Big breaking :-गंगा की धारा रोकी; घाटों पर टटोलने में लगे लोग सिक्के, सोना-चांदी, 15 दिन तक जारी रहेगा सिलसिला - News Height
UTTARAKHAND NEWS

Big breaking :-गंगा की धारा रोकी; घाटों पर टटोलने में लगे लोग सिक्के, सोना-चांदी, 15 दिन तक जारी रहेगा सिलसिला

गंगा की धारा रोकी; घाटों पर टटोलने में लगे लोग सिक्के, सोना-चांदी, 15 दिन तक जारी रहेगा सिलसिला

हरिद्वार में गंगा की धारा रुकते ही घाटों पर लोग सिक्के, सोना-चांदी टटोलने में लगे हैं। 15 दिन तक यह सिलसिला जारी रहेगा। प्रतिवर्ष होने वाली वार्षिक गंग नहर की बंदी के दौरान समुदाय के लोग यहां दौलत खोजते हैं।

हरिद्वार धर्मनगरी में एक कहावत है ‘बहती गंगा कृपा बरसातीं हैं, ठहरीं तो देतीं हैं धन-दौलत’। यह चरितार्थ तब होता है जब गंगनहर की वार्षिक बंदी होती है। पानी की धारा बंद होते ही हजारों लोग गंगा में लक्ष्मी की तलाश में जुट जाते हैं। वही दृश्य बृहस्पतिवार देर रात से दिखने लगा। गंगा की अविरल धारा में अपने छोटे-छोटे कारोबार के जरिए साल भर की आजीविका का जुगाड़ करने वाले परिवार 15 दिन तक सपनों की दौलत तलाशते हैं।

हरिद्वार के हाईवे से लेकर कानपुर तक अपने-अपने जरूरत का समान गंगा की गोद में खोजते निआरिआ को कई बार बहुत कुछ मिल जाता है। निआरिया को इसमें उनकी जरूरत के सामान के साथ धन और संपदा भी मिलती है। साल के करीब 350 दिन मां गंगा जब बहती है तो श्रद्धालुओं को सुविधा देकर पैसा कमाते हैं। मोक्ष प्राप्त करने के लिए देश दुनिया के लोग हरिद्वार आते हैं। गंगा की अविरल धारा में स्नान दान और आरती करने वालों की यही कामना होती है कि उन्हें मां गंगा आशीर्वाद देंगी।

गंगा बंदी के दौरान धारा में अपने सपनों का वैभव तलाशते
वहीं, वार्षिक बंदी के दौरान कई परिवारों की जीविका का साधन भी मिलता है। इस बार भी मां गंगा की धारा दशहरा पर बंद की गई। रात 11 बजे धारा बंद होते ही कई परिवार गंगा की गोद में कूद पड़े। सभी ने मां गंगा को श्रद्धालुओं की ओर से समर्पित सिक्के, सोने और चांदी मिलते हैं।

निआरिआ का काम घाटों पर फूल परोसी और टीका लगाने का मूल होता है। वार्षिक बंदी में वह इस काम को पूरी तरह छोड़कर गंगा रेते और बजरी को खंगालते हैं। इनमें दूसरे राज्यों से आकर रिक्शा, ठेला और अन्य कारोबार करने वाले भी शामिल होते हैं। सर्वाधिक संख्या तमाम राज्यों के श्रमिक परिवारों की होती है, जो गंगा बंदी के दौरान धारा में अपने सपनों का वैभव तलाशते हैं।

जीवा को सिलिंडर और संजय को मिला है रेत के नीचे दबा फ्रीज

वार्षिक बंदी में कई परिवार जुटे हैं। इसमें सर्वाधिक खुश टेंट और पॉलिथीन डालकर मेला क्षेत्र में जीवन यापन करने वाले जीवा को है। उसका कहना है कि गंगा बंदी के बाद वह एक जगह पर रेत और बजरी हटाया तो उसे लोहे का एक बड़ा सामान होने का पता चुंबक से चला। जब उसने खोदाई की तो इसके नीचे रसोई गैस का सिलिंडर मिला। हालांकि दूसरे निआरिआ संजय को दुख है कि वह भी खोदाई किया वह भी चुंबक के सहारे, लेकिन उसे फ्रीज मिला है। इन निआरिया समाज के लोगों का कहना है कि बीते दिनों देहरादून में आई बाढ़ के बाद सामान बहकर आया होगा। वहीं कई अन्य लोगों का कहना है कि पहाड़ों में आई आपदा का यह प्रमाण है कि वहां किस तरह से घर बर्बाद हुए हैं।

गंगा बंदी के बाद टूट पड़े हजारों लोग

हरिद्वार हरकी पैड़ी से पहले और बाद में लगभग हर घाट के किनारे भीड़ केवल निआरिआ की है। यह परिवार कुनबे के छोटे बच्चे से लेकर घर के बुजुर्ग तक को घाट में लेकर उतरे हैं। इनमें कुछ का कहना है कि उन्होंने सिक्के खूब बटोरे, कई चांदी और सोने के छोटे आभूषण तक मिलने की बात बता रहे हैं। इन्हीं में एक परिवार की वृद्ध बताती हैं कि वह केवल कपड़े जो पहनने लायक हैं पाकर ही खुश है। रमावति देवी का कहना है कि पहले उन्हें बहुत कुछ मिल जाता था, लेकिन अब स्थिति यह है कि लोग गंगा में फेंकने की जगह अन्य जगहों पर दान करने लगे हैं। सिक्के वह भी मिल रहे हैं जिसे दुकानदार लेने से मना करता है।

एक बार फिर दिखी गंगा की धारा में रेलवे लाइन

गंगा की धारा में रेलवे की लाइन हर वर्ष चर्चा में रहती है। इस बार भी रेलवे लाइन दिखी। हालांकि इस बार लाइन के कुछ हिस्से करीब तीन फीट तक घिसकर कम हुए है। यही नहीं लाइन कई जगह से उखड़ चुकी है। सीसीआर के सामने पुल के नीचे तो रेलवे लाइन मुड़कर करीब पांच फीट तक विपरीत दिशा में है। माना जा रहा है कि इस बार हुई बारिश में अधिक बहाव, क्रक्रीट बजरी और पत्थर के साथ तेज धारा ने रेलवे लाइन को क्षति पहुंचाई है।

बता दें कि रेलवे लाइन ब्रिटिश हुकूमत की तकनीकी और विकास का प्रमाण भी है। बताया जाता है कि यह रेलवे लाइन रुड़की आईआईटी से तब जोड़ी गई थी जब वर्तमान की आईआईटी की इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में पहचान थी। वहां से हरकी पैड़ी समेत बैराज और कैनाल के अलावा अन्य विकास कार्य संचालित किए जाते थे। स्थानीय निवासी रमेश चंद्र शर्मा का कहना है कि वह उम्र के लगभग 80 वर्ष पार कर रहे हैं। उन्हें जो बुजुर्गों ने बताया उसके अनुसार अग्रेजी हूकूमत ने निर्माण कार्य में सामाग्री आदि लाने के लिए छोटी लाइन बिछाई थी।

.तीन से चार बोगियों वाले ट्रेन में निर्माण सामाग्री आती थी। उसमे निर्माण कार्य के लिए आवश्यक सामाग्री आती थी। इसी संसाधनों के जरिए अंग्रेजों ने नहर निर्माण से लेकर अन्य कार्य पूर्ण किया। वर्तमान में भी वही रेलवे लाइन मौजूद है। कई जगह तो यह हाईवे निर्माण और कांवड़ पटरी के चलते दबी पड़ी है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़ हाइट (News Height) उत्तराखण्ड का तेज़ी से उभरता न्यूज़ पोर्टल है। यदि आप अपना कोई लेख या कविता हमरे साथ साझा करना चाहते हैं तो आप हमें हमारे WhatsApp ग्रुप पर या Email के माध्यम से भेजकर साझा कर सकते हैं!

Click to join our WhatsApp Group

Email: [email protected]

Author

Author: Swati Panwar
Website: newsheight.com
Email: [email protected]
Call: +91 9837825765

To Top