मुझे अंग्रेजी नहीं आती’- कोर्ट में ADM का कबूलनामा, हाई कोर्ट का सवाल- क्या ऐसे अफसर चला सकते हैं शासन?
नैनीताल हाई कोर्ट के एक फैसले ने राज्य के न्यायिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में एक नई बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव को यह जांचने का निर्देश दिया है कि क्या कोई एडीएम जिसने कोर्ट में अंग्रेजी न बोल पाने की बात स्वीकार की है उसे किसी कार्यकारी पद पर नियंत्रण सौंपा जा सकता है।
हाई कोर्ट के एक निर्णय से राज्य के न्यायिक व प्रशासनिक क्षेत्र में नई बहस छेड़ दी है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बाहरी राज्यों के लोगों के नाम यहां की मतदाता सूची में
शामिल होने से संबंधित मामले में पेश नैनीताल के एडीएम प्रशासन विवेक राय की अंग्रेजी नहीं बोल सकने से संबंधित स्वीकारोक्ति के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव को यह जांच करने का निर्देश दिया कि क्या अपर जिला मजिस्ट्रेट स्तर के किसी अधिकारी को, जिसने न्यायालय में स्वीकार किया है कि वह अंग्रेजी नहीं बोल सकता, किसी कार्यकारी पद पर प्रभावी नियंत्रण सौंपा जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ने इस निर्णय पर असहमति जताते हुए राज्य सरकार को इस निर्णय को प्रमुख सचिव न्याय से परामर्श लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने का सुझाव दिया है।
दरअसल 18 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में नैनीताल के समीपवर्ती बुढ़लाकोट ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में बाहरी राज्यों के लोगों के नाम हटाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई थी। कोर्ट के निर्देश पर एडीएम विवेक राय व कैंची धाम की एसडीएम मोनिका कोर्ट में पेश हुए थे। इसी दौरान कोर्ट ने एडीएम से जानकारी ली थी।
एडीएम के हिन्दी में जवाब देने पर कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयुक्त व मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि वह यह जांच करें कि क्या एडीएम स्तर के अधिकारी, जिन्होंने स्वीकार किया कि अंग्रेजी नहीं बोल सकते, ऐसे अधिकारी कार्यकारी पद को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने की स्थिति में होंगे?
देश के साथ ही उत्तराखंड की राजभाषा है हिन्दी
नैनीताल: सुप्रीम कोर्ट व नैनीताल हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस पीसी पंत ने हाई कोर्ट के इस निर्णय पर असहमति जताते हुए कहा कि देश के साथ ही उत्तराखंड की राजभाषा हिन्दी है। संविधान के अनुच्छेद-348 के तहत सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों के कामकाज की भाषा अंग्रेजी है लेकिन राजभाषा को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि यदि कोई अधिकारी या याचिकाकर्ता हिन्दी भाषी है तो उनकी मदद के लिए हाई कोर्ट में अनुवादक के आठ पद स्वीकृत हैं। सुप्रीम कोर्ट में यदि कोई हिन्दी में बहस करते हैं तो उन्होंने अपने कार्यकाल में खुद अंग्रेजी भाषी न्यायमूर्ति की मदद की। यहां राजभाषा का अपमान नहीं करना चाहिए।
इस मामले में कोर्ट को सरकारी अधिवक्ता की मदद लेनी चाहिए थी और भ्राता न्यायाधीश से भी परामर्श करना चाहिए था।
उन्होंने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए कहा कि राज्य सरकार को हाई कोर्ट के इस निर्णय को प्रमुख सचिव न्याय व विधि परामर्शी से सलाह मशविरा करने के बाद विशेष अनुमति याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए। जोड़ा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में न्यायाधीशों ने हिन्दी में निर्णय दिए हैं, वहां भी हिन्दी में याचिकाएं दायर होती हैं।
यह पूरी तरह संवैधानिक मामला है: कार्तिकेय
नैनीताल: हाई कोर्ट के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने हाई कोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि यह पूरी तरह कानूनी मामला है। उन्होंने कहा कि के अनुसार संविधान के अनुच्छेद-348 में साफ है कि संवैधानिक कोर्ट सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की पहली भाषा अंग्रेजी है, संसद की भी पहली भाषा अंग्रेजी है।
1965 में केंद्रीय कैबिनेट की कमेटी ने तय किया कि संवैधानिक अदालतों की भाषा के मामले में चीफ जस्टिस आफ इंडिया से अनिवार्य रूप से परामर्श किया जाए। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद कोर्ट में हिन्दी में याचिका दायर करने को मंजरी दी। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे 1969 में प्रभावी किया। मध्य प्रदेश में 1971, पटना हाई कोर्ट में 1972 में हिन्दी लागू हुई।
राजस्थान हाई कोर्ट में भी अंग्रेजी के साथ हिन्दी में कार्रवाई की अनुमति मिली है। गुप्ता बताते हैं कि तमिलनाडू, गुजरात, छत्तसीगढ़, पश्चिम बंगाल व कर्नाटक सरकार ने भी अपने राज्य की हाई कोर्ट में स्थानीय भाषा में सुनवाई का प्रस्ताव दिया तो 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे नामंजूर कर दिया।
उन्होंने भी माना कि उत्तराखंड में राज्यपाल चीफ जस्टिस से परामर्श के बाद हाई कोर्ट में हिन्दी को लागू कर सकते हैं।
हाई कोर्ट में पहले भी आ चुका है सवाल
नैनीताल: हाई कोर्ट में हिन्दी में बहस व याचिका दायर करने का सवाल पहले भी आ चुका है। सालों पहले हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से भी यह मामला उठा था। इसके बाद से याचिकाओं में एनेक्चर आदि हिन्दी के साथ हिन्दी अनुवाद संलग्न होते हैं।

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