देहरादून। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की एक पहल से समूचे देश में हलचल मची हुई है। खासतौर पर सियासी गलियारों में आजकल धामी की धमक है। उत्तराखण्ड में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले धामी ने प्रदेश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का जो ट्रम्प कार्ड खेला था वो अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बनता दिख रहा है। तकरीबन डेढ़ साल पहले धामी जब उत्तराखण्ड की जनता से यूसीसी का वायदा कर रहे थे उस वक्त उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि यह मुद्दा न सिर्फ प्रदेश में भाजपा की सत्ता बरकरार रखने में कारगर साबित होगा बल्कि आने वाले समय में देश में भी सबसे हॉट टॉपिक बन जाएगा। फिलहाल, यूसीसी लागू करने की उत्तराखण्ड सरकार की ठोस शुरुआत सुर्खियों में है। नेशनल मीडिया में धामी छाए हुए हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव के वक्त के प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक ऐसा मुद्दा उछाल दिया राज्य स्तर पर जिसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी। खटीमा में बाकायदा प्रेस कॉफ्रेंस कर धामी ने ऐलान किया था कि यदि भाजपा सत्ता में बरकरार रही तो देवभूमि में समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी। भाजपा सत्ता में लौटी तो धामी ने पहली कैबिनेट में ही एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर अपने इरादे साफ कर दिए। जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित समिति को समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस संबंध में 27 मई, 2022 को एक अधिसूचना जारी कर समिति को उत्तराखंड के निवासियों के व्यक्तिगत दीवानी मामलों से जुड़े विभिन्न मौजूद कानूनों पर गौर करने और विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार, उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेने और रखरखाव जैसे विषयों पर मसौदा कानून या कानून तैयार करने या मौजूदा कानूनों में बदलाव का सुझाव देने के लिए कहा गया था। समिति को 6 माह के भीतर ड्राफ्ट तैयार करना था लेकिन बाद में उसे 30 जून तक उसे समय विस्तार दिया गया।
अब लगभग एक वर्ष की अवधि में यह एक्सपर्ट कमेटी उत्तराखण्ड के लिए यूसीसी का मसौदा तैयार कर चुकी है जो प्रकाशन के बाद शीघ्र ही धामी सरकार को सौंप दिया जाएगा। अब यहां गौर करने वाली बात यह है कि हाल ही में बीते 2 जून को रंजना देसाई की अध्यक्षता वाली कमेटी से दिल्ली में राष्ट्रीय विधि आयोग की अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी और सदस्यों केटी शंकरन, आनंद पालीवाल और डीपी वर्मा से मुलाकात की। इस मुलाकात में बाद राष्ट्रीय विधि आयोग एक्टिव हो गया और उसने भी यूसीसी को लेकर देशभर में रायशुमारी शुरू कर दी। इससे पहले उत्तराखण्ड में यूसीसी का मुद्दा हिट होने के बाद भाजपा ने गुजरात, हिमाचल और कर्नाटक के चुनाव में इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। इन राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान गृह मंत्री अमित शाह से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत की। धामी की पहल को बल तब और मिला जब कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूसीसी को देश की जरूरत बताया। साफ है कि केन्द्र सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में यूसीसी लागू कर इसे अपना सबसे बड़ा हथियार बनाना चाहती है। दरअसल, भाजपा के कई ऐसे मुद्दे थे जो कि जनसंघ के जमाने से ही चले आ रहे थे। इनमें आर्टिकल 370 को हटाना, राम मंदिर का निर्माण, जनसंख्या नियंत्रण कानून आदि मुद्दे शामिल थे। भाजपा की इसी महत्वकांक्षी सूची में समान नागरिक संहिता भी है। माना जा रहा है कि 2024 के चुनाव से पहले भाजपा का अगला टारगेट यूसीसी हो सकता है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के संकल्प पत्र में भी भाजपा ने इसे शामिल किया था। कहा तो यह भी जा रहा है कि केन्द्र सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र में यूसीसी का बिल सदन में पेश कर सकती है। इन्हीं तमाम हलचलों में के बीच मुख्यमंत्री धामी बीते शनिवार की शाम दिल्ली रवाना हुए हैं। उसके इस दौरे को यूसीसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
इस मामले में मोदी सरकार की दिलचस्पी के बाद अब दो परिस्थितियां बनती दिख रही हैं या तो प्रयोग के तौर पर पहले उत्तराखण्ड में यूसीसी लागू किया जाएगा या फिर पूरे देश के यह संहिता लागू कर दी जाएगी। आने वाले कुछ दिनों में इसे लेकर स्थिति साफ हो जाएगी। मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए विपक्षी दल भी इसका खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं। कुल मिलाकर धामी ने यूसीसी के मुद्दे पर जबरदस्त स्टैण्ड लिया। अब उनकी कोशिशें रंग लाने लगी हैं। इस मसले पर लिया जाने वाला फैसला भाजपा के साथ ही धामी की सियासी पारी के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा।
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