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Big breaking :-सरकार ने नहीं ली सुध, ग्रामीण खुद ही जुटे डोडीताल ट्रेक सुधारने में, देश-विदेश से पहुंच रहे ट्रेकर

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सरकार ने नहीं ली सुध, ग्रामीण खुद ही जुटे डोडीताल ट्रेक सुधारने में, देश-विदेश से पहुंच रहे ट्रेकर

डोडीताल समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है। मानसून के दौरान यह ट्रेक तीन स्थानों हलम्याती सहित चंजाका नामे तोक में क्षतिग्रस्त हो गया था।

उत्तरकाशी डोडीताल ट्रेक सालों से बदहाल पड़ा है। इस पर ट्रेकर और ग्रामीण जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे हैं। लंबे समय से जब प्रशासन और वन विभाग से गुहार लगाने के बाद भी इसकी स्थिति नहीं सुधरी, तो ग्रामीण स्वयं ही श्रमदान कर ट्रेक के निर्माण में जुट गए हैं।

अगोड़ा गांव से डोडीताल तक प्राकृतिक सौंदर्य से भरा करीब 16 किमी का ट्रेक है। डोडीताल समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है। मानसून के दौरान यह ट्रेक तीन स्थानों हलम्याती सहित चंजाका नामे तोक में क्षतिग्रस्त हो गया था। साथ ही देवरागाड में अस्थायी पुलिया भी बह गई थी।

ट्रेक पर 12 माह देश-विदेश से ट्रेकर ट्रेकिंग के लिए पहुंच रहे हैं। स्थानीय निवासी सुमन पंवार, अनोज पंवार का कहना है कि ट्रेक क्षतिग्रस्त होने के कारण ट्रेकर जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे हैं। वो घास और पेड़ पकड़कर आवाजाही करने को मजबूर हैं। एक छोटी सी चूक जान पर भारी पड़ सकती है।

हलम्याती तोक में ट्रेक का निर्माण शुरू
वहीं, ग्रामीण महिलाएं भी जान जोखिम में डालकर अपने मवेशियों के चारा ला रही हैं। इस संबंध में प्रशासन और वन विभाग को अवगत करवाया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। वहीं, जब सुनवाई नहीं हुई तो बरसात के बाद अपने मवेशियों को घर तक पहुंचाने के लिए ग्रामीणों ने चंजाका नामे तोक में 10 मीटर क्षतिग्रस्त मार्ग की मरम्मत की तो वहीं देवरागाड पर आजतक पक्का पुल नहीं बन पाया। जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो ग्रामीणों ने स्वयं ही हलम्याती तोक में ट्रेक का निर्माण शुरू कर दिया है।

ग्रामीण प्रत्येक दिन 20 लोग बारी-बारी से अपना योगदान दे रहे हैं। यहां पर करीब 15 मीटर हिस्सा क्षतिग्रस्त है। ग्रामीणों ने बताया कि एक-दो दिन में मार्ग पूरी तरह बनकर तैयार हो जाएगा। वहीं वन विभाग इस ट्रेक पर जाने वाले ट्रेकर्स और एजेंसियों से कर वसूल करता है, लेकिन उनकी ओर से इस ट्रेक पर उचित व्यवस्थाएं तो दूर, बल्कि क्षतिग्रस्त मार्ग को तक ठीक नहीं कर पाए हैं।

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Author: Swati Panwar
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