जिस घर में हो रहा था खुशियों का इंतजार, वहां अब पसरा है मातम; हर किसी की आंखें हुईं नम
ज्योति नौ माह की गर्भवती थीं। उसकी पहली संतान दुनिया में सांस ले पाती इससे पहले ही हादसे में जीवन की लौ बुझा दी
रुद्रपुर में कार की टक्कर से ई-रिक्शा सवार चार लोगों की मौत हो गई। ज्योति नौ माह की गर्भवती थीं। उसकी पहली संतान दुनिया में सांस ले पाती इससे पहले ही हादसे में जीवन की लौ बुझा दी। परिजनों को इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि जिस घर में वे जल्द बच्चे की किलकारी गूंजने का इंतजार कर रहे थे, वहां मातम के सन्नाटे के बीच विलाप की चित्कारें सुनाई देगी।
भूरारानी के रविंद्र की शादी करीब डेढ़ साल पहले बिहार की रहने वाली ज्योति से हुई थी। उसकी पत्नी ज्योति नौ माह की गर्भवती थी। नौ महीने तक बच्चे को पेट में रखे ज्योति को प्रसव पीड़ा होने पर रविंद्र अपने पड़ोसी रिश्तेदार मनोज को बुलाकर लाया और पत्नी को सरकारी अस्पताल ले जाने के लिए मां कांति देवी संग ई-रिक्शा में बिठा दिया।
वह खुद भी बाइक से अस्पताल तक पहुंचा। रविंद्र के मामा प्रमोद साहनी, मामी विभा साहनी, बड़ी मामी उर्मिला साहनी और ललिता भी अस्पताल पहुंच गए। परिवार नए मेहमान के आने की खुशियों से सरोबार था। हर कोई अस्पताल के दरवाजे पर टकटकी लगाए था लेकिन डॉक्टर ने अभी नए मेहमान के आने में समय होने की बात कहकर उन्हें लौटा दिया।
इसी बीच तेज रफ्तार कार उनकी खुशियों को रौंदते हुए कभी न भूलने वाला जख्म दे गई। घर में खुशखबरी का इंतजार कर रहे लोगों को जब घटना का पता चला तो वे बेसुध हो गए। विभा, उर्मिला और मनोज की मौत से अस्पताल में कोहराम मच गया। वहीं भाेर होते-होते गर्भस्थ शिशु के साथ ज्योति ने भी हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में दम तोड़ दिया।
घरों में शव पहुंचे तो मची चीख पुकार
मृतकों के शव जब घर पहुंचे तो हर तरफ चीखने-चिल्लाने की आवाज ने सभी के दिल दहला दिए। किसी की बेटी तो किसी का बेटा शवों को गले लगाकर विलाप करते रहे। उर्मिला की मौत से उनके पांच बच्चों से मां का आंचल छूट गया। उनकी दो बेटियों के विवाह हो चुका है, जबकि तीन बेटे दुकानों पर काम करते हैं। विभा के दो बेटे हैं। बाल्यावस्था में मां का साया छिनने से दोनों बच्चों को भी सब्र नहीं आ रहा। ई-रिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण करने वाले मनोज की चार बेटियां और एक बेटा है।
समय से मिल जाता इलाज तो बच सकती थी प्रसूता की जान
हादसे के बाद घायल ज्योति को समय से इलाज मिल जाता तो शायद उसकी या फिर उसके बच्चे की जान बच सकती थी। परिजनों का आरोप है कि करीब तीन नंबरों से आपातकालीन 108 एंबुलेंस सेवा को कॉल किया गया लेकिन एक भी फोन रिसीव नहीं हुआ। वहां पहुंचे अन्य कई लोगों ने फोन किए तब जाकर एक नंबर पर बात हुई। इससे एंबुलेंस करीब आधा घंटा देरी से पहुंची। तब तक सभी घायल सड़क पर तड़पते रहे। ज्योति समुचित इलाज के अभाव में भोर होने तक जिंदगी से लड़ती रही ।
हादसे के दौरान एंबुलेंस के देर से पहुंचने के मामले में 108 एंबुलेंस सेवा के प्रबंधक को जांच करने के आदेश दिए हैं। उन्हें तीन नंबर मिले हैं, जिनसे 108 एंबुलेंस सेवा को कॉल करना बताया गया लेकिन फोन नहीं उठे। जांच में तथ्य सामने आने पर कार्रवाई की जाएगी। अस्पताल में ज्योति के इलाज के बाद उसे घर भेजने की जांच की गई है, पता चला कि ज्योति फॉल्स पेन पर आई थी। डिलीवरी का दर्द नहीं था। मरीज को इंतजार करने के लिए कहा गया था। स्टाफ ने जाने को नहीं कहा लेकिन डॉक्टर के इलाज के बाद मरीज को दर्द में आराम मिला तो परिजनों ने घर जाने की इच्छा जताई। स्टाफ या डॉक्टर ने घर जाने की सलाह नहीं दी थी। परिजनों ने प्रसूता को घर ले जाने के लिए लिखकर भी दिया। जिसके बाद वह वहां से चले आए।
-डॉ. मनोज कुमार शर्मा, सीएमओ
पुलिस की निगरानी में किया गया दाह संस्कार
भूरारानी की ज्योति और सुभाष काॅलोनी की उर्मिला, विभा और ई-रिक्शा चालक मनोज का अंतिम संस्कार पुलिस की निगरानी में हुआ। पोस्टमार्टम के बाद जब चारों शव घरों पर पहुंचे तो वहां भी पुलिस बल तैनात रहा। शव यात्रा के दौरान पुलिस कर्मी भी सुरक्षा की दृष्टि से साथ-साथ चलते रहे। एसटी सिटी मनोज कत्याल ने भी मृतकों के परिजनों को ढाढ़स बंधाते हुए सांत्वना दी।
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