कसभा चुनाव के नतीजों के बाद राजनीतिक दलों में मंथन जारी है। केन्द्रीय सत्ता में बैठी भाजपा ने तीसरी बार सरकार बना तो ली लेकिन यह उनके लिए किसी रियल्टी चैक की तरह आया। इन मंथनों के बीच राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से संबंध रखने वाली पत्रिका ऑर्गनाइजर में भी रतन शारदा ने लोकसभा चुनाव में हुए खराब प्रदर्शन पर भाजपा को आईना दिखाया…
शारदा ने लिखा कि 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के अतिआत्मविश्वासी कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियल्टी चैक जैसा था। उन्हें यह समझ ही नहीं आया कि पीएम मोदी द्वारा दिया गया 400 पार का नारा उनके लिए एक लक्ष्य था, और लक्ष्य जमीनी स्तर पर काम करके पूरे किए जाते हैं न कि सोशल मीडिया पर सेल्फी या पोस्टर चिपका कर। यह अपने अतिआत्मविश्वास और पीएम मोदी की चकाचौंध में इतने खो गए की इन्हें चौराहों पर खड़ी जनता की आवाज सुनाई ही नहीं दी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव
रतन शारदा ने लिखा कि मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि आरएसएस ने इस चुनाव में भाजपा के लिए काम नहीं किया। आरएसएस भाजपा की कोई जमीनी सेना नहीं है। भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी है उसके पास अपने कार्यकर्ता हैं, जिनका काम था कि वे लोगों के बीच जाएं और पार्टी का एजेंडा लोगों को समझाएं और चुनाव संबंधी काम करें। आरएसएस तो शुरुआत से ही लोगों के बीच में जाकर उन्हें लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस चुनाव में भी स्वयंसेवकों ने काम किया, अकेले दिल्ली में लाख से ज्यादा मीटिंग हुई।
स्वयंसेवकों और अपने वैचारिक साथियों को साथ लेने के लिए भाजपा के कार्यकर्ताओं और लोकल नेताओं को उन तक पहुंचना होता है, उनकी सलाह लेनी होती है। लेकिन इस बार वे अपने अतिआत्मविश्वास कि आएगा तो मोदी ही और अबकी बार 400 पार की चकाचौंध में इतने खो गए कि उन्होंने पुराने कार्यकर्ताओं तक पहुंचने की जरूरत ही नहीं समझी।
पहुंच से दूर नेता और प्रवासी उम्मीदवार
शारदा के अनुसार 543 सीटों पर केवल मोदी जी चुनाव लड़ रहे हैं, इस बात का एक सीमित प्रभाव है। यह बात तब और ज्यादा आत्मघाती हो जाती है जब किसी क्षेत्र में क्षेत्रीय नेताओं की कीमत पर किसी नए नेता की पैरासूट लैंडिंग करा दी जाती है। किसी बाहर से आए नेता को आगे बढ़ाकर किसी पुराने कार्यकर्ता को पीछे कर देना, कार्यकर्ताओं के मन में संदेह पैदा करता है। एक अनुमान के मुताबिक 25 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवार प्रवासी उम्मीदवार के तौर पर थे। जिन्हें न क्षेत्रीय मुद्दों की समझ थी न ही क्षेत्र की।
भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि मंत्री तो छोड़िए लोकल विधायक और सांसद भी नहीं मिलते है। यह चुनावों के बाद अपने क्षेत्रों में भी नजर नहीं आते हैं। 5 साल की सांसदी और विधायकी में आप इनके क्षेत्रों में हुए दौरों को अंगुलियों पर गिन सकते हैं। नेता जो ट्विटर और फेसबुक पर लगातार अपनी तस्वीरें और कार्यक्रमों की बातें लिखते रहते हैं वह भाजपा, आरएसएस के कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर खामोश रहते हैं, वो कार्यकर्ता जिसने पार्टी के लिए जान दे दी आखिर ऐसी क्या मजबूरी या व्यस्तता है कि आप खुलेतौर पर उसके लिए कुछ लिख या बोल भी नहीं सकते हैं। वो लोग जो खुले तौर पर भगवान राम और हिंदू धर्म को गाली देते थे उनका पार्टी में रेड कार्पेट बिछा कर स्वागत किया गया जबकि आपने अपनी मजबूत कार्यकर्ता नुपूर शर्मा को दुनिया भर के सामने अकेला छोड़ दिया। उसने गलती की भी, तब भी क्या आप अपने सबसे आगे खड़े कार्यकर्ता के साथ ऐसा व्यवहार करेंगे? और अगर ऐसा है तो आप अपने बंगाल, केरल, तमिलनाडू में अपने कार्यकर्ताओं से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो आपके लिए खड़े होंगे..
जरूरत से ज्यादा जोड़-तोड़ की राजनीति
महाराष्ट्र की राजनीति बिना मतलब की तोड़- फोड़ और गठबंधन करने का सबसे बड़ा उदाहरण है। अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी के एक गुट के साथ आपने तब गठबंधन किया जब आप शिंदे सेना के साथ गठबंधन में बहुमत के साथ सरकार चला रहे थे। शरद पवार अपने आप ही कुछ सालों में सक्रिय राजनीति से दूर हो जाते और दो भाई- बहन की लड़ाई में एनसीपी अपने आप ही कमजोर हो जाती। तो फिर आखिर किसकी सलाह पर आपने अजित पवार के साथ समझौता किया वो भी तब जब वह आपको एक बार धोखा दे चुके थे। भाजपा के साधारण कार्यकर्ता को इससे ठगा हुआ सा महसूस हुआ क्योंकि जमीनी कार्यकर्ता लगातार कांग्रेसी सोच से लड़ते हुए आ रहे थे और आपने एक झटके में ही उन्हीं नेताओं को उनके सिर के ऊपर बैठा दिया। फिर आपमें और बाकी राजनीतिक पार्टियों में आखिर क्या अंतर रह गया।
कांग्रेस के ऐसे नेता जो लगातार भाजपा के खिलाफ भगवा आतंकवाद, 26/11 को आरएसएस की साजिश और आरएसएस को एक आतंकवादी संगठन बता कर झूठा प्रचार करते थे। वे एकदम से रातोंरात बिना किसी माफीनामे के भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता आखिर कैसे बन गए। इन नेताओं ने भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं पर बहुत बुरा असर डाला।
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