उत्तराखंड में वन आरक्षियों की हड़ताल पर हाई कोर्ट गंभीर, काम पर तुरंत लौटने का दिया आदेश
न्यायालय काम से विरत रहने वाले कर्मचारियों को सुझाव देता है कि वह ऐसा न करें तथा आग प्रबंधन अभ्यास में सक्रिय रूप से भाग लें। यह आदेश वन रक्षक संघ के अध्यक्ष को सूचित किया जाए जो विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है। कोर्ट ने उम्मीद जताई कि संघ के सदस्यों की ओर से इस आदेश की सही भावना से सराहना की जाएगी।
हाई कोर्ट का जंगलों में आग मामले में बहुप्रतीक्षित आदेश वेबवाइट पर जारी हो गया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट के संज्ञान में आया कि वन विभाग के वन आरक्षी हड़ताल पर हैं। कोर्ट ने कहा कि वनों में आग लगने की स्थिति चिंताजनक है।
न्यायालय काम से विरत रहने वाले कर्मचारियों को सुझाव देता है कि वह ऐसा न करें तथा आग प्रबंधन अभ्यास में सक्रिय रूप से भाग लें। यह आदेश वन रक्षक संघ के अध्यक्ष को सूचित किया जाए, जो विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है।
कोर्ट ने उम्मीद जताई कि संघ के सदस्यों की ओर से इस आदेश की सही भावना से सराहना की जाएगी। यह भी कहा कि गुरुवार से वह अपना काम फिर से शुरू करेंगे और ड्यूटी शुरू करेंगे।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये पूछा
सुनवाई के दौरान कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश पीसीसीएफ धनंजय मोहन ने कोर्ट को जानकारी दी कि राज्य में लगभग 400 किलोमीटर फायर लाइन बनाई गई है। इस पर न्यायालय ने पूछा है कि क्या अग्नि शमन प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी को अपनाया जा सकता है, उदाहरण के लिए आंतरिक स्थानों पर पानी ले जाने के लिए ड्रोन का उपयोग करना, तथा आग को रोकने के लिए पानी का छिड़काव करना।
पीसीसीएफ ने कहा कि अभी तक ऐसे किसी ड्रोन का उपयोग नहीं किया जा रहा है, लेकिन विभाग इस सुझाव की विस्तार से जांच कर न्यायालय को उत्तर प्रस्तुत करेंगे।पीसीसीएफ ने कोर्ट को बताया कि विभाग के पास 14000 अग्निशामक यंत्र हैं। लगभग 4300 फायर वॉचर की नियुक्ति की है।
आग की गतिविधियों की निगरानी और नियंत्रण के लिए अस्थायी 1200 से अधिक कर्मियों को नियुक्त की है, वन विभाग की विभिन्न गतिविधियों को पूरा करने और जंगल की आग को नियंत्रित करने के लिए दैनिक आधार पर 10 हजार से अधिक कर्मियों को नियुक्त गया है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि जंगल की आग न केवल वनस्पतियों और जीवों को बल्कि सामान्य रूप से जैव विविधता को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
जनता के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। इस दृष्टि से, बार-बार होने वाली वन अग्नि चिंता का कारण है, तथा इसके लिए विस्तृत उपाय किए जाने तथा “मानक संचालन प्रक्रिया” के रूप में अपनाए जाने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई कार्रवाई तुरंत शुरू की जाए तथा इस प्रकार वन अग्नि के प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके।
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