योगी ने फिर से किला फतह किया… केशव प्रसाद मौर्य के कसीदे इसका सबूत हैं
उत्तर प्रदेश में सरकार अब संगठन के बराबर हो गई है? मिर्जापुर की चुनावी रैली में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के मुंह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ सुन कर तो एकबारगी ऐसा ही लगने लगा है.
अब अगर योगी आदित्यनाथ को केशव प्रसाद मौर्य देश का बेस्ट मुख्यमंत्री बताएंगे तो भला कौन हैरान नहीं होगा. कल तक यही केशव प्रसाद मौर्य बात बात पर योगी आदित्यनाथ को नकारने की कोशिश कर रहे थे – अपने बयानों, हाव-भाव और राजनीतिक गतिविधियों से तो यही संदेश देने की कोशिश कर रहे थे कि यूपी सरकार में बहुत बड़ा बदलाव होने वाला है, लेकिन अब तो लगता है बदलाव की संभावनाओं का पहिया अचानक थम गया है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, और केशव प्रसाद मौर्य ने योगी आदित्यनाथ की तारीफ में जो कुछ कहा है, वो मझवा विधानसभा क्षेत्र में दिये भाषण का हिस्सा है. मझवा विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होना है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, और केशव प्रसाद मौर्य ने योगी आदित्यनाथ की तारीफ में जो कुछ कहा है, वो मझवा विधानसभा क्षेत्र में दिये भाषण का हिस्सा है. मझवा विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होना है.
ध्यान देने वाली बात ये है कि योगी आदित्यनाथ ने उपचुनावों के लिए मंत्रियों की जो सुपर-30 टीम बनाई है, उसमें न तो केशव प्रसाद मौर्य को रखा है, न ही दूसरी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को. बीच में ये भी देखा गया था कि कैसे दोनो डिप्टी सीएम उन बैठकों से दूरी बना लेते थे, जिसमें योगी आदित्यनाथ होते थे या उनकी तरफ से बुलाई गई होती थी. एक बैठक में तो ये भी देखा गया कि योगी आदित्यनाथ के पहुंचते ही दोनो डिप्टी सीएम उठ कर चल दिये थे.
बाद में जो भी हो. भले ही ये कोई संयोग हो या प्रयोग हो. लेकिन यूपी बीजेपी के लिए राहत की बात तो है ही. विशेष रूप से उपचुनावों से पहले. हो सकता है बाद में फिर से सरकार और संगठन का स्तर मालूम हो सके. अभी तो लगता है सरकार और संगठन बराबर हो गया है. केशव मौर्य की बातों से तो एक पल के लिए सरकार ही संगठन से बड़ी लगने लगी है.
अचानक सब अच्छा-अच्छा कैसे हो गया?
लगता है आपसी झगड़ों से छुट्टी लेकर केशव प्रसाद मौर्य चुनावी रैली करने पहुंचे थे. अब छुट्टी खुद से लिये थे, या जबरन ऊपर से छुट्टी पर भेजा गया था, बेहतर तो वही जानते होंगे – वरना, अचानक योगी आदित्यनाथ के बारे में वैसी बातें सुनने को कहां मिल रही थीं?
यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने उपचुनावों में बीजेपी के लिए वोट मांगते हुए दावा किया, हमारी डबल इंजन की सरकार स्वतंत्र भारत में सबसे अच्छा काम कर रही है. डबल इंजन की सरकार के जिक्र का मतलब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी बराबर का श्रेय दिया जाना ही हुआ.
केशव मौर्य ये बातें अपने तरीके से समझा रहे थे, ‘देश में भी भाजपा की सरकार है और राज्य में भी… आप भी ये जानते और मानते हैं कि हमारी डबल इंजन की सरकार स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे अच्छा कार्य कर रही है… दुनिया में प्रधानमंत्री मोदी जैसा कोई दूसरा नेता है क्या? और देश में योगी आदित्यनाथ जैसा कोई दूसरा मुख्यमंत्री है क्या? दुनिया के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली नेता हमारे प्रधानमंत्री मोदी हैं… और देश में, जब सभी मुख्यमंत्रियों की तुलना होती है, तो सबसे अच्छा काम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में किया जा रहा है.’
योगी आदित्यनाथ की करीब करीब ऐसी ही तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से भी 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले भी सुनने को मिली थी. तब कोविड संकट के दौरान यूपी सरकार के कामकाज को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘बीते कुछ महीने पूरी मानव जाति के लिए बहुत मुश्किल भरे रहे हैं… कोरोना के बदलते हुए और खतरनाक रूप ने पूरी ताकत के साथ हमला किया, लेकिन काशी सहित उत्तर प्रदेश ने पूरे सामर्थ्य के साथ इतने बड़े संकट का मुकाबला किया.’
बोले, ‘उत्तर प्रदेश जिसकी आबादी दुनिया के बड़े-बड़े देशों से भी ज्यादा हो उस यूपी ने जिस तरह कोरोना की सेकेंड वेव को संभाला वह अभूतपूर्व है…’
आपको ध्यान होगा, तब भी योगी आदित्यनाथ को लेकर वैसी ही बातें चल रही थीं, जैसी हाल फिलहाल सुनने को मिल रही थीं. तब से आशय उस समय से है जब गुजरात कैडर के पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को दिल्ली से लखनऊ भेजा गया था. वीआरएस के बाद फटाफट उनको विधान परिषद भेजा गया और उनको डिप्टी सीएम तक बनाये जाने की चर्चा होने लगी थी.
उन दिनों कोविड संकट को ठीक से नहीं संभाल पाने के कारण योगी आदित्यनाथ बीजेपी में ही अपने विरोधियों के निशाने पर आ गये थे. तब अरविंद शर्मा को वाराणसी की कमान दी गई थी, और वो मख्यतौर पर पीएमओ को रिपोर्ट भेजा करते थे, सीएमओ के साथ तो रस्मअदायगी होती थी. तब कई मंत्रियों और नेताओं ने भी शिकायती पत्र लिखे थे, हालांकि पत्रों में काम न करने का आरोप अफसरों पर लगाया जाता था, लेकिन हकीकत तो यही थी कि निशाने पर योगी आदित्यनाथ हुआ करते थे.
अपने खिलाफ चल रही सारी गतिविधियों के बावजूद योगी आदित्यनाथ मैदान में डटे रहे. चुनाव से पहले कैबिनेट विस्थार तो किया लेकिन अरविंद शर्मा को नहीं शामिल किया. चुनाव आये तो बीजेपी ने उनको भी गोरखपुर नगर विधानसभा सीट से उतार दिया. जीत के बाद सत्ता में लौटे तो अरविंद शर्मा को भी मंत्री बना दिया. वो अब भी मंत्री हैं.
एक बार फिर ये सब ऐसे दौर में हो रहा है जब यूपी में विधानसभा के ही चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन सिर्फ 10 विधानसभा सीटों पर. बीजेपी के लिए चुनाव जीतना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी का प्रदर्शन बीते दो आम चुनावों की तुलना में काफी घटिया रहा. यूपी की 80 सीटों में से बीजेपी इस बार सिर्फ 33 सीटें ही जीत पाई थी.
क्या ये सिर्फ उपचुनावों तक के लिए है?
दरअसल, उत्तर प्रदेश में बीजेपी के घटिया प्रदर्शन के लिए बीजेपी में योगी आदित्यनाथ को ही जिम्मेदार ठहराने की कोशिश हुई है. केशव प्रसाद मौर्य की एक बात पर कि संगठन सरकार से हमेशा बड़ा होता है, बवाल भी इसीलिए मचा था – और बवाल भी इसलिए हो रहा था कि केशव प्रसाद मौर्य नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ अकेले नजर आने लगे थे.
ये भी साफ साफ लग रहा था कि केशव प्रसाद मौर्य की अपनी भड़ास तो है ही, केंद्रीय नेतृत्व भी भरपूर हवा दे रहा है. केशव मौर्य के तेवर तो लखनऊ की बैठक में ही तेज हो गये थे, जब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे. दिल्ली में जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद तो जैसे आक्रामक ही हो गये थे.
योगी आदित्यनाथ अपने खिलाफ चल रही सारी साजिशों और बयानबाजी से बेपरवाह दिखे, और काउंटर में जो कहा वो भी बड़ा हमला था, जिसके दायरे में जेपी नड्डा भी आ रहे थे. योगी आदित्यनाथ ने समझाया कि चुनावों में बीजेपी का जो हाल हुआ है, उसका कारण अति आत्मविश्वास का हो जाना है.
ये बात सीधे सीधे तो नहीं, लेकिन जेपी नड्डा के आरएसएस को लेकर दिये गये बयान से जोड़ कर देखें तो आसानी से समझ में आती है. लोकसभा चुनाव से पहले जेपी नड्डा का एक बयान काफी चर्चित रहा कि बीजेपी को अब आरएसएस की जरूरत नहीं है, यानी मोदी के नेतृत्व में वो खुद-मुख्तार वाली हैसियत में पहुंच चुकी है.
बीजेपी अध्यक्ष के इस बयान का असर चुनावों के दौरान ही दिखने लगा था, क्योंकि आरएसएस की तरफ से होने वाली कोशिशों को बिलकुल सीमित कर दिया गया था. सिर्फ निहायत ही जरूरी कार्यक्रम चलाये जा रहे थे – नतीजे आये तो सबकी हैसियत मालूम हो गई.
योगी आदित्यनाथ कट्टर हिंदुत्व की लाइन वाली राजनीति करते हैं. न तो वो बीजेपी के नेता रहे हैं, न ही उनकी संघ की कोई पृष्ठभूमि रही है, फिर भी संघ उनको काफी पसंद करता है, और अति आत्मविश्वास वाली बात भी योगी आदित्यनाथ ने जानबूझ कर ही कही थी, जिसमें संघ के मन की बात थी और निशाने पर बीजेपी नेतृत्व.
ये तो अभी नहीं मालूम कि केशव मौर्य संगठन और सरकार को अब बराबर समझने लगे हैं या नहीं, लेकिन ये तो साफ हो ही गया है कि वो अपनी हदें समझ गये हैं. ये भी नहीं पता कि अपना अभियान होल्ड किया हुआ है, या हथियार डाल दिया है – बाद में जो भी हो लेकिन अभी तो योगी आदित्यनाथ ने किला फतह कर ही डाला है.
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