बीमा लेते ही परलोक सिधारे, 14 साल बाद मुआवजा आदेश नकारे, राज्य उपभोक्ता आयोग ने सुनाया फैसला
पॉलिसी चार नवंबर 2010 को करवाई गई थी। बीमा राशि तीन लाख रुपये थी। एक महीने बाद सात दिसंबर को बीमा धारक का निधन हो गया। उनकी पत्नी ने बीमा राशि का दावा किया, जो कंपनी ने 26 दिसंबर 2012 को खारिज कर दिया।
जीवन बीमा पॉलिसी लेने के एक महीने बाद ही मौत होने के मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग ने पीड़ित पक्ष को मुआवजा देने का आदेश रद्द कर दिया है। दरअसल, हरिद्वार के जिला उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को आदेश दिया था कि मृतक की विधवा को तीन लाख की बीमा रकम छह फीसदी ब्याज और पांच हजार रुपये मुकदमा खर्च समेत दी जाए। लेकिन बीमा कंपनी की अपील पर राज्य उपभोक्ता आयोग ने उस आदेश को रद्द कर दिया।
आयोग ने फैसले में कहा कि बीमा लेते समय बीमाधारक की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई गई थी। इसलिए बीमा कंपनी का दावा खारिज करना सही है। जिला आयोग ने मामले को समझने में गलती की।
14 साल से चल रहे थे मुकदमे
जिला आयोग से बीमा राशि देने और राज्य आयोग से खारिज होने के आदेश के बीच 14 साल गुजर गए। यह पॉलिसी चार नवंबर 2010 को नाथी राम ने करवाई थी। उनकी बीमा राशि तीन लाख रुपये थी। एक महीने बाद सात दिसंबर को उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी ने बीमा राशि का दावा किया, जो कंपनी ने 26 दिसंबर 2012 को खारिज कर दिया। पत्नी रूपा ने जिला आयोग में शिकायत की। आयोग ने सुनवाई के बाद सितंबर 2019 को रूपा के पक्ष में फैसला सुनाया।
इसके खिलाफ बीमा कंपनी ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की। जिला आयोग की तरह राज्य आयोग के सामने भी साक्ष्य पेश किया कि नाथी राम 10 अगस्त से 20 अगस्त 2010 तक हिमालयन इंस्टीट्यूट अस्पताल में भर्ती थे। उनका ऑपरेशन हुआ था लेकिन बीमा लेते समय इस तथ्य को छिपाया गया। उनकी गंभीर स्वास्थ्य स्थिति को छिपाकर बीमा करवाया गया। इस दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर राज्य उपभोक्ता आयोग ने माना कि बीमा कंपनी का दावा खारिज करने का आधार सही था।
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