ग्लेशियर झील फटने से नहीं… फिर क्यों आई धराली आपदा? ISRO की जारी नई सेटेलाइट तस्वीरों से पता चला
उत्तराकाशी के धराली में आई आपदा के कारणों की खोज में वैज्ञानिकों को नई जानकारी मिली है। इसरो के सैटेलाइट चित्रों से पता चला है कि खीर गंगा में आपदा का कारण ग्लेशियर झील का फटना नहीं था। भूवैज्ञानिकों के अनुसार आपदा से पहले उस जगह पर कोई झील नहीं थी। भारी वर्षा के कारण श्रीकंठ पर्वत पर जमा मलबा खिसकने की संभावना है।
धराली आपदा के स्पष्ट कारणों की तलाश में जुटे विज्ञानियों को इस दिशा में कुछ नई जानकारी मिली है। इसरो के नेशनल रिमोट सें¨सग सेंटर की ओर से जारी नए सेटेलाइट चित्रों के माध्यम से यह साफ कर दिया गया है कि धराली में खीर गंगा से निकली आपदा का कारण ग्लेशियर झील का फटना नहीं था।
हालांकि, इसके बाद भी यह सवाल अपनी जगह कायम है कि तो फिर खीर गंगा ने किस वजह से इतना रौद्र रूप धारण कर लिया। सेटेलाइट चित्रों के अध्ययन के बाद एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. एमपीएस बिष्ट ने कहा कि आपदा पूर्व के एक साल पुराने सेटेलाइट चित्रों में कोई झील नजर नहीं आ रही है।
यह भी साफ है कि एक साल के भीतर किसी भी दशा में इतनी बड़ी झील नहीं बन सकती, जिससे इतनी बड़ी जलप्रलय आ जाए।नए सेटेलाइट चित्रों में अभी भी खीर गंगा के अपर कैचमेंट (ऊपर का जलग्राही क्षेत्र) में घने बादल नजर आ रहे हैं।
जिससे बहुत कुछ अभी भी बताया जाना शेष है। लेकिन, अब यह जरूर स्पष्ट हो गया है कि ऊपर कहीं पर झील नहीं फटी है तो सिर्फ इस बात की प्रबल संभावना है कि अतिवृष्टि के कारण श्रीकंठ पर्वत पर ग्लेशियर के पास जगह-जगह जमा भारी मलबा निचले क्षेत्रों में खिसका है।
धराली और हर्षिल घाटी में जहां पर भी (हर्षिल आर्मी कैंप, सुक्खी टाप, गंगनानी और धराली) पानी का सैलाब आया है, वह सभी लगभग एक ही पर्वत श्रृंखला से जुड़े हैं। प्रो. एमपीएस बिष्ट के अनुसार, मौसम विज्ञान विभाग ने हर्षिल क्षेत्र में बेहद भारी वर्षा (अति वृष्टि) से इन्कार किया है, लेकिन यह आंकड़े निचले क्षेत्रों के हैं।
जिस जगह से जलप्रलय निकली हैं, वह क्षेत्र मौसम विभाग के आंकड़े एकत्रित करने वाली जगह से कम से कम एक किलोमीटर ऊपर है। ऐसे में वहां भी वर्षा में भिन्नता संभव है।
भवनों की क्षति वाले सेटेलाइट चित्र भी भेजे गए, 150 से अधिक बताई संख्या
इसरो के सेटेलाइट चित्र में आपदा पूर्व और आपदा के बाद भवनों की स्थिति भी बताई गई है। पूर्व के चित्र में यह संख्या 200 के करीब आंकी गई थी, जबकि पृथक रूप से भवनों के आकलन वाले चित्र में क्षतिग्रस्त भवनों की संख्या 150 से अधिक है। इसमें आंशिक रूप में क्षतिग्रस्त भवनों का आंकड़ा शामिल नहीं है। ऐसे में भवन क्षति की रेंज अभी भी 150 से 200 के बीच हो सकती है।
750 मीटर चौड़ाई में पसरा है मलबा
एक सेटेलाइट चित्र में आपदा के बाद पसरे मलबे की स्थिति भी बताई गई है। स्पष्ट किया गया है कि जलप्रलय के साथ आया मलबा धराली क्षेत्र में चौड़ाई में 750 मीटर, जबकि लंबाई में (खीर गंगा के बहाव वाली दिशा में) 450 मीटर पर पसरा है।

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