100-100 रुपये के स्टांप पेपर पर सरकारी जमीन के सौदे, झांसे में आकर लोगों ने लगा दिए लाखों; अब बुलडोजर ने रौंदे सपने
रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 के बाद के निर्माण ध्वस्त किए जा रहे हैं। लेकिन पुरानी बस्तियों में भी भय का माहौल है। विपक्षी दल उन्हें भी ध्वस्तीकरण का डर दिखा रहे हैं तो कई सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधि भी तोड़े जा रहे अवैध निर्माण को बचाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। हालांकि एनजीटी के निर्देश पर की जा रही कार्रवाई के विरोध में कोई भी खुलकर…दून में 100-100 रुपये के स्टांप पेपर पर सरकारी जमीनों के सौदे करने का खेल पुराना है। ज्यादातर मलिन बस्तियों में नदी किनारे की जमीनों पर कब्जा कर उन्हें स्टांप पेपर पर बेच दिया गया।
दीपनगर में भी तोड़े गए आठों मकान एक ही व्यक्ति की ओर से बेची गई जमीनों पर बनाए गए थे।यहां कुछ लोग झांसे में आकर जमीन खरीद बैठे और फिर मकान खड़े कर दिए। जमीन बेचने वाला लाखों रुपये लेकर कार्रवाई की जद से दूर है और आठ परिवार जीवनभर की जमा-पूंजी लुटाकर भी बेघर हो गए।देहरादून में नदी-नालों के किनारे लोगों को बसाकर नेता अपनी राजनीतिक रोटी सेकते हैं तो छोटे-बड़े भूमाफिया करोड़पति बन जाते हैं। सरकारी जमीनों को घेरकर पहले चहारदीवारी और फिर कच्चा या पक्का निर्माण कर कुछ लोग अपनी दुकानदारी चला रहे हैं
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भोले-भाले लोग झांसे में आकर खरीद ली संपत्ति
कोई स्टांप पेपर पर जमीन और मकान बेच रहा है तो कोई कमरे किराये पर देने से लेकर दुकाने खोलने का धंधा कर रहे हैं। भोले-भाले लोग इनके झांसे में आकर यहां संपत्ति खरीद लेते हैं और फिर कार्रवाई की जद में आने पर किस्मत को कोसते हैं।
स्थानीय नेताओं के संरक्षण में भू-माफिया सरकारी जमीनों को बेच रहे हैं और बाहर से आए आर्थिक रूप से कमजोर परिवार इनका शिकार बन रहे हैं। किसी ने पांच लाख तो किसी ने 10 से 15 लाख रुपये लगाकर यहां छोटा का घर बना लिया, लेकिन अब यह अवैध निर्माण बताकर तोड़ दिया गया।वोट बैंक की खातिर जनप्रतिनिधि लगा रहे एड़ी-चोटी का जोर
रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 के बाद के निर्माण ध्वस्त किए जा रहे हैं। लेकिन, पुरानी बस्तियों में भी भय का माहौल है। विपक्षी दल उन्हें भी ध्वस्तीकरण का डर दिखा रहे हैं तो कई सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधि भी तोड़े जा रहे अवैध निर्माण को बचाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।
हालांकि, एनजीटी के निर्देश पर की जा रही कार्रवाई के विरोध में कोई भी खुलकर सामने नहीं आ रहा है, लेकिन गुपचुप तरीके से अतिक्रमणकारियों की पैरवी की जा रही है। इसमें छोटे जन प्रतिनिधि से लेकर कई बड़े नेता शामिल हैं। नगर निगम और प्रशासन के अधिकारियों पर भी दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
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