#मुख्यमंत्री उत्तराखंड को मडुवे की बुवाई करते देखना अच्छा लगा, छोटा हाथी (छोटा ट्रैक्टर) भी चलाया। कितना अच्छा होता कि हमारी सरकार ने जो मडुवे के खरीद मूल्य के साथ मडुवा और उसके समकक्ष जितनी भी प्रजातियां हैं, जिसमें मारसा से गहत तक, कौणी, झंगोरे से लेकर सारे मोटे अनाज सम्मिलित हैं, मिर्च भी सम्मिलित हैं, उसमें बोनस देने की योजना क्रियान्वित की थी,
₹1000 प्रति कुंतल बोनस देते थे, मडुआ, झंगोरा, मारसा आदि-आदि पर और महिला स्वयं सहायता समूहों को हमने मडुवा थ्रेसर बनवा करके उसका प्रोडक्शन करवाकर के वो थ्रेसर सौंपे थे और उनको ₹10,000 के ऋण पर दिए जाते थे, और उनसे कहा गया था कि जो इससे आमदनी होगी, वह सब आपकी और ऋण ब्याज मुक्त था, अनुदान युक्त ₹10000 के ऋण पर था और उसी पर उनको छोटा हाथी भी दिया जाता था जिसको #छोटा_ट्रैक्टर कहते हैं।
लेकिन आज की सरकार ने वो सारी योजनाएं समाप्त कर दी हैं, तो #मडुआ अब खूब प्रचारित है। चाहे श्री Pushkar Singh Dhami को वह मिलेट लगता हो, लेकिन मैं तो उसमें मडुआ ही अपनी मां, चाचा-चाची, दादी-बहु इन सबकी सूरत देखता हूं। मगर मडुवा बोने वाले गायब हो रहे हैं, यदि उनको वापस लाना है तो फिर जो प्रोत्साहन की नीति हमने बनाई थी, उसको और मजबूत करके उसको लागू करिये।
“#राजनीति में पार्टी से परहेज होता है, योजनाओं से परहेज नहीं होता”।
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