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Big breaking :-भट्ट द्वारा केंद्र से गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग

 

*भट्ट द्वारा केंद्र से गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग!*

*सदन में ‘चिपका डाल्थु पर न कंटण दय्वा’ से गौरा देवी का योगदान दिलाया याद!*

देहरादून  भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद  महेंद्र भट्ट ने चिपको आंदोलन की प्रेरणा गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की है। उन्होंने उच्च सदन में “चिपका डाल्थु पर न कंटण दय्वा, पहाड़ों की सम्पत्ति अब न लूटण दय्वा।” सुनाकर उनके पर्यावरण संरक्षण में दिए अतुलनीय योगदान को याद किया।

शीतकालीन सत्र में उन्होंने राज्यसभा में केंद्र सरकार से देवभूमि की मातृशक्ति द्वारा जंगलों को बचाने की ऐतिहासिक मुहिम को देश के सर्वोच्च सम्मान से पुरस्कृत करने की मांग की। सदन में बोलते हुए उन्होंने कहा, गौरा देवी उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली की जोशीमठ विकास खण्ड के रेणी गांव की ग्रामीण महिला थी , जिन्होंने अपने जीवन काल में पर्यावरण संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की थी।
चिपको आंदोलन हिमालय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर और पेड़ों की कटाई के खिलाफ मातृशक्ति के द्वारा वृक्षों के आलंगन से जुड़ा आंदोलन था। आज आंदोलन के 53वर्ष पूर्ण हो गए हैं।

पर्यावरण बचाने के लिए यह चिपको आंदोलन 26 मार्च 1970 को इस सीमांत क्षेत्र में प्रारंभ हुआ जब पेड़ो को काटने वाले ठेकेदारों द्वारा पेड़ काटने के लिए मजदूरों को भेजा तब गोरा देवी जी के नेतृत्व में महिलाएं इन पेड़ो से चिपक गई । उन्होंने कहा पेड़ो को काटने से पहले उन्हें काटा जाय।

इस आंदोलन की गूंज को भारत सहित संपूर्ण दुनिया ने सुना। चिपको आंदोलन ने देश में पर्यावरण संरक्षण बड़ा मुद्दा बना दिया और यह आंदोलन भारत के हिमाचल, कर्नाटक, राजस्थान तथा बिहार राज्यों तक फैल गया। इस आंदोलन का ही परिणाम रहा कि तत्कालीन भारत सरकार ने 15वर्षों तक हिमालयी राज्यों में पेड़ कटान को पूर्ण प्रतिबंधित कर दिया। चिपको आंदोलन गौरा देवी के संघर्षों की कहानी है, जंगल प्रकृति के लिए कितने मूल्यवान है उस आंदोलन के गीत में निहित है।

चिपका डाल्थु पर न कंटण दय्वा, पहाड़ों की सम्पत्ति अब न लूटण दय्वा।

उन्होंने सरकार से मांग की कि इस महान विभूति को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। ताकि पर्यावरण संरक्षण की ये मुहिम आने वाली कड़ी पीढ़ियों को प्रेरणा देने का काम करती रहे।

 

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Author: Pankaj Panwar
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