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Big breaking :-कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा का बड़ा बयान, बीजेपी में सत्ता संघर्ष जारी, विधानसभा सचिवालय द्वारा हाई कोर्ट में दिया गया एफिडेविट ये बताने क़ो काफ़ी, महेंद्र भट्ट बोले पूर्व मे मिली स्वीकृति का अध्ययन करे कांग्रेस देखिए VIDEO

जहाँ एक और बर्खास्त कर्मचारियों के मुद्दे पर विधानसभा अध्यक्ष अपनी पीठ थप थपा रही है वही विधानसभा सचिवालय द्वारा कोर्ट में जो एफिडेविट दिया हाईकोर्ट में विशेष अपील में पूर्व स्पीकर, सीएम  और सरकार को तदर्थ नियुक्तियों के लिए कटघरे में खड़ा कर दिया वही अब कांग्रेस ने इस मुद्दे पर विधानसभा अध्यक्ष और सरकार दोनों पर निशाना साधा है कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने बड़ा सवाल उठाते हुए वीडियो जारी किया है और कहा कि किस तरह से बीजेपी में सत्ता संघर्ष जारी है उनके अनुसार विधानसभा भर्ती क़ो लेकर कोर्ट में दिए गए एफिडेविट के बाद ये काफ़ी हद तक साफ हो जाता है

वही करन माहरा ने साफ कहा कि गुरुवार को हाईकोर्ट की डबल बेंच द्वारा विधानसभा के 228 तदर्थ कर्मचारियों की बर्खास्तगी के फैसले पर सिंगल बेंच द्वारा लगाई गई रोक को खारिज करने से बर्खास्त कर्मचारियों को झटका लगा है और अब वे इस पर विचार कर रहे हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट (एससी) का है। हालाँकि इस मुद्दे ने उत्तराखंड विधानसभा और पुष्कर सिंह धामी सरकार के बीच एक फूट पैदा कर दी है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (HC) की एकल पीठ द्वारा उसके बर्खास्तगी के फैसले पर लगाए गए रोक को चुनौती देते हुए, विधानसभा सचिवालय ने HC में अपनी विशेष अपील में उत्तराखंड सरकार को पक्षकारों में से एक बनाया है।

 

अपील में, उत्तराखंड राज्य (सचिव वित्त) को प्रतिवादी संख्या तीन बनाया गया है, जबकि उत्तराखंड राज्य को उसके सचिव कर्मियों के माध्यम से प्रतिवादी संख्या चार बनाया गया है, जिसमें बर्खास्त कर्मचारियों में से दो ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। विधानसभा की दलील अपने आप में एक ऐसा दस्तावेज है जो इस मुद्दे पर भाजपा सरकार और पूर्व स्पीकर (जो वर्तमान में कैबिनेट मंत्री हैं) को उनके कार्यों के लिए कटघरे में खड़ा करता है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि कार्मिक विभाग और वित्त विभाग की आपत्तियों के बावजूद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस वर्ष 6 जनवरी को मंत्रिमंडल की ओर से विधानसभा में तदर्थ नियुक्तियों को मंजूरी देने के लिए अपनी विशेष विचलन शक्ति (विचलन) का प्रयोग किया। .

 

 

फाइल में दर्ज अपने विचार में वित्त एवं कार्मिक दोनों विभागों ने कहा था कि छह फरवरी, 2003 के शासनादेश (जीओ) के मद्देनजर तदर्थ नियुक्तियों पर स्वीकृति नहीं दी जा सकती। कि तदर्थ कर्मचारियों को नियुक्त किया जाना चाहिए क्योंकि विधान सभा में कर्मचारियों की तत्काल आवश्यकता थी, विधान सभा सचिवालय ने अदालत में अपनी दलील में उल्लेख किया है, “इन तदर्थ नियुक्तियों को तत्कालीन माननीय वक्ताओं द्वारा किए जाने के बावजूद आदेश दिया गया था विधान सभा सचिवालय के प्रतिवेदन के अनुसार ये तदर्थ नियुक्तियां सेवा नियमों और शासनादेशों के अनुसार नहीं की जा सकीं।” इसमें आगे उल्लेख किया गया है कि इन नियुक्तियों को करते समय फाइलों में ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं होता है जिससे पता चलता हो कि ये नियुक्तियां किसी प्रशासनिक आवश्यकता या आपात स्थिति को पूरा करने के लिए की गई थीं।

 

 

इन नियुक्तियों के लिए प्रशासनिक अत्यावश्यकता के बारे में पूर्व वक्ताओं के तर्क को तोड़ते हुए, विधानसभा सचिवालय का उल्लेख है कि पूर्व स्पीकर ने कभी भी किसी आपात स्थिति या आपात स्थिति के लिए कोई नोट नहीं भेजा था और तदर्थ नियुक्तियां नियमित रूप से की गई थीं।

 

 

दिलचस्प बात यह है कि अदालत में दायर किए गए दस्तावेज़ ने उत्तराखंड के सभी वक्ताओं को अतीत में यह कहकर संदेह में डाल दिया कि 2001 से 2021 तक की गई सभी 396 तदर्थ नियुक्तियाँ भाई-भतीजावाद, पक्षपात और पक्षपात की गंध के साथ मनमानी, अनियमित और अवैध तरीके से की गई हैं। भ्रष्टाचार।

आवेदन से पता चलता है कि तदर्थ कर्मचारियों को नियुक्ति आदेश जारी करने के बाद तत्कालीन अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल ने कैबिनेट की पूर्व कार्योत्तर स्वीकृति के लिए फाइल मुख्यमंत्री को भेज दी थी, जिन्होंने सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए इन नियुक्तियों को मंजूरी देने के लिए विचलन करने की अपनी विशेष शक्ति का इस्तेमाल किया था। .

 

गौरतलब है कि 23 सितंबर को स्पीकर रितु खंडूरी ने एक कमेटी की सिफारिश पर कार्रवाई करते हुए वर्ष 2016, 2020 और 2021 में भर्ती हुए 228 तदर्थ कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द कर दी थी. 15 अक्टूबर को जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने यह आदेश दिया था. इन कर्मचारियों को हटाने पर रोक हाईकोर्ट की डबल बेंच ने गुरुवार को इस स्टे को हटा लिया।

 

सरकार की मंशा साफ, पूर्व मे मिली स्वीकृति का अध्ययन करे कांग्रेस: भट्ट

भाजपा ने कहा कि विधान सभा मे नियुक्तियों के संबंध मे कांग्रेस के द्वारा उठाये सवालो का अब कोई मतलब नही है। सीएम की मंशा शुरू से ही साफ है और इसी के चलते विधान सभा मे हुई नियुक्तियों की गहन जाँच हुई। अवैध नियुक्तियां निरस्त की जा चुकी है।

 

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष  महेंद्र भट्ट ने कहा कि महज विधान सभा की नियुक्ति नही, बल्कि जहाँ भी गड़बड़ है वहाँ पर पूरी पारदर्शिता से जाँच और कार्यवाही की जा रही है। जहां तक नियुक्तियों के बारे मे सीएम के निर्देश का सवाल है तो
वर्ष 2005-07 के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री एन डी तिवारी तथा
वर्ष 2016 में भी मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विधान सभा में पदों को स्वीकृत किया था। सयोंगवश तब राज्य मे कांग्रेस नीत सरकार थी। कांग्रेस को खुद का अवलोकन करने की जरूरत है।
सरकार पदों की स्वीकृति देती है और भर्ती विधान सभा का अधिकार है।विधान सभा पदों की स्वीकृति माँगती है तो पदों को सरकार स्वीकृति देती है।भर्ती कैसे करनी है यह सरकार तय नहीं करती है। भर्ती की अनियमितता की शिकायत आने के बाद मुख्यमंत्री ने स्वत: संज्ञान लेकर कार्यवाही हेतु विधान सभा अध्यक्ष को पत्र लिखा।जाँच समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने पर कि अनियमित तरीक़े से भर्ती हुई है उनको निरस्त करने की स्वीकृति भी प्रदान की।

 

मुख्यमंत्री  पुष्कर सिंह धामी ने पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए भर्तियों कराने का ज़िम्मा लोक सेवा आयोग को सौंपा है। भर्ती के भ्रष्टाचारी जेल जा रहे हैं।उनकी अवैध सम्पत्तियों को नष्ट और ज़ब्त किया जा रहा है। कांग्रेस को तथ्य की सही परख करने की जरूरत है और आरोप प्रत्यारोप की राजनीति से उसे कुछ हासिल नही होने वाला।

 

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