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अदालतों में अब और तारीख नहीं नहीं चलेगी…पहले हाजिर करो मुल्जिम फिर चलेगा मुकदमा

20 साल में सैकड़ों मुकदमों के स्थायी वारंट जारी कर फाइलें अदालतों में सुरक्षित हुईं।
जमानती, गैर जमानती, कुर्की सब कार्रवाई हुई, पर मुल्जिम नहीं मिल पाए।

अदालतों में तारीख पर तारीख खूब दी जाती है। कभी मुल्जिम तारीख मांगता है तो कभी अभियोजन को भी तारीख चाहिए। सालों साल इसी तरह मुकदमे अदालतों में चलते हैं। मगर, कुछ मुकदमे ऐसे भी होते हैं, जिनमें अदालत तारीख देना ही बंद कर देती है।

जी हां, इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि मुकदमा बंद हो गया। मुकदमा फिर चलेगा, लेकिन पहले मुल्जिम अदालत पहुंचेगा तब यह फाइल अदालतों के दफ्तर से निकलेंगी। बीते 20 सालों में ही देहरादून जिले की विभिन्न अदालतों ने सैकड़ों मुकदमों की फाइलों को दाखिल दफ्तर कर लिया है। पुलिस को जब मुल्जिम मिलेंगे तभी ये मुकदमे भी चलेंगे।

इस तरह होती है पूरी प्रक्रिया
दरअसल, मुल्जिम जब अदालत में हाजिर नहीं होता तो पहले उसके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया जाता है। इसके बाद गैर जमानती वारंट। मुल्जिम फिर भी नहीं मिलता तो उसके घर व संपत्तियों की कुर्की के आदेश होते हैं। बावजूद इसके मुल्जिम अदालत नहीं पहुंचता तो अदालत के आदेश पर संपत्तियों को कुर्क कर दिया जाता है। अब इस प्रक्रिया तक भी अगर मुल्जिम हाथ नहीं आता तो उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया जाता है। मुकदमों की फाइल को दाखिल दफ्तर कर दिया जाता है। इसमें कोई समयावधि नहीं होती। जब पुलिस को मुल्जिम मिलेंगे तब फिर से मुकदमों की तारीखें लगनी शुरू होंगी यानी कोर्ट की कार्यवाही शुरू हो जाएगी।

छठी पत्नी के पिता की हत्या करने वाले की फाइल दाखिल दफ्तर

वर्ष 2016 में विशाल चौधरी उर्फ नीरज कुमार निवासी जोहरा, थाना जानी, मेरठ पर आरोप था कि उसने अपनी छठी पत्नी के पिता की हत्या कर दी है। 15 जून 2016 को उसने अपने ससुर इंदर को अगवा किया और फिर उसकी ऋषिकेश मार्ग पर हत्या कर दी। अगस्त 2016 में नेहरू कॉलोनी पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी कर लिया। चार्जशीट कोर्ट में दाखिल हुई। इसके बाद उसे जमानत मिल गई। तब से अब तक विशाल चौधरी का कहीं पता नहीं चला। मेरठ के मूल पते पर भी पुलिस पहुंची तो वहां भी कोई और ही रहता मिला। इस तरह जब वह छह साल अदालत में हाजिर नहीं हुआ तो उसका स्थायी वारंट जारी कर फाइल दाखिल दफ्तर कर दी।

डकैतों का साथी नहीं मिला, स्थायी वारंट जारी

वर्ष 2004 में नेहरू कॉलोनी पुलिस ने डकैती की योजना बनाते छह लोगों को पकड़ा था। इनके लिए काम करने वाले मनोज कश्यप निवासी ईस्ट पटेलनगर, देहरादून को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मुकदमे में चार्जशीट हुई तो मनोज कश्यप को जमानत मिल गई। कश्यप का जो पता था वह मकान उसने किराये पर लिया था। स्थायी पता मालूम नहीं हुआ और अदालत वारंट पर वारंट जारी करती रही। अंत में जब वह नहीं मिला तो वर्ष 2013 में उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी हो गया।

तमंचे के साथ पकड़ा आरोपी, 15 साल तक नहीं आया कोर्ट

रानीपोखरी पुलिस ने मूल रूप से बिहार के रानीपतरा जिले के रहने वाले अशोक कुमार शाह को तमंचे के साथ गिरफ्तार किया था। जनवरी 2006 में हुई इस कार्रवाई के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होते ही अशोक कुमार को जमानत मिल गई। वह जेल चुंगी सहारनपुर में किराये पर रहता था। अदालत की कार्यवाही में कभी शामिल ही नहीं हुआ। पुलिस उसके वारंट लेकर सहारनपुर से लेकर बिहार तक पहुंची। तमाम कोशिशों के बाद भी जब अशोक कुमार नहीं मिला तो सितंबर 2021 में उसकी फाइल को भी दाखिल दफ्तर कर दिया।

150 से अधिक स्थायी वारंट, ज्यादातर चेक बाउंस के
जिले की अदालतों ने विभिन्न थानों से संबंधित 150 से अधिक मुल्जिमों के स्थायी वारंट जारी कर उनकी फाइलों को दाखिल दफ्तर किया है। इनमें सबसे अधिक चेक बाउंस के मामले शामिल हैं। पूरे मामलों में इनकी संख्या लगभग 60 फीसदी है। इसके बाद आबकारी अधिनियम और फिर एनडीपीएस एक्ट के मामले शामिल हैं।

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Author: Swati Panwar
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