उत्तराखंड के बीएस-4 श्रेणी की बसों का दिल्ली में प्रवेश पर रोक, यात्रियों की बढ़ेगी मुश्किलें
दिल्ली सरकार ने ग्रैप-2 नियमों में बदलाव के बाद पुरानी डीजल बसों पर फिर से रोक लगा दी है। अब सिर्फ बीएस-6 सीएनजी या इलेक्ट्रिक बस ही दिल्ली जा सकती हैं। इस फैसले से उत्तराखंड परिवहन निगम की करीब 160 डीजल बसों के दिल्ली में प्रवेश पर रोक लग गई है। दिल्ली परिवहन विभाग व पुलिस ने सोमवार को उत्तराखंड परिवहन निगम की चार साधारण बसों के चालान कर दिए।
दिल्ली सरकार की ओर से ग्रैप-2 के नियमों में बदलाव के बाद दिल्ली सरकार ने पुरानी डीजल बसों पर फिर रोक लगा दी है। अब सिर्फ बीएस-6, सीएनजी या इलेक्ट्रिक बस ही दिल्ली जा सकती हैं।
ऐसे में 10 दिन बाद फिर से उत्तराखंड परिवहन निगम की करीब 160 डीजल बसों के दिल्ली में प्रवेश पर रोक लग गई है। हालांकि, कार्बन उत्सर्जन कम होने के कारण अभी बीएस-4 वोल्वो बसों को नहीं रोका गया है।
दिल्ली परिवहन विभाग व पुलिस ने सोमवार को उत्तराखंड परिवहन निगम की चार साधारण बसों के चालान कर दिए, जिसके बाद सभी पुरानी बसों का संचालन दिल्ली मार्ग पर रोक दिया गया है।
इसके अलावा उत्तराखंड में बलिदानी सैनिकों की वीरांगना और वीर माताओं को उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में निश्शुल्क यात्रा की सुविधा मिलेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विजय दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में यह घोषणा की। अभी तक यह सुविधा सिर्फ वीरता पदक से अलंकृत सैनिकों को मिलती थी।
बता दें कि अब तक हुए विभिन्न युद्ध व सैन्य आपरेशन में राज्य के 1,685 सैनिक बलिदान हुए हैं। मुख्यमंत्री ने विजय दिवस के अवसर पर गांधी पार्क स्थित शहीद स्मारक पर पुष्पचक्र अर्पित कर बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उन्होंने वीरांगनाओं, वीर माताओं व वीरता पदक से अलंकृत सैनिकों को सम्मानित किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय सैनिकों ने वर्ष 1971 के युद्ध में न केवल राष्ट्र की अखंडता और स्वाभिमान की रक्षा की, बल्कि अपने अद्वितीय रण कौशल से दुश्मन को चारों खाने चित्त कर दिया।
यह युद्ध स्वतंत्र भारत के इतिहास का एक ऐसा स्वर्णिम अध्याय है, जो प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव और प्रेरणा का स्रोत है। वर्ष 1971 के युद्ध में सेना ने विश्व को दिखा दिया कि भारत न केवल अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम है, बल्कि जरूरत पड़ने पर मानवता और न्याय की रक्षा के लिए भी खड़ा हो सकता है। इस युद्ध में हमारी तीनों सेनाओं ने मात्र 13 दिनों में पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
इस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग एक लाख सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया, जो दुनिया के सैन्य इतिहास में एक अद्वितीय घटना है। उस युद्ध में लगभग 39 सौ भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए, जिनमें वीरभूमि उत्तराखंड के 255 बहादुर सपूत भी शामिल थे। तब हमारे प्रदेश के 74 सैनिकों को अपने अदम्य साहस और शौर्य के लिए विभिन्न वीरता पदकों से सम्मानित भी किया गया था
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