उपचुनाव का शंखनाद…टिकट के दावेदारों की धड़कनें तेज, ऐसा रहा है सीट का इतिहास
दिवंगत विधायक शैलारानी रावत के निधन से केदारनाथ सीट खाली है। 20 नवंबर को सीट पर उपचुनाव होने हैं।
केदारनाथ विधानसभा उप चुनाव का शंखनाद होने के साथ ही टिकट के दावेदारों की धड़कनें भी बढ़ गई हैं। चुनावी रणनीति को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। इस वर्ष नौ जुलाई की रात्रि को केदारनाथ की विधायक शैलारानी रावत के निधन से सीट खाली है।
लगभग ढाई माह के इंतजार के बाद अब चुनाव आयोग ने उप चुनाव की घोषणा कर दी है। जिसके साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है। विस में 20 नवंबर को चुनाव के तहत मतदान होना है। उप चुनाव को लेकर भाजपा बीते दो माह से विस क्षेत्र में डेरा जमाए हुए है।
तीन बार भाजपा व दो बार जीती कांग्रेस
उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद प्रदेश में वर्ष 2002 में पहली बार विस चुनाव हुए थे। तब, केदारनाथ विस सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। भाजपा से आशा नौटियाल विधायक चुनी गईं थी, उन्होंने तब कांग्रेस से प्रत्याशी रहीं शैलारानी रावत को पराजित किया था। वर्ष 2007 में भाजपा ने आशा पर ही विश्वास जताया और उन्हें प्रत्याशी बनाया, जबकि कांग्रेस ने कुंवर सिंह नेगी को मैदान में उतारा पर जीत दर्ज नहीं कर सकी।
वर्ष 2012 में भाजपा ने लगातार तीसरी बार आशा को प्रत्याशी बनाया, वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर शैलारानी रावत को अपना प्रत्याशी बनाया और उन्होंने पहली बार केदारनाथ विस में कांग्रेस का परचम लहराने के साथ ही वोट बैंक में 29 फीसदी बढ़ोतरी भी की, लेकिन उन्हें विधायकी ज्यादा रास नहीं आई और अक्तूबर 2016 में वह तत्कालीन हरीश रावत सरकार से विद्रोह कर भाजपा में शामिल हो गईं थी।
आशा नौटियाल बागी होकर निर्दलीय मैदान में उतरीं
वर्ष 2017 में भाजपा ने उन्हें केदारनाथ विस से टिकट दिया तो पूर्व विधायक आशा नौटियाल बागी होकर निर्दलीय मैदान में उतरी, जिसके चलते कांग्रेस से मनोज रावत पहली बार विस में पहुंचे। स्थिति यह रही कि अपने गढ़ में भाजपा जहां चौथे स्थान पर खिसकी, वहीं आशा नौटियाल को पार्टी से निलंबित कर दिया गया
2022 में दूसरी बार विधायक बनी शैलारानी
वर्ष 2022 में हुए विस चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर शैलारानी रावत पर विश्वास जताया और उन्हें प्रत्याशी बनाया। इस दौरान उन्होंने पार्टी के विश्वास पर खरा उतरते हुए जीत दर्ज करने के साथ ही खोए वोट बैंक पर कब्जा भी किया। अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल में वह बीमारी से जूझती रहीं। बावजूद, जब भी समय मिला, उन्होंने क्षेत्र की समस्याओं को प्रमुखता से राज्य व केंद्र सरकार के सामने रखा।
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