एनडीएमसी ने हाई कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट, कहा – ‘सुरंग गतिविधियों का जोशीमठ भू-धंसाव से संबंध नहीं’
Joshimath Sinking तपोवन-विष्णुगाड़ पनबिजली परियोजना में एनटीपीसी की सुरंग गतिविधियों और जनवरी 2023 के जोशीमठ भूमि धंसाव के बीच कोई संबंध नहीं है।
यह जानकारी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण नई दिल्ली ने अपनी जांच रिपोर्ट में विशेषज्ञ संस्थानों के साथ व्यापक विचार-विमर्श का हवाला देते दी है। पोर्ट के अनुसार भूभौतिकीय और जल-मौसम संबंधी खतरों के परस्पर प्रभाव के परिणामस्वरूप खतरनाक घटनाएं होती हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना चुनौतीपूर्ण होता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण नई दिल्ली ने पिछले साल दो जनवरी में चमोली जिले के जोशीमठ भू-धंसाव के संबंध में अपनी जांच रिपोर्ट में विशेषज्ञ संस्थानों के साथ व्यापक विचार-विमर्श का हवाला देते हुए बताया है कि तपोवन-विष्णुगाड़ पनबिजली परियोजना में एनटीपीसी की सुरंग गतिविधियों और जनवरी 2023 के जोशीमठ भूमि धंसाव के बीच कोई संबंध नहीं है।
विशेषज्ञों ने जोशीमठ के कुछ क्षेत्रों में भूमि धंसाव की वजह अन्य कारकों को गिनाया है, इसमें औली से जोशीमठ तक अनियंत्रित निर्माण के कारण प्राकृतिक जल प्रवाह में व्यवधान है। इस व्यवधान के कारण सुरागों से जल दबाव में वृद्धि हुई है, परिणामस्वरूप पानी के प्रवाह के साथ मिट्टी के कण हट गए, जिससे उप सतह प्रवाह पथ बने हैं और भूमि धंस गई है।
हाई कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट
एनडीएमए की ओर से हाल ही में हाई कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट में माना है कि हिमालय क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का विकास भूकंप, भूस्खलन, हिमस्खलन, बाढ़ और बादल फटने जैसे कई महत्वपूर्ण कारकों पर विचार कर बेहद सावधानी के साथ किया जाना चाहिए
रिपोर्ट के अनुसार भूभौतिकीय और जल-मौसम संबंधी खतरों के परस्पर प्रभाव के परिणामस्वरूप खतरनाक घटनाएं होती हैं, जिनका पूर्वानुमान लगाना चुनौतीपूर्ण होता है।
रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि हिमालयी क्षेत्र नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र है। इस क्षेत्र की विशेषता जटिल और विविध भूविज्ञान, जटिल नदी प्रणालियां, तापमान और वर्षा में उच्च मौसमी और अंतर-मौसमी परिवर्तनशीलता से चिह्नित विविध जलवायु स्थितियां और जटिल जैव भौतिकीय प्रणालियां हैं।
इसके लिए कई तरह के अंतर-संबंधों की व्यापक समझ की आवश्यकता है, जैसे कि अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम गतिविधियों के बीच संबंध, जल प्रणालियों (सतही और भूजल) और ढलान स्थिरता के बीच और वन आवरण और निर्मित पर्यावरण के बीच संबंध।
राज्य सरकार व एनटीपीसी को दी सिफारिशें
सरकार परियोजना गतिविधियों की सहयोगात्मक निगरानी के लिए एनटीपीसी को सदस्य के रूप में शामिल करते हुए तपोवन-विष्णुगाड़ निगरानी समिति का गठन करे।
एनटीपीसी और राज्य मिलकर और गतिशील आधार पर जोखिम का आंकलन करने के साथ ही
गतिशील जोखिम प्रबंधन और शमन रणनीतियों को परिभाषित और लागू करें।
हरित अवसंरचना समाधानों का उपयोग करते हुए पनबिजली संयंत्र और सुरंग के आसपास के क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक जल निकासी योजना को लागू करेंगे।
निर्माण की प्रक्रिया के दौरान श्रमिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे।
पावर प्लांट क्षेत्र के लिए आपदा प्रबंधन योजना तैयार करेंगे।
सुरंग बोरिंग मशीन या ड्रिल और ब्लास्ट विधि के उपयोग का मूल्यांकन करेंगे।
भू-वैज्ञानिक मानचित्रण, जोनिंग और विनियमन का उपयोग करके जोशीमठ शहर की व्यापक योजना बनाएं।
इन विशेषज्ञ संस्थाओं ने किया था अध्ययन
रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, सर्वे आफ इंडिया, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र, वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी, भारतीय रिमोट सेसिंग संस्थान, केंद्रीय भूजल बोर्ड, आइआइटी रुड़की, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण। उल्लेखनीय है कि जोशीमठ में भू धंसाव तथा क्षेत्र में पन बिजली परियोजनाओं के निर्माण पर रोक लगाने को लेकर हाई कोर्ट में पीआइएल विचाराधीन है। जिस पर 13 अगस्त को सुनवाई होनी है।
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