जांच में खुलासा…आपत्तियों की सुनवाई के बगैर ही शासन को भेजा था मसूरी-ऋषिकेश का मास्टर प्लान
चीफ टाउन प्लानर शशि मोहन के ड्राफ्ट किए हुए मास्टर प्लानों पर सवाल उठने के बाद सचिव आवास आर मीनाक्षी सुंदरम ने मास्टर प्लान पर रोक लगा दी थी। दून में पहले से ही मास्टर प्लान पर सवाल उठ रहे थे। अब मसूरी और ऋषिकेश को लेकर जांच में गंभीर अनियमितताएं पाई जा रही हैं।
तत्कालीन चीफ टाउन प्लानर शशिमोहन श्रीवास्तव के ड्राफ्ट मास्टर प्लानों की जांच आगे बढ़ने के साथ ही कई खुलासे होने लगे हैं। जांच में सामने आया है कि शशि मोहन श्रीवास्तव ने मसूरी और ऋषिकेश सहित देहरादून का मास्टर प्लान ड्राफ्ट किया। दून में तो आपत्तियां ली गईं और सुनवाई भी हुई, लेकिन मसूरी और ऋषिकेश में प्रस्तावित मास्टर प्लान पर शहरवासियों की आपत्ति सुनी ही नहीं गईं। आपत्तियों पर बगैर सुनवाई किए हुए ही मास्टर प्लान को शासन में भेज दिया गया। इसे शासन ने बेहद गंभीरता से लिया है।
गौरतलब हो कि चीफ टाउन प्लानर शशि मोहन के ड्राफ्ट किए हुए मास्टर प्लानों पर सवाल उठने के बाद सचिव आवास आर मीनाक्षी सुंदरम ने मास्टर प्लान पर रोक लगा दी थी। दून में पहले से ही मास्टर प्लान पर सवाल उठ रहे थे। अब मसूरी और ऋषिकेश को लेकर जांच में गंभीर अनियमितताएं पाई जा रही हैं
यह बताया गया है कि मसूरी व ऋषिकेश में आम लोगों ने बड़ी संख्या में आपत्तियां दर्ज कराईं। नियमानुसार प्रत्येक आपत्ति पर सुनवाई किया जाना आवश्यक है, लेकिन दोनों जगहों पर जनसुनवाई की आपत्तियां निस्तारित नहीं की गईं। यह तथ्य सामने आने के बाद शासन बेहद गंभीर हो गया है। इसे जनता के अधिकारों का हनन माना है।
सवाल उठने से लेटलतीफी का खतरा
चीफ टाउन प्लानर के ड्राफ्ट दून मास्टर प्लान पर सवाल उठने के बाद लेटलतीफी का खतरा सताने लगा है। पहले ही दून मास्टर पर संकट कम नहीं रहे। वर्तमान में लागू मास्टर प्लान को वर्ष 2001 में लागू कर दिया जाना चाहिए था। इसे देरी के के कारण 2005 में लागू किया गया। खामियों के चलते मास्टर प्लान को वर्ष 2008 में प्रभावी किया जा सका। इसे भी वर्ष 2013 में संशोधित करने की जरूरत पड़ गई। प्लान में वर्ष 2025 तक के विकास का खाका था। मास्टर प्लान विलंब से लागू किया गया तो इसका व्यापक असर दून के विकास पर पड़ा।
अवैध निर्माणों को मिलेगा बढ़ावा
नए मास्टर प्लान में लेटलतीफी भारी पड़ सकती है। वर्ष 2008 में एमडीडीए के मास्टर प्लान को विलंब से लागू किया गया। तब तक शहर 1463 हेक्टेयर में फैल चुका था। वर्ष 2003 तक शहर में विस्तार की दर 32 प्रतिशत थी। अगले पांच साल में यह 49 प्रतिशत तक पहुंच गई। मास्टर प्लान के अभाव में खुलकर मनमर्जी से निर्माण किए गए। अगर अब मास्टर प्लान में लेटलतीफी हुई तो अवैध निर्माणों को बढ़ावा मिलेगा।
दून के मास्टर प्लान पर लगीं प्रमुख आपत्तियां
– मास्टर प्लान अंग्रेजी में है। ड्राफ्ट को हिंदी और सरल भाषा में आम लोगों तक पहुंचाकर राय ली जाए।
– आमजन के साथ शहर के सभी प्रमुख क्षेत्रों में जनसंवाद कर मास्टर प्लान पर चर्चा की जाए।
– आवासीय, व्यावसायिक और ग्रीन एरिया में संतुलन बनाया जाए
– सड़कों की चौड़ाई मास्टर प्लान में 12 मीटर रखी गई है, इसका धरातल पर मिलान भी कराया जाए।
– औद्योगिक क्षेत्रों की स्थिति स्पष्ट की जाए, जहां औद्योगिक क्षेत्र दर्शाए गए वहां सुविधाओं पर चर्चा हो।
देहरादून में प्रस्तावित मास्टर प्लान पर सुनवाई की गई है। सभी आपत्तियों का निस्तारण किया जा रहा है। शहर जनता के लिए है और उनकी राय सबसे अहम है। बगैर शहरवासियों की सहमति के कोई मास्टर प्लान लागू नहीं किया जाएगा।
– बंशीधर तिवारी, उपाध्यक्ष, एमडीडीए
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