आईटीडीए नोडल एजेंसी तो है, पर सुनने वाला कोई विभाग नहीं, ऑडिट के पत्र भेजकर भी नहीं मिलता जवाब
आईटीडीए की ओर से विभागों के डाटा का बैक किसी अन्य राज्य में भी करने की कवायद चल रही है। इस बारे में कई बार विभागों को पत्र तो भेजे गए, लेकिन जवाब नहीं मिला।
उत्तराखंड को तेजी से डिजिटल दुनिया में मजबूत बनाने वाली सूचना प्रौद्योगिकी विकास एजेंसी (आईटीडीए) के प्रति विभागों का रवैया बेहद उदासीन है। सिक्योरिटी ऑडिट हो या अन्य कोई बात आईटीडीए के पत्रों को विभाग रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं।
इसके पीछे एक वजह ये भी है कि आईटीडीए के पास केवल संचालन, डाटा संभालने की जिम्मेदारी तो है, लेकिन शक्तियां नहीं। काफी समय से आईटीडीए की ओर से विभागों के डाटा का बैक किसी अन्य राज्य में भी करने की कवायद चल रही है।
इस बारे में कई बार विभागों को पत्र तो भेजे गए, लेकिन जवाब नहीं मिला। जब तक विभाग एनओसी नहीं देंगे, तब तक आईटीडीए अपने स्तर से इस डाटा का बैक किसी अन्य राज्य में स्थित स्टेट डाटा सेंटर में नहीं ले जा सकता है। इसी प्रकार आईटीडीए ने विभागों को वेबसाइटों के सिक्योरिटी ऑडिट को लेकर भी कई बार पत्र भेजे, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं।
अब साइबर हमला हुआ, तो पता चला कि कई सरकारी विभागों की अहम वेबसाइटें सुरक्षित ही नहीं हैं। कई वेबसाइटें ऐसी भी पाई गई हैं, जो कि पुरानी तकनीक पर चल रही हैं, जो आज के दौर में किसी सूरत सुरक्षित नहीं हैं। सवाल ये है कि आईटीडीए के पास शक्तियां कितनी हैं।
आईटीडीए केवल तकनीकी सेवाएं दे सकता है, लेकिन बात न मानने वालों पर कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। यानी अगर कोई विभाग अपनी वेबसाइट को आईटीडीए के मानकों के हिसाब से नहीं चला रहा, तो उसे अपने सिस्टम से नहीं हटा सकता। अब साइबर हमले के बाद जरूर कुछ सख्ती की गई है।
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