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Big breaking :-तो उत्तराखंड में मेट्रो प्लान हो गया डब्बा बंद, 80 करोड़ खर्च हुआ चवन्नी भर काम नहीं

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बंदी की कगार पर खड़ी ये Metro परियोजना, करोड़ों का होगा नुकसान! बिना कुछ किए ही 4 अधिकारियों की छुट्टी
उत्तराखंड मेट्रो रेल परियोजना गंभीर संकट में है। डीजीएम भूपेंद्र गोयल की सेवा समाप्ति और पुनर्नियुक्ति ने व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। वित्त मंत्रालय ने इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा है। कारपोरेशन में अब बायोमीट्रिक उपस्थिति लागू की गई है। मेट्रो परियोजना पर 80 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन काम शून्य है। लागत 2303 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है।

बंदी के कगार पर खड़ी मेट्रो रेल परियोजना की व्यवस्था भी हिचकोले खाने लगी है। उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन के कार्यालय से ऐसी खबर सामने आई है, जो यहां की व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

यहां वित्त मंत्रालय से प्रतिनियुक्ति पर आए अनु सचिव (प्रशासन) को मेट्रो रेल कारपोरेशन से पहले हटा दिया जाता है और फिर 13 दिन बाद दोबारा तैनात कर दिया जाता है। लेकिन, इस बाहर और भीतर के खेल में डीजीएम के गले वित्त मंत्रालय का स्पष्टीकरण जरूर गले पड़ गया है।
वित्त मंत्रालय से प्रतिनियुक्ति पर आए भूपेंद्र गोयल को मेट्रो रेल कारपोरेशन में उपमहाप्रबंधक (डीजीएम) वित्त पद पर मई 2023 में तैनात किया गया था। उनकी तैनाती जून 2026 तक के लिए की गई थी। हालांकि, नवंबर 2024 में ऐसा कुछ हुआ कि मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंधन ने उनकी सेवा समाप्त कर दी। साथ ही उन्हें मूल विभाग वित्त मंत्रालय, भारत सरकार में रिपोर्ट करने को कहा गया।
19 नवंबर को जारी किया एक और आदेश

हालांकि, फिर 19 नवंबर को एक और आदेश जारी किया जाता है। जिसमें मुख्य सचिव कार्यालय के पत्र का हवाला दिया जाता है और डीजीएम को दोबारा काम पर रख लिया जाता है। लेकिन, इस दौरान सेवा समाप्ति और वापसी की भनक वित्त मंत्रालय को लग जाती है।
वहां से एक पत्र डीजीएम को मिला है। जिसमें पूछा गया है कि कारपोरेशन से सेवा समाप्ति के बाद उन्होंने मंत्रालय को सूचित क्यों नहीं किया और जब दोबारा कारपोरेशन से सेवाएं देनी शुरू कीं तो उसकी अनुमति क्यों नहीं ली गई। मंत्रालय ने यह भी पूछा है कि सात नवंबर से 19 नवंबर के बीच उनकी उपस्थिति और तैनाती की स्थिति क्या थी। क्या इसे सर्विस ब्रेक माना जाएगा। फिलहाल, डीजीएम साहब इस कार्रवाई का तोड़ तलाशने में जुट हुए हैं।
कारपोरेशन में बदली मस्टररोल की व्यवस्था

उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन में तमाम कार्मिक प्रतिनियुक्ति या कांट्रेक्ट के माध्यम से तैनात हैं। इसलिए कार्यालय के गेट पर ही उपस्थिति के लिए मस्टररोल की व्यवस्था थी। लेकिन, डीजीएम प्रकरण के बाद इस व्यवस्था को बदलकर बायोमीट्रिक हाजिरी शुरू करा दी गई है।
एक और कार्मिक ने दिया इस्तीफा
उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन में इस्तीफे और सेवा समाप्ति के बीच एक और कार्मिक के इस्तीफे की बात सामने आई है। बताया जा रहा है कि संबंधित कार्मिक ने सात जनवरी को इस्तीफा सौंपा है और उन्होंने कार्यालय आना भी बंद कर दिया है। इसके पीछे के कुछ असामान्य कारण बताए जा रहे हैं, लेकिन अब तक पुष्टि नहीं की जा सकी है।
मेट्रो का सफर, अब तक हासिल सिफर
मेट्रो रेल परियोजना की शुरुआत वर्ष 2018-19 में की गई।
मेट्रो के अंतर्गत नियो मेट्रो की डीपीआर आठ जनवरी 2022 को राज्य कैबिनेट ने पास की थी।
12 जनवरी को डीपीआर को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया था, जिस पर कुछ नहीं हो पाया।
मेट्रो पर अब तक 80 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं।

 

 

पूर्व में मेट्रो की लागत 1852 करोड़ रुपये आंकी गई थी, जो बढ़कर 2303 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है।
बिना कुछ किए ही मेट्रो के 04 अधिकारियों की छुट्टी हो गई है और 31 जनवरी को प्रबंध निदेशक जितेंद्र त्यागी भी रिटायर हो रहे हैं। अन्य तीन अधिकारी भी इसी पंक्ति में खड़े हैं।

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Author: Swati Panwar
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