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लाचार सिस्टम, तस्कर बेखौफ: शांत उत्तराखंड में वन माफिया को कौन दे रहा पनाह, अब इस वजह से उठ रहे सवाल

तराई के जंगलों में तस्करों की सक्रियता ने जंगलात महकमे की नींद उड़ा दी है। लगातार लकड़ी तस्करी की घटनाएं सामने आ रही हैं। उसे रोकने के लिए जैसे ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुंच रही है तो माफिया की ओर से टीम पर हमला किया जा रहा है।

पिछले ढाई महीने से तराई के जंगलों में तस्करों की सक्रियता ने जंगलात महकमे की नींद उड़ा दी है। लगातार लकड़ी तस्करी की घटनाएं सामने आ रही हैं। उसे रोकने के लिए जैसे ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुंच रही है तो माफिया की ओर से टीम पर हमला किया जा रहा है। गोलियां चलाई जा रही हैं। वन कर्मियों की पिटाई हो रही है। वन कर्मी बमुश्किल अपनी जान बचा रहे है। इन सबके बावजूद अब तक तस्करों के खिलाफ जंगलात और पुलिस महकमे की ओर से कोई बड़ा एक्शन नहीं लिया गया है। सिस्टम की खामोशी के आगे विभाग के कर्मचारियों के हौंसले पस्त हो रहे हैं और माफिया बेकाबू होते जा रहे हैं। सिस्टम से उनका डर खत्म होते जा रहा है। यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई है? पांच प्वाइंट में पूरे हालात को समझिए।

संसाधन का संकट: वन विभाग संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। तराई के जंगलों में माफिया अत्याधुनिक हथियार से लैस है, जबकि वन विभाग के पास सीमित हथियार है। विभाग की टीम तस्करों के खिलाफ प्रभावी तरीके से जवाबी कार्रवाई नहीं कर पा रही। हथियार के दम पर तस्कर कभी वन विभाग से जब्त जेसीबी छुड़ाकर भाग रहे तो कभी वन दरोगा की पिटाई करके उन्हें बंधक बना ले रहे हैं। सरकारी स्तर पर ऐसी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो पा रही, जिससे तस्करों के हौंसले पस्त हो पाए। उच्च स्तर पर ऐसे मामलों को बेहद हल्के में लिया जा रहा है। यदि समय रहते इसे रोका नहीं गया तो भविष्य में स्थितियां और खराब हो जाएंगी, जिसे बाद में संभालना मुश्किल हो जाएगा।

 

फोर्स की कमी : तराई क्षेत्र में वन विभाग फोर्स की सबसे अधिक कमी महसूस की जा रही है। रात में कार्रवाई करने के लिए आठ से दस वन कर्मी जंगलों में जाते है, जबकि मौके पर 20 से अधिक तस्कर होते है। उनके सामने फोर्स कम पड़ जाती है। इस कारण वन विभाग की टीम को बैकफुट पर आना पड़ रहा है। हर बार यही कहानी सामने आ रही है। पुलिस के साथ मिलकर या विभाग दो-तीन डिविजन की फोर्स एक साथ लेकर कार्रवाई करे तो स्थिति कुछ अलग होगी।

 

खुफिया तंत्र फेल : तराई में वन विभाग से लेकर पुलिस का खुफिया तंत्र पूरी तरह फेल हो गया है। तस्करों को वन विभाग की हर हलचल के बारे में पहले से ही भनक लग रही है। ऐसे में तस्कर सतर्क हो रहे हैं, जबकि वन विभाग की कार्रवाई की फ्लाॅप साबित हो रही है। अब तक पुलिस तस्करों की कुंडली नहीं खंगाल पाई है। सामने आ रहा है कि तस्करों का ऊधमसिंह नगर से सटे यूपी के जिलों से तार जुड़े हो सकते हैं लेकिन उनके नेटवर्क के बारे में वन और पुलिस महकमा कोई जानकारी नहीं जुटा पा पाया है। हर बार वन विभाग की टीम को अपनी जान बचाकर भागना पड़ रहा है। 25 मई को ही एक बार तराई केंद्रीय वन प्रभाग के टांडा रेंज में जवाबी कार्रवाई के दौरान तस्कर लखविंदर को गोली लगी।

प्रशासनिक नाकामी : तराई में वन माफिया जिस तरह लकड़ी तस्करी और वन विभाग की टीमों पर हमला कर सरकारी सिस्टम को चुनौती दे रहे हैं। उससे साफ है कि वन और पुलिस विभाग में उच्च स्तर पर हर मामले को हल्के में लिया जा रहा है। इससे वन माफिया को पनपने का मौका दिया जा रहा है। विभाग की ओर से कोई ऐसी रणनीति नहीं बनाई जा रही, जिससे तस्करों के कमर को तोड़ा जा सके। यदि प्रशासनिक सक्रियता दिखाई जाएगी तो स्थिति बिल्कुल अलग होगी।

तालमेल का अभाव : वन विभाग के भीतर से यह भी सूचना आ रही है कि विभागीय टीमों में बेहतर तालमेल की कमी है। इसी कारण हर बार वन माफिया विभाग की टीम पर भारी पड़ रहे हैं। विभाग की टीमें आधी अधूरी तैयारी के साथ रात के अंधेरे में कार्रवाई करने के लिए पहुंच रही हैं। माफिया की ओर से गोलियां चलाने के बाद टीम के सदस्यों को मजबूरी में जान बचाकर भागना पड़ रहा है।

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Author: Swati Panwar
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