अप्रत्याशित बदलाव के निकाले जा रहे अलग-अलग मायने, जानिए हल्द्वानी मेयर की सीट OBC होने की कहानी
नगर निगम मेयर की सीट ओबीसी होने के बाद सियासी गलियारों में हलचल है। रातों रात बदले सियासी गणित के अब तरह-तरह के मायने निकाले जा रहे हैं।
नगर निगम मेयर की सीट ओबीसी होने के बाद सियासी गलियारों में हलचल है। रातों रात बदले सियासी गणित के अब तरह-तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। चर्चा है कि सत्तारूढ़ दल में दावेदार अधिक होने और इनमें एक ही नाम के मजबूती से उभरने के कारण यह नया प्रयोग किया गया है। वहीं दूसरी तरफ इस बदलाव को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी को तौर भी देखा जा रहा है। बहरहाल जो भी कारण हो अब भाजपा समेत प्रमुख विपक्षी पार्टी पर नए समीकरण और नए दावेदारों पर दांव खेलने की मजबूरी है।
नगर निगम हल्द्वानी में 60 वार्ड हैं। नगर निगम बनने के बाद से लगातार दो बार मेयर सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। इस बार ओबीसी सीट होने के बाद पार्टी के लिए यहां जीत जारी रखना भी चुनौती होगा। निगम में कुल 2,81,215 मतदाता है, इनमें 51,789 मतदाता ओबीसी हैं, जिनका प्रतिशत 18.42 है। राजनीति से जुड़े कई जानकार बताते हैं कि कुमाऊं के सबसे बड़े नगर निगम की मेयर सीट को अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) करना लोगों को रास नहीं आ रहा है। दबी जुबान से राजनीतिज्ञ और कार्यकर्ता भी इसे सही नहीं ठहरा रहे हैं। हालांकि माना जा रहा है कि सरकार यहां नया प्रयोग करना चाहती है ताकि ओबीसी कार्ड के जरिये कुमाऊं को साध विपक्षी पार्टी के समीकरण बिगाड़े जा सकें।
इन बिंदुओं को इस सीट के बदलने का कारण माना जा रहा है।
भाजपा में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की लंबी फेहरिस्त है, किसी भी तरह के विवाद से बचना, पार्टी से मेयर पद के लिए निवर्तमान मेयर समेत 25 ने दावेदारी पेश की थी, अब समीकरण बदलने के बाद प्रत्याशी चयन में आसानी रहेगी।
प्रदेश में वर्ष 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं। पार्टी ने इसकी तैयारी अभी से कर ली है, प्रदेश के बड़े शहरों में शामिल हल्द्वानी में ओबीसी वर्ग को बढ़ावा देकर राह आसान रहेगी
कुमाऊं के सबसे बड़े शहर हल्द्वानी पहाड़ की राजनीति की पहली सीढ़ी है, पार्टी ने यहीं से ओबीसी कार्ड के जरिए कुमाऊं को साधने का प्रयास किया गया है।
भाजपा ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने में सफल हो सकती है। हल्द्वानी विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के मुकाबले पार्टी का ओबीसी वर्ग का वोट प्रतिशत कम रहा है। इस प्रयोग से नगर निगम की राजनीति में पिछड़े वर्ग के नेतृत्व को उभारना भी है
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