चुनाव में प्रचार का नया हथियार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस…सियासी दल चौकससियासी सूरमा इस तकनीक से होने वाले फायदे की अपेक्षा नुकसान को लेकर सहमे हैं। लोकसभा चुनाव के प्रचार में उतरी सियासी दलों की सेनाओं के तरकश में एक हथियार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का भी है। ये हथियार कुछ शरारती तत्वों के लिए चुनावी युद्ध की परंपराओं और कायदों से भी ऊपर है। इसलिए सियासी दल एआई के दुरुपयोग को लेकर चौकन्ने हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने पहाड़ की चढ़ाई पूरी कर ली है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एआई से सचेत रहने के लिए कह चुके हैं। उन्हें यह आशंका है कि विपक्षी राजनीतिक दल एआई का प्रयोग कर मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस तो एआई के दुरुपयोग की संभावना ही जता रही थी, इस बीच भाजपा इसकी शिकार भी हो गई। टिहरी गढ़वाल लोस सीट से भाजपा प्रत्याशी माला राज्य लक्ष्मी शाह की छवि धूमिल करने वाली डीपफेक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल कर दी गई। भाजपा बेशक इस प्रकरण से जुड़े एआई कनेक्शन तलाशते हुए थाने में मुकदमा करा चुकी है, लेकिन यह साफ हो गया है कि एआई दोधारी तलवार है। इसके लाखों फायदे हैं, तो उतने ही नुकसान भी।
राजनीतिक दलों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस खूब रास आ रहा है। खासकर मतदाताओं से उनकी भाषा में कनेक्शन जोड़ने में एआई का कोई तोड़ नहीं है। उत्तराखंड में अधिकांश दलों के नेता अपने मतदाताओं को स्थानीय पहाड़ी भाषा में आडियो संदेश भेजना पसंद करते हैं। चुनावी व्यस्तता के बीच हर बार संदेश को रिकार्ड कर पाना संभव नहीं होता। ऐसे में नेताओं के वायस सैंपल के जरिए स्थानीय गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी भाषा में संदेश भेजने के लिए एआई का प्रयोग किया जा रहा है। उधर बड़े नेताओं के भाषणों को हिंदी से पहाड़ी भाषा में तुरंत प्रसारित करने में भी एआई खूब मददगार साबित हो रहा है।
इलाकों की प्राथमिकता के मुताबिक बना देता संदेश
उत्तराखंड में भी प्रत्याशियों के चुनाव खर्च पर निर्वाचन आयोग की पैनी नजर है। प्रत्याशी एआई का प्रयोग कर असीमित खर्चों को कम कर रहे हैं। समर्थकों से लेकर बूथवार अपने पक्ष के मतदाताओं की सूची बनानी हो या कोई अन्य पेपरवर्क, इसके लिए अब कई दिनों तक जॉब वर्क नहीं करना होता। डीप लर्निंग के जरिए डेटा प्रोसेसिंग का काम कुछ मिनटों में किया जा रहा है। इस तरह प्रत्याशी चुनाव खर्च कम कर रहे हैं। उधर एआई प्रत्येक मतदाता को अलग तरह का संदेश भेज सकता है। यह मतदाताओं की प्रोफाइल और प्राथमिकताओं का पता लगाकर संदेश और प्रचार सामग्री को बदल देता है। छोटे गुटों में लोगों तक प्रत्याशियों के संदेश एआई से पहुंच रहे हैं। प्रत्याशियों को यह तकनीक बहुत पसंद आ रही है। जनता से संवाद के लिए इस टेक्नोलॉजी का खूब प्रयोग किया जा रहा है
रास आ रहा एआई चैटबॉट और वर्चुअल असिस्टेंट
इस बार के चुनाव की रणनीति बनाने में मतदाताओं के आंकड़े सभी दलों ने जुटाए। इसके डेटा विश्लेषण में एआई मददगार साबित हुआ। डेटा के जरिए ही पार्टियों ने संसाधनों का इंतजाम करने व विपक्षियों को घेरने की रणनीति बनाई है। एआई चैटबॉट और वर्चुअल असिस्टेंट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मतदाताओं के साथ प्रत्याशी जुड़ रहे हैं। उनके सवालों के जवाब दे रहे हैं। उधर चुनावी नियमों का पालन करने के लिए भी एआई कारगर साबित हो रहा है।सबसे बड़ी चुनौती मतदाताओं के लिए
एआई से चुनाव में फेक सामग्री प्रसारित होने का सबसे बड़ा खतरा है। डीपफेक शब्द भी इसी खतरे से निकला है। डिजिटल दौर में कई बार गलत खबरें और भ्रामक जानकारियां एआई की मदद से लोगों तक पहुंचाई जा रही हैं। ऐसे वीडियो भी पहुंचाए जाते हैं। डीपफेक सामग्री में असली और नकली की पहचान बेहद मुश्किल हो जाती है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक और मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है। निर्वाचन आयोग इसे लेकर खासा सतर्क है। इसमें सबसे बड़ी समस्या मतदाताओं के लिए है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैट-जीपीटी इंटरनेट से जानकारी लेकर आर्टिकल लिख सकता है, यहां तक कि नारे और स्लोगन भी। इस स्थिति में मतदाता यह पता नहीं लगा पाते कि उनके पास जो प्रचार सामग्री आई है, वो पार्टी की ओर से भेजी गई है या एआई के जरिए। जनरेटिव एआई की मदद से किसी के टेक्स्ट मैसेज, फोटो, वीडियो या ऑडियो का इस्तेमाल कर फर्जी कंटेंट बनाना आसान हो गया है। वॉइस क्लोनिंग भी होने लगी है। चुनाव प्रचार में ऐसी फ़र्जी सामग्री के इस्तेमाल से मतदाताओं के गुमराह होने का खतरा बना हुआ है।
2024 के चुनावों में एआई से निपटने के लिए तकनीकी समझौता
एडोब, अमेजॉन, गूगल, आईबीएम, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, ओपनएआई, टिकटॉक और एक्स सहित 20 अग्रणी प्रौद्योगिकी कंपनियों ने 2024 में होने वाले चुनाव में एआई के दुष्प्रयोग को रोकने के लिए रणनीति बनाई है। ऐसी नुकसान पहुंचाने वाली एआई सामग्री का पता लगाने और उसका मुकाबला करने के लिए यह कंपनियां मिलकर काम करेंगी। म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (एमएससी) में, प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों ने भ्रामक एआई सामग्री के चुनावों में हस्तक्षेप को रोकने का संकल्प किया।
महंगा पड़ सकता है झूठी खबर फैलाना
अगर कोई व्यक्ति किसी नेता की नकली आवाज या वीडियो बनाकर झूठी खबर फैलाता है, तो उस पर भारतीय दंड संहिता (1860) या नए कानून भारतीय न्याय संहिता (2023), इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (2000) और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) नियम, 2021 के तहत कार्रवाई हो सकती है।
निर्वाचन आयोग की ओर से इसके लिए विशेषज्ञ आईटी टीम की तैनाती की गई है, जो सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले प्रत्येक चुनावी सामग्री पर नजर रखे हुए है। सामग्रियों को चेक किया जा रहा है, किसी प्रकार की फेक सामग्री पाए जाने पर कार्रवाई की जा रही है।
-सोनिका, जिला निर्वाचन अधिकारी, देहरादून
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