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Big breaking :-बिनसर अग्निकांड: आग की लपटों से जलने लगा शरीर तो जान बचाकर भागे थे, इलाज के बाद लौटे कैलाश ने बांटा अपना दर्द

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बिनसर अग्निकांड: आग की लपटों से जलने लगा शरीर तो जान बचाकर भागे थे, इलाज के बाद लौटे कैलाश ने बांटा अपना दर्द

वन विभाग के दैनिक श्रमिक कैलाश भट्ट को जैसे ही विगत 13 जून का दिन याद आता है। उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। इस दिन बिनसर में हुए भीषण अग्निकांड में जंगल की आग बुझाते हुए कैलाश भट्ट सहित आठ वन कर्मी बुरी तरह से झुलस गए थे।

 

अल्मोड़ा के हवालबाग क्षेत्र में स्थित ग्राम घनेली निवासी वन विभाग के दैनिक श्रमिक कैलाश भट्ट को जैसे ही विगत 13 जून का दिन याद आता है। उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। इस दिन बिनसर में हुए भीषण अग्निकांड में जंगल की आग बुझाते हुए कैलाश भट्ट सहित आठ वन कर्मी बुरी तरह से झुलस गए थे। जिनमें से छह वनकर्मियों की मौत हो चुकी हैं और दो वन कर्मी पिछले महीने दिल्ली के एम्स से इलाज कराकर लौटे हैं।

कैलाश चंद्र भट्ट के शरीर पर हादसे के निशान सिर, कमर, हाथ, पैर कान, मुंह पर अभी भी बहुत गहरे हैं जो हादसे की भयावहता को बयां कर रहे हैं। भट्ट ने बताया कि दोपहर में उन्हें बिनसर अभयारण्य में शिव मंदिर के नीचे की ओर आग भड़कने की सूचना मिली थी।

एक फाॅरेस्ट गार्ड समेत आठ कर्मचारी गश्त पर थे। सूचना पर गाड़ी लेकर सभी लोग आग बुझाने पहुंचे लेकिन आग इतनी तेजी से फैल रही थी कि वह उसे काबू नहीं कर पाए। बल्कि चारों ओर से आग की लपटों से घिर गए और उसकी चपेट में आ गए। उन्होंने बताया कि उनके पास संसाधन के नाम पर सिर्फ पेड़ों की टहनियां थीं जब शरीर जलने लगा तो टहनियां फेंककर सभी ने बचाव के लिए दौड़ लगानी शुरू कर दी। भट्ट बताते हैं कि वह काफी देर तक पानी के लिए चिल्लाते रहे लेकिन आसपास कोई नहीं था। बाद में जब आंख खुली तो उन्होंने खुद को बेस अस्पताल में भर्ती पाया जहां वह गंभीर हालत में थे। प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें 14 जून 2024 को दिल्ली ले जाया गया और वहां से 21 सितंबर 2024 को उपचार कराकर वापस लौटे हैं।

 

घोषणाओं को याद कर छा जाती है मायूसी
कैलाश बताते हैं कि परिवार वालों ने उन्हें बताया कि हादसे के बाद कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या सहित कई वरिष्ठ अधिकारी भी उनसे मिलने आए और तमाम घोषणाएं भी कीं, लेकिन आज तक एक भी घोषणा पूरी नहीं हो पाई। मदद के नाम पर उन्हें विभागीय कर्मचारियों की ओर से एकत्र किए गए करीब 47,000 रुपये और ट्रस्ट की ओर से 25,000 रुपये दिए गए हैं। सरकार का कोई वादा पूरा नहीं हुआ। उनका दर्द यह कहते और बढ़ जाता है कि 21 सितंबर को दिल्ली से लौटने के बाद कोई अधिकारी उनका हाल जानने तक नहीं आया जबकि दावे ये हुए थे कि नियमित रूप से उनका ख्याल रखा जाएगा।

बच्चों के भविष्य के लिए चितिंत हैं कैलाश
कभी दिन भर जंगल में घूम-घूम कर पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा में तैनात रहने वाले कैलाश अब बिस्तर पर लेटने को विवश हैं। वह परिवार के भविष्य को लेकर चिंतित हैं कि कैसे उनका गुजारा होगा। वर्ष 1994 में दैनिक श्रमिक के रूप में वन विभाग में नौकरी शुरु करने वाले कैलाश भट्ट के दो बच्चे हैं। बेटी का विवाह कर चुके हैं। बेटा अभी पढ़ रहा है। आय का कोई और साधन नहीं है जिससे वह बहुत परेशान रहते हैं। उनकी विभाग के अधिकारियों से अपील है कि उन्हें बची हुई सेवा के समय के लिए नियमित किया जाए ताकि उनके परिवारवालों को कुछ मदद मिल सके।

 

सैनिकों की तरह सेवाएं देने की उठाई मांग
कैलाश का हाल जानने कोई ना कोई आसपड़ोस वाला उनसे मिलने आता रहता है। पड़ोस में रहने वाले वन विभाग के सेवानिवृत कर्मचारी आरडी भट्ट बिनसर प्रकरण को लेकर गुस्से में नजर आए। उनकी मांग है कि जो वन कर्मी यहां शहीद हुए और गंभीर हैं उनके परिवार वालों को सैनिकों की तरह सुविधाएं मिलनी चाहिए। ड्यूटी के प्रति अपना सर्वस्व देने वालों को हालात के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता।

विभाग बिनसर अग्निकांड के प्रभावितों के प्रति पूरी तरह से गंभीर है। जितने दिन भी वह अस्पताल में भर्ती रहे विभागीय कर्मियों ने उनकी देखरेख की और अभी भी लगातार उनके संपर्क में है।
– प्रदीप धौलाखंडी, डीएफओ, बिनसर

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Author: Swati Panwar
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