माननीयों के हाल- पहाड़ की राजनीति और मैदान में मकान!
उत्तराखंड की राजनीति का यह नया ट्रेंड है। पहाड़ की बात करो, लेकिन मकान मैदान में बनाओ! सत्ता में आएं या विपक्ष में रहें, माननीयों की पसंद बदलती नहीं। विधायक बनते ही देहरादून में बंगला और हल्द्वानी में फार्महाउस खड़ा हो जाता है, फिर भाषणों में बड़ी शिद्दत से कहते हैं- “हमें पलायन रोकना है!” जनता सुनती है, तालियाँ बजाती है, और पहाड़ धीरे-धीरे खाली होता जाता है। बड़ी सँख्या में माननीयों का यही हाल है।
बसपा विधायक मोहमद शहजाद व कांग्रेस विधायक तिलकराज बेहड ने सदन में जो कहा, वह दरअसल जनता की जुबान से निकला सच था-“जब विधायक ही पहाड़ छोड़ मैदान में बस जाएं, मैदानी सीटों से चुनाव लड़ने का सपना देखेंगे तो पलायन कौन रोकेगा.?”
सवाल सटीक है, क्योंकि हमारे नेता पलायन नहीं रोक रहे-वे तो उसका नेतृत्व कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो हर भाषण की शुरुआत “हमारे पहाड़…” से करते हैं, मगर अगली सुबह उनका अखबार देहरादून के पते पर ही पहुंचता है।
वास्तविकता यह है कि अब पहाड़ में केवल वादे रहते हैं, और नेता उनके नीचे मैदान में। राजनीति का यह नया भूगोल बताता है पहाड़ अब सिर्फ वोट की भूमि है, निवास की नहीं। और पलायन.? वह रुकेगा नहीं, बस अगली विधानसभा तक चर्चा में रहेगा।

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