‘दोधारी’ तलवार है ‘राजनैतिक अस्थिरता’ …
तीन दिन पहले कैबिनेट मंत्री डा. धन सिंह रावत की दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात क्या हुई कि उत्तराखण्ड में अस्थिर सरकार चाहने वालों की उम्मीदों को मानो पंख लग गए। सोशल मीडिया में एक गैंग अचानक सक्रिय हो गया। उनका दावा है कि अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की छुट्टी तय है। चर्चाओं में कोई धन सिंह तो कई कोई ऋतु खण्डूड़ी को राज्य का नया मुख्यमंत्री बता रहा है। एक दो और नाम हवा में उछाले जा रहे हैं। सोचा समझा एक अभियान चलाया जा रहा है। सियासी उथल पुथल का ताना बाना बुना जा रहा है।
माहौल बनाया जा रहा है कि उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन को ग्रीन सिग्नल मिल चुका है। धामी सरकार अस्थिर है। सवाल यह है कि वे कौन लोग हैं जो देवभूमि में राजनैतिक उथल–पुथल का वातावरण बनाना चाहते हैं ? किन लोगों को सरकार की स्थिरता रास नहीं आ रही ?
हाल ही मे कैबिनेट मंत्री डा. धन सिंह रावत की दिल्ली की कुछ तस्वीर योशल मीडिया में जारी हुईं। इन तस्वीरों से जाहिर हुआ कि धन सिंह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह वन टू वन मुलाकात हुई है और दिल्ली में उनका ज्यादातर वक्त गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी व हरिद्वार के सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत की शागिर्दी में बीता। उनकी इन्हीं तस्वीरों को आधार बनाकर सोशल प्लेटफार्म में उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन की बात वायरल की जा रही है। इन बातों में कितना दम है यह तो भविष्य में सामने बाएगा लेकिन स्थिर सरकार के लिहाज से उत्तराखण्ड का इतिहास स्वर्णिम नहीं रहा है। वर्ष 2000 में पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद महज 23 वर्षों में अब तक राज्य को 10 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं।
सरकार में अचानक नेतृत्व परिवर्तन का सिलसिला पहली अंतरिम सरकार से ही शुरू हो गया था। 9 नवम्बर 2000 को राज्य के कमान संभालने वाले पहले मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी को महज 11 माह में ही कुर्सी से हटाना पड़ा और 30 अक्टूबर 2001 को भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद वर्ष 2002 में नये राज्य उत्तराखण्ड में पहले विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने कुल 70 विधानसभा सीटों में से 36 पर विजय प्राप्त की। कांग्रेस ने किसी तरह बहुमत का आंकड़ा छू लिया। नारायण दत्त तिवारी ने सरकार की कमान संभाली। कई बार राजैनितक अस्थिरता का माहौल पैदा किया गया लेकिन अपने सियासी कौशल के बूते तिवारी पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने में सफल रहे। 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा को 34 और कांग्रेस को 21 सीटें हासिल हुईं।
भाजपा ने यूकेडी और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाई। बीसी खण्डूड़ी मुख्यमंत्री बनाए गए। दो साल 3 माह में ही ऐसी परिस्थितियां पैदा की गईं कि उनकी कुर्सी छीनकर रमेश पिखरियाल निशंक को सौंप दी गई। राजनितक अनिश्चितता के बीच निशंक भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब नहीं रहे, उनका कार्यकाल भी सिर्फ 2 साल और 3 माह का रहा। 13 मार्च 2012 को बीसी खण्डूड़ी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में हुए कांटे के मुकाबले में कांग्रेस भाजपा पर इक्कीस साबित हुई। कांग्रेस को 32 तो भाजपा को 31 सीटें प्राप्त हुईं। बसपा, यूकेडी और निर्दलीयों के समर्थन से बनी कांग्रेस की सरकार में विजय बहुगुणा (13 मार्च 2012) मुख्यमंत्री बने।
जैसे ही उनका ढाई वर्ष का कार्यकाल पूरा हुआ सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस हाईकमान को एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा और हरीश रावत (1 फरवरी 2014) सूबे के नए मुख्यमंत्री बनाए गए। लेकिन अपनों ने ही हरीश को कुर्सी से हटाने की व्यवस्था कर दी। संवैधानिक परिस्थितियां ऐसी बन गईं कि एक नहीं दो बार (27 मार्च 2016 से 21 अप्रैल 2016 और फिर 22 अप्रैल 2016 से 11 मई 2016) राज्य को राष्ट्रपति शासन भी झेलना पड़ा। दो बार राष्ट्रपति शासन के बीच हरीश रावत को सिर्फ एक दिन का मुख्यमंत्री बनने का मौका भी मिला। हालांकि हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 11 मई 2016 के बाद उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर प्राप्त हुआ। विधानसभा के चौथे चुनाव में वर्ष 2017 में भाजपा बहुमत यानि 57 सीटों के साथ सरकार बनाने में सफल रही। कांग्रेस महज 11 पर सिमट गई। प्रचण्ड बहुमत की सरकार में मुख्यमंत्री बने त्रिवेन्द्र सिंह रावत चौथे साल में ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए और उनके बाद पहले तीरथ सिंह रावत (10 मार्च 2021) और फिर पुष्कर सिंह धामी (4 जुलाई 2021) को एक बाद एक मुख्यमंत्री बनाया गया। तीरथ को तो सिर्फ 116 दिन का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिल पाया। 2022 के पांचवें विधानसभा चनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भाजपा ने इतिहास बनाया। पहली बार राज्य में ऐसा हुआ कि सत्ताधारी दल ने बहुमत (48 सीट) के साथ सत्ता में वापसी की। मौजूदा समय में धामी प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री हैं।
किसी राज्य में महज 23 वर्ष में 10 मुख्यमंत्री मिलें यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है। मुख्यमंत्री बदलने का सीधा सम्बंध सरकार की स्थिरता से होता है। एक सामान्य अवधारणा रही है कि सरकार स्थिर हो तो राज्य अथवा देश का विकास होता है। अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। कार्यसंस्कृति में सुधार होता है। लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष या अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा और राजनेताओं की अति महत्वकांक्षाओं के कारण सरकार के पतन की प्रवृत्ति पनपने लगती है। एक ओर, अस्थिर राजनीतिक माहौल निवेश और आर्थिक विकास की गति को कम कर देता है। दूसरी ओर, सफेदपोशों का आपसी खींचतान राजनीतिक अशांति का कारण बन सकता है। साफ है कि राजनीतिक अस्थिरता किसी राज्य के लिए एक दोधारी तलवार है। यह ऐसी दुविधा है जिसका दुष्परिणाम सिर्फ और सिर्फ जनता को भुगतना पड़ता है।
—
लेटेस्ट न्यूज़ अपडेट पाने के लिए -
👉 न्यूज़ हाइट के समाचार ग्रुप (WhatsApp) से जुड़ें
👉 न्यूज़ हाइट से टेलीग्राम (Telegram) पर जुड़ें
👉 न्यूज़ हाइट के फेसबुक पेज़ को लाइक करें