Big breaking :-कम बर्फबारी और अधिक बारिश से बिगड़ रही ग्लेशियरों की सेहत, भूस्खलन का खतरा…तथ्य चौंकाने वाले - News Height
UTTARAKHAND NEWS

Big breaking :-कम बर्फबारी और अधिक बारिश से बिगड़ रही ग्लेशियरों की सेहत, भूस्खलन का खतरा…तथ्य चौंकाने वाले

कम बर्फबारी और अधिक बारिश से बिगड़ रही ग्लेशियरों की सेहत, भूस्खलन का खतरा…तथ्य चौंकाने वाले

ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। जिससे ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों का जलस्तर भी बढ़ रहा है। ग्लेशियर के पिघलने के और भी दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं। ग्लेशियर के आसपास के ढलान वाले क्षेत्र होते हैं। वहां पर भूस्खलन, हिमस्खलन का भी खतरा बढ़ जाता है। ग्लेशियरों के पिघलने से आने वाले समय में पानी की उपलब्धता भी कम हो सकती है।

कम बर्फबारी और अधिक बारिश के कारण ग्लेशियरों की सेहत खराब रही है। ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर 5 से 20 मीटर प्रतिवर्ष की दर से पीछे खिसक रहे हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक राकेश भांबरी ने बताया कि तीन-चार दशक पहले 5000 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर बर्फबारी हुआ करती थी मगर अब मानसून के समय सामान्य से अधिक बारिश हो रही है।

इससे ग्लेशियरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वैज्ञानिक राकेश ने बताया कि तापमान में बढ़ोतरी और सामान्य से अधिक बारिश होने के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ी है। उन्होंने कहा कि गंगोत्री क्षेत्र में ग्लेशियरों को लेकर वाडिया संस्थान ने अध्ययन किया था। इसका रिसर्च पेपर वर्ष 2023 और वर्ष 2025 में प्रकाशित हुआ। अध्ययन में सेटेलाइट इमेज आदि का भी प्रयोग किया गया था। इस रिसर्च में उनके साथ डॉ. जयराम सिंह यादव शामिल थे।

स्लोप भी अस्थिर होते हैं भूस्खलन का बढ़ता है खतरा
वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियर के पिघलने के और भी दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं। ग्लेशियर के आसपास के ढलान वाले क्षेत्र होते हैं। वहां पर भूस्खलन, हिमस्खलन का भी खतरा बढ़ जाता है। ग्लेशियरों के पिघलने से आने वाले समय में पानी की उपलब्धता भी कम हो सकती है।

08 मीटर प्रतिवर्ष पीछे खिसक रहा है है चोराबाड़ी ग्लेशियर
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक मनीष मेहता कहते हैं कि ग्लेशियर 5 से 20 मीटर प्रतिवर्ष की दर से पीछे खिसक रहे हैं। जांस्कर में दो ग्लेशियरों के पीछे जाने की दर 20 मीटर प्रतिवर्ष है। कुछ जगह कम भी है। वहीं चोराबाड़ी ग्लेशियर छह से आठ मीटर प्रतिवर्ष पीछे खिसक रहा है। संस्थान के निदेशक विनीत गहलोत कहते हैं कि संस्थान उत्तराखंड जम्मू- कश्मीर, लद्दाख में 11 ग्लेशियरों का अध्ययन कर रहा है। उत्तराखंड में छह सेंटरों के माध्यम से अध्ययन किया जा रहा है। अधिकांश जगह पर ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पीछे खिसक रहे हैं। उनका मॉस बैलेंस कम हो रहा है। ग्लेशियर के पिघलने से कई तरह की चुनौती सामने आ सकती हैं। ग्लेशियर के पिघलने से हिम झीलों के बनने और उससे होने वाले नुकसान का भी खतरा हो सकता है। इसके अलावा पानी का भी संकट उत्पन्न हो सकता है।

गोपेश्वर / नई टिहरी: उच्च हिमालय क्षेत्रों में मानवीय आवाजाही का असर ग्लेशियरों पर
ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही उच्च हिमालय क्षेत्रों में मानवीय आवाजाही का असर ग्लेशियरों पर भी पड़ रहा है। स्थिति यह है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। जिससे ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों का जलस्तर भी बढ़ रहा है। अलकनंदा के साथ ही नंदानगर क्षेत्र में बहने वाली नंदाकिनी, धौली गंगा और ऋषि गंगा ग्लेशियरों से निकलती हैं। ग्लेशियर पिघलने से इन नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। भूगर्भवैज्ञानिक डॉ. दिनेश सती का कहना है कि ग्लोबल क्लाइमेट चेंज के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विवि के एसआरटी परिसर बादशाहीथौल के भू-गर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर डी.एस. बागड़ी के अनुसार अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बारिश होने से वहां की कमजोर मिट्टी ढलान वाले पहाड़ों से बड़े-बड़े बोल्डर (चट्टानें) अपने साथ नीचे ला रही है जो आपदा का एक मुख्य कारण बन रहा है।

बागेश्वर: पिंडारी ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग की मार सबसे अधिक
इस साल औसत से अधिक बारिश हुई है। जिले में अगस्त महीने में पिछले साल की तुलना में 300 मिमी बारिश अधिक दर्ज की गई है। यह आंकड़ा पूरे जिले के निचले इलाकों का है। हिम वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ग्लेशियरों में भी औसत से अधिक पानी बरसा होगा तो यह नुकसानदायक होगा। बागेश्वर जिले में पिंडारी, सुंदरहूंगा और कफनी ग्लेशियर स्थित हैं। पिंडारी ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग की मार सबसे अधिक पड़ रही है। एक अनुमान के अनुसार 60 साल में पिंडारी ग्लेशियर 700 मीटर से अधिक सिकड़ चुका है। इस स्थान पर पहले जीरो प्वाइंट होता था, अब बर्फ देखने के लिए वहां से आगे जाना पड़ता है। यह हालात बढ़ते तापमान के कारण हुए हैं। हालांकि हिम वैज्ञानिक मानते हैं कि औसत से अधिक बारिश भी ग्लेशियरों के लिए नुकसानदायक होती है। वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के सेवानिवृत सीनियर हिम वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल का कहना है कि अधिक बारिश होने पर ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़ हाइट (News Height) उत्तराखण्ड का तेज़ी से उभरता न्यूज़ पोर्टल है। यदि आप अपना कोई लेख या कविता हमरे साथ साझा करना चाहते हैं तो आप हमें हमारे WhatsApp ग्रुप पर या Email के माध्यम से भेजकर साझा कर सकते हैं!

Click to join our WhatsApp Group

Email: [email protected]

Author

Author: Swati Panwar
Website: newsheight.com
Email: [email protected]
Call: +91 9837825765

To Top