श्री राज्यपाल, भारत का संविधान के अनुच्छेद 309 द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए ‘उत्तराखण्ड सामान्य भविष्य निधि नियमावली, 2006 (यथासंशोधित वर्ष 2017) में संशोधन करने की दृष्टि से निम्नलिखित नियमावली बनाते हैं:-
उत्तराखण्ड सामान्य भविष्य निधि (संशोधन) नियमावली, 2025 है।
(2) यह तुरन्त प्रवृत्त होगी।
2. उत्तराखण्ड सामान्य भविष्य निधि नियमावली, 2006 (यथासंशोधित वर्ष 2017) (जिसे इसके पश्चात् मूल नियमावली कहा गया है) में नीचे स्तम्भ-1 में दिये गये वर्तमान नियम-8 (1) एवं 8 (4) के स्थान पर स्तम्भ-2 में दिया गया नियम रख दिया जायेगा, अर्थात्ः-
स्तम्भ-2 एतद्वारा प्रतिस्थापित नियम
8(1) अभिदान की धनराशि अभिदाता द्वारा स्वयं इस शर्त के अधीन रहते हुए निर्धारित की जायेगी कि धनराशि मूल वेतन के 10 प्रतिशत से कम और उसके मूल वेतन की धनराशि से अधिक नहीं होगी और पूर्ण रूपयों में व्यक्त की जायेगी। यदि किसी नियमावली / शासनादेश में मूल वेतन की जगह परिलब्धियाँ परिभाषित हों तब तद्नुसार कार्यवाही की जाय। वित्तीय नियम खण्ड पांच भाग-1 के नियम-81 के उपनियम (3) के अनुसार “सम्पूर्ण कटौतियाँ एक तिहाई भाग की दर से अधिक नहीं हो सकेगी” का भी ध्यान रखा जाय।
परन्तु यह भी कि किसी वित्तीय वर्ष में अभिदान की धनराशि उस वर्ष
में जमा की गयी बकाया अंशदान और वसूल किये गये ब्याज की रकम सहित रूपये 5.00 लाख (रूपये पांच लाख) से अधिक नहीं होगी अर्थात उस वित्तीय वर्ष में रूपये 5.00 लाख (रूपये पांच लाख) की अधिकतम सीमा प्राप्त होते ही अभिदान की कटौती बन्द कर दी जायेगी। इस हेतु न्यूनतम अभिदान की सीमा को शिथिल समझा जायेगा।
8(4) इस प्रकार निर्धारित अभिदान की धनराशि को-
(क) वर्ष के दौरान किसी समय एक बार कम किया जा सकता है,
(ख) वर्ष के दौरान दो बार बढ़ाया जा सकता है।
परन्तु जब अभिदान की धनराशि इस प्रकार कम या अधिक कर दी जाय तो वह उपनियम (1) में विहित सीमा से कम या अधिक नहीं होगी।
परन्तु यह और कि यदि अभिदाता किसी कलेण्डर मास के भाग के लिए बिना वेतन के छुट्टी पर या अर्द्ध वेतन / अर्द्ध औसत वेतन पर छुट्टी पर हो और उसने ऐसी छुट्टी के दौरान अभिदान न करने का चुनाव किया हो तो अभिदान की धनराशि ड्यूटी पर व्यतीत किये गये दिनों की संख्या जिसके अन्तर्गत ऊपर निर्दिष्ट से भिन्न छुट्टी, यदि कोई हो भी है, के अनुपात में होगा।
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