*उत्साहित वातावरण में 19वां उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन 2024 का शुभारंभ*
*उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) द्वारा आयोजित 19वाँ उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन 2024 आज से*
देहरादून, 28 नवंबर 2024: दून विश्वविद्यालय के डॉ. नित्यानंद ऑडिटोरियम में आज उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (UCOST) द्वारा आयोजित 19वां उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन 2024 का शुभारंभ हुआ। यह तीन दिवसीय सम्मेलन 28 नवंबर से 30 नवंबर तक चलेगा, जिसमें उत्तराखंड के जलवायु और पर्यावरणीय चुनौतियों पर केंद्रित चर्चा होगी। इस वर्ष सम्मेलन का मुख्य विषय “जल एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन” है।
विगत वर्ष कि तरह इस वर्ष यह सम्मेलन सिलक्यारा विजय अभियान के एक वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में समर्पित है। यह अभियान जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, जल संरक्षण को बढ़ावा देने, और हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय स्थिरता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
उद्घाटन सत्र और विशेष अतिथि:
कार्यक्रम का उद्घाटन यूकॉस्ट के निदेशक प्रो. दुर्गेश पंत ने किया। प्रो. गजेंद्र सिंह, जो दून विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति और प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक हैं, ने विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित किया। प्रो. गजेंद्र सिंह ने न केवल कृषि क्षेत्र में जल संरक्षण के महत्व को रेखांकित किया, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में स्थानीय और वैश्विक प्रयासों की सराहना की।
कार्यक्रम में जलवायु विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, और नीति निर्माताओं ने भाग लिया।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण 50+ विज्ञान और अंतरिक्ष प्रदर्शनियां जिसमें इसरो ISRO, NDRF सहित विभिन्न संस्थानों की प्रदर्शनी, जिसमें जलवायु और अंतरिक्ष अनुसंधान की नवीनतम उपलब्धियां प्रदर्शित की गईं। शाम के सत्र में सिलक्यारा फ्रेमवर्क पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया जाएगा।
प्लेनरी सत्रों के मुख्य विषय: 1. हिमालयी क्षेत्र में जल से संबंधित आपदाओं (फ्लैश फ्लड्स और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स – GLOF) की रोकथाम के उपाय, 2. हिमालय में जल सुरक्षा: जल संसाधन प्रबंधन का विज्ञान रहे।इन सत्रों में विभिन्न विषयों पर चर्चाएं और प्रस्तुतियां दी गईं।
प्रमुख पैनलिस्ट और उनके विचार कुछ इस प्रकार रहे:
सत्र 1: हिमालय में जल सुरक्षा: जल संसाधन प्रबंधन का विज्ञान में
प्रो. जे.एस. रावत (धारा विकास कार्यक्रम के प्रमुख):
हिमालयी नदियों के मौसमीकरण और जल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, “हमें 353 मौसमी नदियों के संरक्षण पर कार्य करना होगा।”
डॉ. देबाशीष सेन (पीएसआई, देहरादून): स्प्रिंग-शेड प्रबंधन और आधुनिक तकनीकों के उपयोग पर चर्चा।
डॉ. बृजमोहन शर्मा: प्रत्येक छात्र यदि जल संरक्षण में शामिल हो, तो लाखों लीटर पानी बचाया जा सकता है।
डॉ. विनोद कोठारी: पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक भागीदारी की भूमिका पर जोर।
डॉ. किशोर कुमार: हिमालयी नालों के सूखने और इसके कारण बुनियादी ढांचे पर प्रभावों की चर्चा।
राजेंद्र सिंह (उत्तराखंड जल पुरुष): उन्होंने प्राकृतिक जल स्रोतों के पुनर्जीवन और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जल पुनर्भरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
प्रो. बादोनी (एच.एन.बी.जी.यू.): हिमालयी क्षेत्र की धारा, ताल, और बुग्याल को संरक्षित करने के महत्व पर जोर दिया।
डॉ. देव प्रियदत्त (एनडीएमए): उन्होंने पंचायत स्तर पर सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देने का आह्वान किया।
सत्र 2: हिमालयी क्षेत्र में जल से संबंधित आपदाओं की रोकथाम (फ्लैश फ्लड्स और GLOF)
प्रो. एस.पी. सती : पश्चिमी विक्षोभ के कारण हिमालयी क्षेत्रों में अस्थिरता और आपदाओं के प्रभाव पर चर्चा।
प्रो. आर.एस. धीरामन:ग्लेशियरों की गतिविधियों की निगरानी के लिए उपग्रह मानचित्रण की आवश्यकता।
डॉ. नीरज (एम्स ऋषिकेश): स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण देना अनिवार्य।
प्रो. वाई.पी. सुंद्रीयाल: ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOF) और भूवैज्ञानिक गतिविधियों पर चर्चा।
प्रो. पिंकी बिष्ट (वाडिया संस्थान): एनडीएमए द्वारा चिह्नित 20 संवेदनशील ग्लेशियल झीलों की निगरानी।
डॉ. बिपिन कुमार (दून विश्वविद्यालय): आपदा जोखिम प्रबंधन की आवश्यकता।
डॉ. आर.पी. सिंह (इसरो): आपदा क्षेत्रों की निगरानी के लिए आगामी उपग्रह परियोजनाओं जैसे NISAR और Trishna की जानकारी व्यक्त करते हुए बताया कि इन सैटेलाइटों के माध्यम से रेड एरिया को पूर्व ही रेखांकित करने से जान मान बचाव में पूरे भारत को फायदा होगा।
सम्मेलन की प्रमुख बातें कुछ इस प्रकार रही
जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन, हिमालयी जल स्रोतों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उन्हें संरक्षित करने के उपाय। शिक्षा और जागरूकता: छात्रों और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से जल संरक्षण की दिशा में ठोस प्रयास। पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों का समन्वय:
परंपरागत जल स्रोत जैसे नौला और धारा को पुनर्जीवित करने के लिए विज्ञान और स्थानीय ज्ञान का उपयोग।
साथ सत्र में डॉ. मेनन, डॉ. आर.एस. हीरामन, डॉ. नीरज, प्रो. अभिषेक, समर्थ गोस्वामी, जी.एस. रौतेला, डॉ. चानम (आईआईआरएस), प्रो. विनोद बनर्जी, और देवकल्प वासुदास (कोलकाता विश्वविद्यालय) मौजूद रहे।
विशेष टिप्पणियां:
डॉ. एस.के. बर्तारिया (वाडिया संस्थान) ने उन्होंने भूजल विज्ञान और हिमालयी नदियों के संरक्षण के लिए अनुसंधान अंतराल को भरने की बात कही।
डॉ. महेंद्र लोधी (वाडिया संस्थान) ने स्प्रिंग रीजन में जल संरक्षण की दिशा में अनुसंधान में और अधिक प्रयास की आवश्यकता है।
सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव ने सत्रों के दौरान, हिमालयी क्षेत्रों के जलवायु परिवर्तन और नदियों के सूखने की समस्या के समाधान पर सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया गया।
इस सम्मेलन ने न केवल जलवायु संरक्षण पर चर्चा को बढ़ावा दिया, बल्कि स्थानीय और वैश्विक स्तर पर जागरूकता फैलाने का भी कार्य किया।
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