धराली (जनपद उत्तरकाशी) आपदा उपरांत एसडीआरएफ की संयुक्त टीम द्वारा खीर गंगा उद्गम स्थल तक की गई उच्च स्तरीय रैकी एवं भौतिक निरीक्षण*
दिनांक 05 अगस्त 2025 को खीर गंगा क्षेत्र में आई भीषण जलप्रलय से जनपद उत्तरकाशी के धराली बाजार में व्यापक तबाही हुई। घटना उपरांत एसडीआरएफ मुख्यालय जौलीग्रांट से राहत एवं बचाव कार्य हेतु टीमें तत्काल घटनास्थल पर पहुँचीं। प्रारम्भिक चरण में ड्रोन के माध्यम से धराली क्षेत्र की सतत निगरानी एवं सर्चिंग कार्यवाही की गई।
👉07 अगस्त 2025
पुलिस महानिरीक्षक, एसडीआरएफ के आदेशानुसार मुख्य आरक्षी राजेन्द्र नाथ के नेतृत्व में कांस्टेबल 1424 जसवेन्द्र सिंह, कांस्टेबल 1891 सोहन सिंह एवं कांस्टेबल 4805 गोपाल सिंह की टीम ने धराली गांव से पैदल मार्ग द्वारा खीर गंगा के दाहिने ओर लगभग 3450 मीटर ऊँचाई तक पहुँचकर ड्रोन संचालन किया। खीर गंगा की पूरी निगरानी की गई, जिसमें किसी भी प्रकार की झील का निर्माण नहीं पाया गया। तैयार वीडियो व फोटोग्राफी तत्काल उच्चाधिकारियों को उपलब्ध कराई गई।
👉08 अगस्त 2025
इसी क्रम में एएसआई पंकज घिल्लियाल, मुख्य आरक्षी राजेन्द्र नाथ, मुख्य आरक्षी 1670 प्रदीप पंवार, कांस्टेबल 1891 सोहन सिंह तथा एफएम प्रवीण चौहान द्वारा श्रीकंठ पर्वत के नीचे लगभग 3900 मीटर ऊँचाई पर पुनः रैकी की गई। टीम ने ड्रोन से खीर गंगा एवं धराली क्षेत्र के ऊपर बने नालों की वीडियोग्राफी/फोटोग्राफी की और संकलित सामग्री को वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान तथा यू-कॉस्ट के वैज्ञानिकों को प्रेषित किया।
👉14-15 अगस्त 2025
मुख्य आरक्षी राजेन्द्र नाथ के नेतृत्व में मुख्य आरक्षी प्रदीप पंवार, कांस्टेबल सोहन सिंह, NIM उत्तरकाशी के प्रशिक्षक शिवराज पंवार एवं अनुप पंवार तथा पोटर तारा व हरि की संयुक्त टीम द्वारा श्रीकंठ पर्वत बेस एवं खीर गंगा उद्गम स्थल का भौतिक निरीक्षण किया गया।
टीम ने लगभग 4812 मीटर ऊँचाई तक पहुँचकर अत्यंत विषम परिस्थितियों — घना कोहरा (Whiteout), तेज हवाएँ एवं वर्षा — के बीच भी ड्रोन (Phantom-4 एवं DJI Mini-2) के माध्यम से ग्लेशियर बेस और उद्गम स्थल की विस्तृत वीडियोग्राफी/फोटोग्राफी की।
👉महत्व
एसडीआरएफ की संयुक्त टीम द्वारा विषम परिस्थितियों में की गई इस उच्च स्तरीय रैकी एवं भौतिक निरीक्षण द्वारा आपदा की वास्तविक परिस्थितियों का वैज्ञानिक विश्लेषण सम्भव हुआ है। टीम द्वारा संकलित सभी फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी उच्चाधिकारियों एवं वैज्ञानिक संस्थानों को प्रेषित की गयी हैं। यह कार्यवाही भविष्य में आपदा प्रबंधन एवं जोखिम न्यूनीकरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।

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