मोदी के सामने लगातार तीसरी बार ढेर हो गई कांग्रेस, इन मोर्चों पर भारी पड़ी कमजाेर तैयारी
प्रदेश में लगातार तीसरे चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। इसका प्रमुख कारण बने भाजपा के चुनावी ब्रांड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। कांग्रेस प्रत्याशियों की हार मतों के बड़े अंतर से हुई है। पहले प्रत्याशियों के चयन और फिर चुनाव प्रबंधन के मोर्चे पर पार्टी की कमजोर तैयारी उस पर भारी पड़ गई।
आखिर वही हुआ, जिस कारण उत्तराखंड में कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वयं लोकसभा चुनाव के संग्राम में कूदने से झिझक रहे थे। प्रदेश में लगातार तीसरे चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। इसका प्रमुख कारण बने भाजपा के चुनावी ब्रांड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन महारा ने लोकसभा के आएं आकड़ो के बाद बड़ा बयान दिया हैं करन महारा ने एक बार फिर वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा की अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ते तो अलग तस्वीरें होती उनके अनुसार प्रत्याशी चयन में भी हमसे कुछ गलतियां हुई हैं अब इन सबपर मंथन किया जा रहा हैं
18वीं लोकसभा के चुनाव में भी मोदी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ी भाजपा ने कांग्रेस को कुल पांच में से एक भी सीट जीतने के लिए तरसा दिया। कांग्रेस प्रत्याशियों की हार मतों के बड़े अंतर से हुई है। पहले प्रत्याशियों के चयन और फिर चुनाव प्रबंधन के मोर्चे पर पार्टी की कमजोर तैयारी उस पर भारी पड़ गई।
उत्तराखंड में कभी कांग्रेस का जनाधार काफी मजबूत माना जाता रहा है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में पार्टी सभी पांच सीट जीतने में सफल रही थी। लेकिन, इसके बाद हुए तीन लोकसभा चुनावों में पार्टी एक भी सीट जीत नहीं पाई।
पार्टी के सामने अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पराजय मिलने के बावजूद अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने में सफल रही थी। वर्ष 2014 की तुलना में आठ विधायक अधिक जीतने से विधानसभा में पार्टी की सदस्य संख्या 19 तक पहुंच गई थी
पार्टी अपने खोए जनाधार को पाने के लिए जिस प्रकार शक्ति झोंक रही है, उसे देखते हुए माना जा रहा था कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन में सुधार होगा। पार्टी खाता खोलने में सफल होगी। प्रदेश संगठन ने ब्लाक और न्याय पंचायत के बीच मंडलम के रूप में नई इकाइयां गठित कीं।
निचले स्तर पर गठित इकाइयों को सक्रिय करने के दावे भी किए गए। मंगलवार को चुनाव परिणाम घोषित होने से यह स्पष्ट हो गया कि लोकसभा चुनाव में पार्टी अपेक्षा के अनुरूप अपना प्रदर्शन सुधार नहीं सकी है।
प्रदेश के दिग्गज पार्टी नेताओं में इस बार लोकसभा के चुनावी समर में उतरने को लेकर हिचक रही। चुनावी राजनीति के दिग्गजों के इस रवैये को अब चुनाव परिणाम को लेकर उनके पूर्व आकलन से जोड़कर भी देखा जा रहा है। उन्हें मनाने के प्रयासों के कारण टिकट वितरण में देरी हुई, लेकिन पार्टी हाईकमान उन्हें चुनाव लड़ने के लिए राजी नहीं कर सका।
टिकट वितरण समेत चुनाव प्रचार में पार्टी नेतृत्व की तैयारी और सांगठनिक कमजोरी ने चुनावी विजय के लिए जमीन पर कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर डाला है। परिणामस्वरूप जीत पार्टी के हाथ से फिसली और पांचों सीट पर कांग्रेस प्रत्याशियों की हार का अंतर डेढ़ लाख से तीन लाख मतों के बीच रहा है। टिहरी संसदीय सीट पर तो एक निर्दलीय प्रत्याशी ने एक लाख से अधिक मत लेकर सबसे अधिक कांग्रेस को चौंका दिया।
पार्टी के तमाम केंद्रीय नेताओं ने पड़ोसी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार में ताकत झोंकी, लेकिन उत्तराखंड में प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कुछ गिने-चुने स्टार प्रचारक ही पहुंचे। उनकी जनसभाएं कुछ विशेष क्षेत्रों तक सिमट कर रह गईं।
पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत बड़े केंद्रीय नेताओं के प्रचार के लिए आने को तरसता रहा संगठन प्रदेश के पार्टी क्षत्रपों का हर संसदीय सीट पर चुनाव प्रचार में उपयोग नहीं कर पाया। तमाम बड़े नेता इक्का-दुक्का संसदीय क्षेत्रों तक सीमित रहे।
पार्टी ने पिछले दो लोकसभा चुनाव में मिली हार से सबक नहीं लिया। प्रधानमंत्री मोदी के प्रति प्रदेश के मतदाताओं में आकर्षण को भांपने के बावजूद कांग्रेस अपने नेताओं को एकजुट कर चुनावी युद्ध में नहीं झोंक पाई। पार्टी कार्यकर्ताओं में यह आम धारणा है कि बड़े नेता मतभेदों को दरकिनार कर एकजुट होकर चुनाव लड़ते तो तस्वीर अलग ही होती।
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