देवभूमि उत्तराखण्ड के work culture (कार्यसंस्कृति) में एक बदलाव देखा जा रहा है। नौकरशाह (खासतौर पर IAS अफसर) हमारे प्रदेश की लोकसंस्कृति को आत्मसात करने लगे हैं। अमूमन खास लोगों तक सीमित रहने वाले इन अधिकारियों का आम लोगों के रहन सहन से सीधा जुड़ाव होना एक सुखद संकेत है।
नौकरशाह जब स्थानीय आचार व्यवहार से सीधे जुड़ते हैं तो उन्हें न सिर्फ स्थानीय लोगों की जरूरतों, विचारों, उम्मीद, अपेक्षाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है, बल्कि वे लोक कल्याण की नीति का निर्धारण आसानी से करने लगते हैं और उसका प्रभावी क्रियान्वयन जमीन पर देखने को मिलता है। उत्तराखण्ड में इस तरह का माहौल बनना अपने आप में आनन्द की अनुभूति प्रदान करता है।
बीते 27 अक्टूबर को उत्तराखण्ड में भी छठ पर्व विधिविधान से मनाया गया। व्रतियों ने सजे हुए घाटों पर छठी मइया के गीत गाए और सूर्य देव को अर्घ्य दिया। परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की गई। इस दौरान उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव आनंद बर्धन ने भी देहरादून में पत्नी के साथ सूर्य को अर्घ्य दिया। इस परम्परा के निर्वहन के दौरान की उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से वायरल हुईं। जिसने भी ये तस्वीरें देखीं उसे लगा कि अपनी संस्कृति से जुड़ाव तो आनन्द वर्धन से सीखा जाना चाहिए। मैं भी उनसे बहुत प्रभावित हुआ। लिहाजा, मैंने एक पोस्ट अपने फेसबुक पेज पर की। मैंने अपेक्षा करी कि काश हमारे प्रदेश के सभी नौकरशाह मुख्य सचिव आनन्द से सीख लेते और यहां की लोक संस्कृति को आत्मसात करते। इसी बीच इगास यानि एकादशी दीपावली का लोकपर्व सामने आ गया। हर जिले में धूमधाम से यह त्योहार मनाया गया। इगास पर रुद्रप्रयाग के डीएम प्रतीक जैन का गढ़वाली भाषा में दिया गया संदेश और डीएम टिहरी नीतिका खंडेलवाल का बौराड़ी स्टेडियम में महिलाओं के साथ लोकनृत्य व भैलो खेल कर उल्लास से बग्वाल मनाये जाने का वीडियो सामने आ गया। लोगों ने दोनों अधिकारियों की सराहना करते हुए सम्बंधित वीडियो पुरजोर तरीके से इसे अपने फेसबुक, एक्स और इंस्टाग्राम पर खूब शेयर किये। इसके कुछ दिनों बाद आज पौड़ी की डीएम स्वाति एस भदौरिया ने गढ़वाली भाषा में लोक संस्कृति, परिधान के संवर्धन को लेकर दिए अपने संदेश से लोगों का दिल जीत लिया। खास बात यह है कि एक समारोह में वह स्थानीय वेशभूषा पहनकर आई थीं, जिससे उनका संदेश ज्यादा प्रभावी और असरकारी साबित हुआ। दरअसल, लोक संस्कृति और परम्परा से जुड़ाव नौकरशाहों की कठोर और नियम-आधारित छवि को भी नरम करता है। इससे प्रशासन में एक मानवीय दृष्टिकोण पैदा होता है। इस लगाव से अधिकारियों को महसूस होता है कि सभी नागरिकों के साथ निष्पक्ष और न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जनता के साथ बातचीत करने और उनकी संस्कृति में शामिल होने से नौकरशाहों और समुदाय के बीच स्वत: ही विश्वास का वातावरण बन जाता है।
यहां गौर करने वाली बात है कि लोक संस्कृति से जुड़ना नौकरशाहों की कोई मजबूरी नहीं है। लेकिन यदि वह ऐसा करते हैं तो उससे स्थानीय जनता ही भला होता है। हां! इतना जरूर है कि ऐसा करने से अफसरों की छवि सुधर जाती है। लोग उन्हें सर आंखों पर बिठा लेते हैं। उनके प्रति आम जनमानस की धारणा बदल जाती है। मैं समझता हूं कि नौकरशाहों के सामने खुद के लिए वोट बटोरने या अपनी छवि चमकाने की कोई बाघ्यता नहीं होती इसलिए वह राजनेताओं से ज्यादा भरोसेमंद ब्रांड एम्बेसडर साबित होते हैं। ऐसे ही ब्रांड एम्बेसडर तो हमारे प्रदेश को चाहिए जो नाटक-नौटंकी न करें बल्कि वास्तव में ‘जनता के हितैषी’ साबित हों।

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