जीआईएस आधारित तकनीकी से राज्य में होने जा रहे हैं कई अहम बदलाव, शोध प्रगति रिपोर्ट पेश की गई
जीआईएस तकनीक के माध्यम से उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में आपदा प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, जल संसाधन प्रबंधन और शहरी नियोजन को अधिक वैज्ञानिक और सटीक बनाया जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग आपदाओं की रोकथाम और त्वरित राहत प्रयासों में भी किया जा सकता है।
जीआईएस आधारित तकनीकी से राज्य में कई अहम बदलाव होने जा रहे हैं। सोबन सिंह जीना विवि के कुलपति प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट ने राज्यपाल राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) के वन यूनिवर्सिटी-वन रिसर्च के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन जीआईएस की शोध प्रगति रिपोर्ट पेश की।
कुलपति प्रो. बिष्ट ने बताया कि जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) तकनीक के माध्यम से उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में आपदा प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, जल संसाधन प्रबंधन और शहरी नियोजन को अधिक वैज्ञानिक और सटीक बनाया जा सकता है।
इस तकनीक का उपयोग आपदाओं की रोकथाम और त्वरित राहत प्रयासों में भी किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वन क्षेत्रों की निगरानी, जल स्रोतों की मैपिंग और शहरी विकास योजनाओं में भी यह तकनीक प्रभावी सिद्ध हो सकती है। उन्होंने अभी तक किए गए कार्यों के बारे में जानकारी दी।
जी-गवर्नेंस की दिशा में आगे
राज्यपाल ने कहा कि जीआईएस आधारित अध्ययन राज्य में प्रशासनिक और विकास कार्यों को और अधिक प्रभावी बनाने में सहायक हो सकता है। उन्होंने कुलपति को निर्देश दिए कि इस विषय पर और गहन शोध किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में जीआईएस का उपयोग नीतिगत निर्णयों को सशक्त बनाने, स्मार्ट प्लानिंग सुनिश्चित करने और सतत विकास को गति देने के लिए किया जा सकता है।
राज्यपाल ने कहा कि इस शोध के प्रभावी निष्कर्षों के माध्यम से जी-गवर्नेंस (जीआईएस बेस्ट गवर्नेंस) की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। इस अवसर पर अपर सचिव राज्यपाल स्वाति एस भदौरिया, प्रो. जेएस रावत उपस्थित रहे।
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