जाति जनगणना पर आ गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, अब केंद्र सरकार के पाले में गेंद
Supreme Court On Caste Census जातिगत जनगणना का मुद्दा पूरे देश में विपक्ष उठा रहा है। अब इसे लेकर दाखिल एक याचिका पर विचार करने से देश की शीर्ष अदालत ने इंकार कर दिया है। पी. प्रसाद नायडू ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसमें सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराने की मांग की गई थी। हालांकि अदालत की अनुमति के बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली।
जातिगत गणना (Caste Census) मामले में हस्तक्षेप करने से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इंकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला सरकार के दायरे में आता है और नीतिगत मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से मना कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी।
पी. प्रसाद नायडू ने वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला और अधिवक्ता श्रवण कुमार करनम के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर जाति जनगणना कराने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की थी। सोमवार को न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने सुनवाई की।
कोर्ट ने कहा- इस बारे में क्या किया जा सकता?
अदालत ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं से कहा, “इस बारे में क्या किया जा सकता है? यह मुद्दा शासन के दायरे में आता है। यह नीतिगत मामला है।” अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला ने तर्क दिया कि कई देशों ने ऐसा किया है, लेकिन भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। उन्होंने कहा, “1992 के इंद्रा साहनी फैसले में कहा गया है कि यह जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए।”
हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि वह याचिका खारिज कर रही है, क्योंकि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अदालत के मूड को भांपते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया। नायडू ने अपनी याचिका में कहा था कि केंद्र और उसकी एजेंसियां 2021 की जनगणना को बार बार स्थगित कर रही हैं
याचिका में बताया क्यों जरूरी है जाति जनगणना
याचिका में कहा गाय कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और लक्षित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद करेगी। 1931 का अंतिम जाति-वार डेटा पुराना हो चुका है।
जनगणना और सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना से सटीक डेटा केंद्र सरकार के लिए सामाजिक न्याय और संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 2011 में आयोजित एसईसीसी का उद्देश्य जाति संबंधी जानकारी सहित सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर व्यापक डेटा एकत्र करना था।
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