऑनलाइन होगी पोस्टमार्टम रिपोर्ट
नए कानूनों के तहत न्याय प्रक्रिया के सभी घटक एक सूत्र से बंधेंगे। इनमें पुलिस, न्याय पालिका, अभियोजन और जेल शामिल हैं। अब अस्पताल भी इससे अलग नहीं रहेंगे। अब शवों के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी ऑनलाइन मिल सकेगी। पुलिस अधिकारी इसे स्वयं देख सकेंगे। इसके लिए प्रदेश के सभी ऐसे अस्पतालों (जहां पर पोस्टमार्टम होते हैं) को पत्र जारी किया गया है। इन सभी जगह यह व्यवस्था शुरू हो जाएगी।
राज्य सरकारों को मिला है पांच वर्ष का समय
नए कानूनों के क्रियान्वयन के लिए आधारभूत ढांचे को भी मजबूत करना होगा। राज्य पुलिस के पास आधुनिक अपराधों की विवेचना से संबंधित उपकरण और जरूरी साजो सामान हैं तो इनकी संख्या बढ़ानी होगी। इनमें फोरेंसिक लैब का ढांचा, कैमरे आदि की जरूरत होगी। इसके अलावा तमाम दिशाओं में काम करना होगा। इसके लिए सभी राज्यों को इनके क्रियान्वयन से संबंधित सुविधाएं जुटाने के लिए पांच वर्ष का समय मिला है।
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